Kharia Tribes

खड़िया जनजाति का विस्तृत अध्धयन | Detailed Study Of Kharia Tribes

Jharkhand GKJharkhand Tribes

खड़िया जनजाति

खड़िया जनजाति झारखंड की सातवीं बड़ी जनजाति है।

निवास स्थान – खड़िया जनजाति की लोककथाओं में उसके मूल निवास स्थान के रूप में बीरूगढ़-कैसलगढ़ को मानते है, जहां वे अपने परम्परा के साथ खुशहाल रहते थे। आधुनिक इतिहासकारों ने बीरूगढ़-कैसलगढ़ को सिमडेगा, गुमला तथा इससे सटे उड़ीसा के क्षेत्र को चिन्हित किया है। झारखंड के अलावा खड़िया उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम में पाई जाती है। वर्तमान में इस जनजाति की सबसे ज्यादा संख्या राँची जिला में है। इसके अलावा इसका जमाव गुमला, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम जिलों में पाए जाते है।

खड़िया की उत्पत्ति स्थान रो: जंग को माना गया है।

शरीर की बनावट – शारीरिक रूप से ये सामान्य (औसत) कद के होते है। इसकी नाक जड़ में दबी हुई होती है। इसका चेहरा उभरा हुआ तथा चौड़ा होता है।

खड़िया दर्शन – खड़िया समुदाय कर्मफल पर विश्वास नहीं करते। उनका विश्वास है कि मनुष्य मर कर फिर खड़िया समुदाय में और उसी वंश में जन्म लेता है। इस तरह पूर्वजों का सर्म्पक हमेशा बना रहता है, निरन्तरता बनी रहती है। खड़िया समुदाय चाहे उसने किसी भी धर्म को स्वीकार कर लिया है, विश्वास करता है कि मनुष्य के अन्दर दो शक्तियाँ हैं जिसे ‘चइन’ या ‘प्राण’ और ‘लोंगोय’ या छाया। जब तक मनुष्य जीवित है, प्राण उसके अन्दर रहता है। प्राण रहने तक नाड़ी चलती है और साँस ली जाती है। प्राण के निकलते ही मृत्यु हो जाती है।

खड़िया जाति के वर्ग –खड़िया, प्रोटो -ऑस्ट्रालॉयड प्रजातीय समूह में आते है। जनजाति के 3 उपवर्ग है:-

a) पहाड़ी खड़िया

b) ढेलकी खड़िया

c) दूध खड़िया

इन तीनों वर्गो में पारस्परिक विवाह संबंध नहीं होते। पहाड़ी खड़िया को हिल खड़िया या इरेंगा भी कहा जाता है क्योंकि ये जंगल के भीतर पहाड़ो में रहना पसंद करते है। ये अपने आपको खड़िया से ज्यादा सबर कहलाना पसंद करतें है और खुद को अन्य खड़िया से अलग मानते है। 1980 से पहले पहाड़ी खड़िया, अन्य खड़िया से अलग था। ये सबर का उपवर्ग माना जाता था। ढेवर कमीशन तथा जनजाति कमीशन ने खड़िया को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा था किन्तु स्वतंत्रता के बाद सरकार ने खड़िया को इस सूची से हटाा दिया।

आजीविका – इस समुदाय का परंपरागत पेशा खड़खड़िया (पालकी) ढोना था इस वजह से इसका नाम खड़िया पड़ा। खड़िया जनजाति में वर्गीय आधार पर आर्थिक विकास के विभिन्न स्तर विद्यमान हैं। तीनो वर्गो में दूध खड़िया सबसे उन्नत अवस्था में है और ढेलकी खड़िया की स्थिति सबसे दयनीय है। पहाड़ी खड़िया आज भी मुख्य रूप से वनोत्पाद (कंदमूल,जंगली फल, शहद, जड़ी बूटी) इत्यादि पर निर्भर है, इसका जीवन आदिम जनजाति की तरह ही है और घुमंतू है। अर्थात् पहाड़ी खड़िया एक भोजन संग्राहक, शिकार और मजदूर समुदाय है। ढेलकी लोग कृषि मजदूर और कृषक हैं, जबकि दूध खड़िया लोग अपनी प्राथमिक अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से कृषक हैं।

भाषा –ढेलकी खड़िया और दूध खड़िया की भाषा “खड़िया” है। यह भाषा मुंडा (ऑस्ट्रो -एशियाटिक/ऑस्ट्रिक) भाषा परिवार के अंतर्गत आता है। पहाड़ी खड़िया की भाषा “खड़िया थार” है जो की भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आता है।

