कोरबा जनजाति
Korba Tribes
परिचय
यह झारखंड की एक आदिम जनजाति है जिसे प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड्स पर जातीय समूह के अंतर्गत रखा गया है। इस जनजाति की दो शाखाएं है डिहरिया कोरबा और पहाड़िया कोरबा। डिहरिया कोरबा मैदानी भाग में रहते हैं वही पहाड़िया कोरबा पहाड़ों पर रहते हैं। पहाड़ी कोरवा पेड़ों में मचान बनाकर रहते हैं इनकी स्थिति काफी दयनीय है, ये झूम की खेती करते हैं। डिहरिया कोरबा स्थाई कृषि करते हैं और यह पहाड़ी कोरबा से ज्यादा उन्नत है। इस जनजाति की भाषा कोरबा है जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की एक भाषा है। कोरबा भाषा विलुप्त प्राय भाषा है, झारखंड में कोरवा जनजाति नागपुरी भाषा बोलते हैं।
पौराणिक कथा
श्री राम जब वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ आए थे तो उन्होंने एक खेत पर बने काकघोड़ा को जीवनदान दे दिया और वही कोरवा जनजाति कहलाए। काकघोड़ा का मतलब वह पुतला जो खेत में लगाया जाता है ताकि कौवा खेत से फसल लेकर ना जा पाए।
निवास स्थान
कोरबा जनजाति की सबसे ज्यादा सघन आबादी झारखंड और उड़ीसा की सीमा पर पाई जाती है। झारखंड में इस जनजाति का सबसे ज्यादा जमाव पलामू प्रमंडल में है। वही इसकी सबसे ज्यादा आबादी गढ़वा जिला में है। गढ़वा जिला के गुलगूल पाट में इसकी काफी सघन आबादी पाई जाती है। भारत में इसकी सबसे ज्यादा आबादी छत्तीसगढ़ जिला में है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला में भी इसकी अच्छी खासी आबादी है।
धार्मिक जीवन
ये सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी आदि की पूजा करते हैं। इनका सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा है। अन्य देवता में
गमेल्ह (डिहवार) – जो गांव की रक्षा करता है।
रक्सेल- जो पशुओं की रक्षा करता है।
दरहा – जो खराब पारलौकिक शक्ति से बचाता है
इंद्रदेव – अच्छी वर्षा के लिए।
धरती माय- अच्छी फसल के लिए।
चांडी और सोखा पूजा- परिवार की भलाई के लिए।
गौरेया पूजा – गौहाल की रक्षा के लिए
सतबहिनी पूजा – 7 देवियों की पूजा है यह।
शिव पार्वती- पूरे कोरबा समाज की भलाई के लिए ।
इस जनजाति का धार्मिक प्रधान बैगा कहलाता है। कोरबा में खुरियारानी देवी की पूजा का भी प्रचलन है। इनके मुख्य पूजा है चैत नवमी पूजा, सरहुली पूजा और करमा पूजा। सरहुली पूजा जो वैशाख महीने में मनाया जाता है इसके बाद ही कोई कोरबा हल को छूता है और कृषि को शुरू करता है।
आर्थिक जीवन
कोरबा की अर्थव्यवस्था कृषि शिकार, वन्य उत्पाद पशुपालन, शिल्प निर्माण, मजदूरी पर आधारित है। प्राचीन काल में यह स्थांतरित कृषि बियोड़ा (दहिया) किया करते थे। वर्तमान में कोरवा जनजाति ने लौह कर्म को अपना लिया है। महिलाओं को ही कोरबा समाज में आर्थिक क्रियाकलाप की दूरी माना जाता है। महिलाओं की भागीदारी के बगैर कोई भी सामाजिक निर्णय नहीं लिया जाता है।
गोत्र
इस जनजाति में कई गोत्र पाए जाते हैं जैसे हुट्टरटिट्टो (चिड़ियां), कासी (घास), सुईया (चिड़ियां), खप्पो, कोकट, बुचुंग (चिड़िया)।
पंचायत व्यवस्था
इसके जनजातीय पंचायत को भैयारी पंचायत कहा जाता है। इसके ग्राम प्रमुख को लोटादार/टोलादार कहा जाता है।
सामाजिक जीवन
इसके समाज पितृसत्तात्मक होते हैं। इसमें समगोत्रीय विवाह वर्जित है। इन में एकल विवाह की प्रथा है परंतु कहीं-कहीं पर बहु विवाह का भी उदाहरण मिलता है लेकिन यह सीमित है। इसमें क्रय विवाह के अलावा पलायन विवाह एवं प्रेम विवाह का प्रचलन है। चढ़के विवाह में विवाह कन्या के यहां होता है तथा डोला विवाह में विवाह वर के यहां होता है। इनमें बधुमूल्य देने की प्रथा है। वधु मूल्य को सुक कहा जाता है। तलाक प्रथा बहुत सीमित है। विवाह के समय दमनज नृत्य किया जाता है जो एक भय उत्पादक नृत्य है।
प्रसव के लिए अलग झोपड़ी बनाई जाती है जिसे कुंबा कहते हैं।बच्चों के जन्म में 6 दिन का अशौच रहता है। डोंगरिन प्रसव कराती है। नाल हसुआ से काटे जाते हैं। छठी के बाद ही परिवार का सदस्य शुद्ध माना जाता है। दफनाने और दाह संस्कार दोनों का प्रचलन है, 10 दिन तक अशौच रहता है।
विवाह
पेठु विवाह – हठ विवाह
लमसेना विवाह – सेवा विवाह
गुरावट विवाह – गोलट विवाह
उढरिया विवाह – पलायन विवाह
कोरबा की विवाह चार चरणों में होती है :- मंगनी, सूत बंधौनी, विवाह, गौना।
कोरबा जनजाति के महत्वपूर्ण तथ्य
1) ये चोरी करने से अच्छा लूटपाट करने को मानते हैं।
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