गुप्तकालीन झारखंड
Jharkhand During Gupta Period
कुषाणों के पतन के बाद गुप्तकाल का उदय हुआ। गुप्तकाल के सबसे प्रतापी राजा समुद्रगुप्त के दरबारी कवि द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के सारे विजयों का वर्णन मिलता है। इन विजयों में आटविक विजय की चर्चा भी है। प्रयाग प्रशस्ति में लिखा हुआ है कि समुद्रगुप्त ने अपने तीसरे विजय आभियान में आटविक प्रदेश के राजा को पराजित करके उसके साथ “परिचारकीकृत नीति (अधीन किया)” का पालन किया। इस आटविक में झारखंड क्षेत्र भी आता था। इससे पता चलता है कि समुद्रगुप्त के साम्राज्य में झारखण्ड भी आता था। समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में छोटानागपुर को ‘मुरुण्ड देश” कहा है। समुद्रगुप्त के अधीन होने से झारखंड में बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हुआ और वैष्णव धर्म का प्रसार हुआ। समुद्रगुप्त के समकालीन नागवंशी राजा प्रताप राय था।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का साम्राज्य उज्जैन से लेकर बंगाल तक विस्तृत था। अतः इसके शासनकाल में भी झारखंड गुप्तों के अधीन था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में आये चीनी यात्री फाह्यान ने अपने पुस्तक “फोकोक्वी” में छोटानागपुर को “कुक्कुटलाड” कहा।
झारखंड में स्थित गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष
Jharkhand During Gupta Period
a) महुदी पहाड़ (हज़ारीबाग) में चार गुप्तकालीन मंदिर है जो पहाड़ो को काट कर बनाया गया है।
b) सतगावां गांव (कोडरमा) के आसपास में कई गुप्तकालीन मंदिर विद्यमान है।
c) पिठोरिया पहाड़ी (राँची) में एक गुप्तकालीन कुआँ विद्यमान है।
गुप्तोत्तर काल मे झारखंड
गुप्तो के पतन के बाद भारत के इतिहास मे गुप्तोत्तर काल (550 ई से 650 ई तक) की शुरुआत हुई। इस काल में मजबूत केंद्रीय शक्ति के आभाव में सत्ता का बहुत विकेंद्रीकरण हुआ। इस काल में कई क्षेत्रीय राजवंशों का उदय हुआ। जैसे बंगाल का गौड़, थानेश्वर का पुष्यभूति, कन्नौज के मौखरि, वल्लभी के मैत्रक इत्यादि।
इस काल में बंगाल के गौड़ शासक शशांक (602-625 ई) ने पूरे झारखंड को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। शशांक का साम्राज्य बंगाल के मिदनापुर से छत्तीसगढ़ के सरगुजा तक विस्तृत था। शशांक ने झारखंड क्षेत्र में अपनी राजधानी बनाई थी। कनिंघम ने बड़ाभूम परगना के बड़ा बाजार को शशांक की राजधानी बताया है। वही हेविट ने पाटकुम परगना के दुलमी को शशांक की राजधानी बताया है। दुलमी स्वर्णरेखा के तट पर अवस्थित है। प्राचीनकाल में शशांक एकमात्र राजा था जिसने झारखंड में अपनी राजधानी स्थापित की थी।
शशांक काल में झारखंड
शशांक के समकालीन नागवंशी राजा हरिराय और गजराय थे। जिन्होंने वेणुसागर (पश्चिम सिंहभूम) में शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
गौड़ के शासक शशांक शिव का उपासक था। इन्होंने झारखंड में बौद्ध मत के प्रसार को पूरी तरह से रोक दिया। बौद्ध और जैन सम्प्रदाय को शिथिल कर कई शिव मंदिरों का निर्माण किया।
पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या शशांक ने कर दिया था। शशांक पे जब हर्षवर्धन हमला करने आया था तब कागांजल (राजमहल) में हर्षवर्धन की मुलाकात ह्वेनसांग से हुई। ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक “सी यु की में संताल परगना का उल्लेख “किचिंगकोईला” के नाम से तथा छोटानागपुर का उल्लेख “की-लो-ना-सु-का-ला-ना” नाम से किया है। इसी पुस्तक से हमे पता चलता है कि हर्षवर्द्धन के साम्राज्य मे झारखंड का कुछ भाग शामिल था।
इस काल में कन्नौज के राजा यशोवर्मन ने जब मगध के राजा जीवगुप्त-2 पर आक्रमण किया था। इस दौरान जीवगुप्त-2 ने झारखंड में शरण लिया था।
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