लोक नृत्य – हरियो, किनभार, हल्का, कुढिंग और जदुरा

धार्मिक जीवन –पहाड़ी खड़िया का धार्मिक प्रधान देहुरी कहलाता जबकि दूध और ढेलकी खड़िया का धार्मिक प्रधान कालो या पाहन कहलाता है।

खड़िया के देवी-देवता

बेड़ो – सूर्यदेव

बेड़ोडय – चंद्रमा

ठकुरानी – धरती देवी

सुमी – सरना देवी

पारदुबो – पहाड़ देवता

बोराम – वन देवी

बेडोलड़ाय पूजा – यह खड़िया समाज की पूर्वजों की पूजा है जिसमें पूर्वजों को अन्न और गोलङ (हड़िया) का अर्पण किया जाता है। प्रतिदिन भोजन से पहले और हंड़िया पीने से पहले बेडोलड़ाय का स्मरण किया जाता है।

सूर्याही पूजा – खड़िया समाज में सूर्याही पूजा आषाढ़ महीने में घर के मुखिया और अविवाहित बच्चे द्वारा मनाया जाता था। खड़िया में सर्वोच्च देवता बेड़ो भगवान/ठाकुर जी (सूर्य) को माना जाता है। बेड़ो भगवान को ये पोनोमोसोर (सृष्टिकर्ता) मानते है।

साली/सालियानी पूजा – यह तीन वर्ष में एक बार किया जाता है। यह वर्षा के समय धान रोपने से पहले कालो/देहूरी के उपस्थिति में विधि विधान से की जाती है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य अगले तीन साल के लिए कृषि से संबंधित चीजों का तथा कृषि से संबंधित श्रमिकों के मेहनत/कार्य (कृषक मजदूर, लोहार, चिक बड़ाइक, नाई, माहली) मूल्य निर्धारण होता है। इस पूजा में महिलाएं भाग नहीं लेती।

पाटो सरना – यह खड़िया समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह बैशाख महीने में मनाया जाता है। इस त्यौहार में दूध उबालने की प्रथा है, उबलता हुआ दूध जिस तरफ गिरता है उस तरफ से बारिश होने की भविष्यवाणी कालो (प्रधान पुजारी) द्वारा की जाती है।

सरना पुजा –इसमें सरना स्थल में 5 मुर्गे की बलि दी जाती है। तीन घड़े को उलटकर रख दिए जाते है। फुल के साथ भात और मांस के एक टुकड़े को चढ़ाते है। सरना देवी को गुमी के नाम से पुजा करते है।

जोओडेम त्यौहार – यह खड़िया समुदाय की नवाखानी त्यौहार है। खड़िया में दो नवाखानी मनाया जाता है एक गोंदली फसल पे और एक गौड़ा फसल पर गुडलू जोओडेम (गोंदली नवाखानी) और गोडअ जोओडेम (गोड़ा नवाखानी)

दिमतअ त्यौहार – यह खड़िया समुदाय का गौशाला पूजा है।

भदंडा पूजा – यह पुजा पहाड़ की पूजा है। इसे बड़ पहाड़ी पूजा भी कहा जाता है। पहाड़ देवता को खड़िया समाज में पारदूबो कहा जाता है।

जोकोर त्यौहार – यह खड़िया समुदाय का वसंतोत्सव (सरहुल) है। इस समय बोराम (वनदेवी-देवता) की पूजा की जाती है।

बन्दई उत्सव – यह त्यौहार पशुओं के सम्मान में कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। वास्तव में यह पर्व जिस दिन से कार्तिक का चांद दिखाई देता उस दिन से ही शुरू हो जाता है। जिस दिन चांद दिखाई देता है,पशु के चर के आने के बाद पशुओं के पैर को “तपन गोलङ” से धोते है। तपन गोलङ का अर्थ होता है पूजा के लिए बनाई गई हड़िया। गोबर से लीपे हुए जगह पे सुअर को अरवा चावल चराया जाता है। किस समय सुअर चावल चरता है, घर का मुखिया हाथ उठाकर “गौरेया डुबोओ” से निवेदन करता है की उसके पशुओं की हिफाजत करना। इसके बाद भैंस के शरीर में घी या कुजरी का तेल लगाया जाता है जिसे “भैंस” चूमान कहते है। भैंस चूमान तीन वर्ष में एक बार होता है। और जिस दिन पूर्णिमा होती है उस दिन गाय -बैल की पूजा होती है।

बिइना त्यौहार – इस त्यौहार को बाऊ बिडबिड भी कहा जाता है। यह बीज बोते समय मनाया जाने वाला उत्सव है।

रोनोल पर्व – यह खड़िया समुदाय का फसल रोपनी पर्व है।

विवाह –खड़िया जनजाति में विवाह को “केरसोंग” कहा जाता है। विवाह के अगुआ को सुया कहा जाता। खड़िया समाज में बहुविवाह का प्रचलन है। विधवा विवाह और तलाक को सामाजिक मान्यता प्राप्त है। खड़िया समाज में विवाह के कई रूप देखने को मिलते है।

ओलोलदाय विवाह- इसे असल विवाह भी कहा जाता है इसे सबसे उत्तम विवाह माना जाता है, यह एक क्रय विवाह है जिसमें वधुमुल्य देकर विवाह किया जाता है। खड़िया समाज में वधुमूल्य को “गिनिड•तड•” कहा जाता है।

उधरा-उधरी विवाह – यह एक प्रेम विवाह है जब परिवार वालो की सहमति न हो। इस विवाह में लड़का लड़की पलायन करके विवाह करते है,जब घर वाले विवाह को स्वीकृति दे देते तब वे घर वापस आते है।

ढूकु-चोलकी विवाह- यह हठ विवाह (अनाहुत विवाह) का ही खड़िया रूप है। इस तरह के विवाह में लड़की जबरदस्ती लड़के के घर में रहने लगती है और लड़के के माता -पिता सहित पूरे परिवार की सेवा करती है। इस दौरान लड़की खाना कम खाती हो सेवा बहुत ज्यादा करती। अन्त में लड़के के माता पिता को विवाह के लिए राजी होना पड़ता है। ये लड़की के तरफ से एकतरफा प्यार होता है।

तापा विवाह – यह विवाह लड़के तरफ से एकतरफा प्यार होने से होता है। इस विवाह के लड़का लड़की का अपहरण कर लेता हैं उसके पश्चात विवाह होता हैं।

राजी-खुशी विवाह – यह प्रेम विवाह है जब परिवार वाले विवाह के लिए सहमत हो।

खड़िया समाज पितृसत्तात्मक समाज होता है।

डोकलो सोहोर शासन व्यवस्था

यह शासन व्यवस्था खड़िया समाज की परंपरागत शासन व्यवस्था है। खड़िया समाज अपने मुद्दों और विवादों का निपटारा इसी शासन व्यवस्था के मदद से करते है। इस शासन व्यवस्था में ग्राम स्तर के पंचायत को धीरा पंचायत कहा जाता है। धीरा पंचायत में निम्न प्रमुख अधिकारी होते है:-

महतो/डंडिया – दूध और ढेलकी खड़िया में ग्राम पंचायत के प्रमुख को महतो तथा पहाड़ी खड़िया में ग्राम पंचायत के प्रमुख को डंडिया (बंदिया) कहा जाता है। महतो/डंडिया ग्राम स्तर का प्रशासनिक और न्यायिक प्रधान होता है। यह पद ज्येष्ठता के आधार पर वंशानुगत होता है किन्तु अयोग्यता की स्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है। यह पद अवैतनिक होता है । किन्तु सेवा के बदले में गांव द्वारा लगानमुक्त जमीन दिया जाता है।

कालो/देउरी – ढेलकी तथा दूध खड़िया गांव का धार्मिक प्रधान कालो या पाहन होता है जबकि पहाड़ी खड़िया के गांव का धार्मिक प्रधान देउरी होता हैं । गांव के सारे धार्मिक मामलों का निपटारा ये अधिकारी ही करते है। कालो/देउरी का पद ज्येष्ठता के आधार पर वंशानुगत होता है किंतु अयोग्यता की स्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है। सेवा के बदले में इसे लगानमुक्त जमीन दिया जाता है।

Important Facts Of Kharia Tribes

1) खड़िया जनजाति की सबसे ज्यादा आबादी उड़ीसा राज्य में तथा दूसरा और तीसरा स्थान क्रमश: झारखंड और छत्तीसगढ़ का है।

2) खड़िया समुदाय का मुख्य भोजन चावल है।

3) खड़िया समाज में युवागृह को “गोतिओ” कहा जाता है।

Detailed Study Of Kharia Tribes VIDEO

https://youtu.be/ZJDrTG47zDc

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