झारखंड में लौहे की खान
Iron Mines In Jharkhand
Iron Ore
लौह अयस्क की 48 किमी पट्टी झारखंड -उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्र में है जो कोल्हान के दक्षिणी भाग और उड़ीसा के मयूरभंज-क्योंझर जिला में अवस्थित है। इस पट्टी को दुनिया का सबसे बड़े लौह भंडार में से एक माना जाता है। लौह अयस्क उत्पादन में उड़ीसा का स्थान पहला और झारखंड का चौथा है। लौह अयस्क के भंडारण में झारखंड का दूसरा स्थान है।
झारखंड में लौह अयस्क धारवाड़ श्रेणी के चट्टान में पाए जाते है। झारखंड भारत का 19 % लौह अयस्क का उत्पादन करता है। लौहे के उत्पादन में झारखंड का स्थान (उड़ीसा, गोआ और छत्तीसगढ़ के बाद) चौथा है। झारखंड में लौह अयस्क के के सारे खान सिंहभूम के दक्षिण भाग में स्थित है। झारखंड के लौह अयस्क में हेमेटाइट वर्ग की प्रधानता है। झारखंड में उपलब्ध कुल लौह अयस्क का 99%. हेमेटाइट वर्ग का लौह अयस्क है। राज्य में पश्चिम सिंहभूम का लौह अयस्क उत्पादन में प्रथम स्थान है। झारखंड का सारंडा जंगल में लौह अयस्क का प्रचुर भंडार है। झारखंड में 28 लौहे की खान है। झारखंड में प्रसिद्ध लौह अयस्क की खान निम्न है:-
चिड़िया पहाड़ (WS)-यह सारंडा जंगल में अवस्थित है। इसे मनोहरपुर लौह अयस्क क्षेत्र से भी जाना जाता है। भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क का भंडार यहीं है। यहां 2 बिलियन टन का भंडार है।
किरीबुरू (WS) – बोकारो स्टील प्लांट को लौह अयस्क की प्राप्ति यहां से होती है।
मेघाहातुबुरु (WS) – यह सारंडा के जंगल मे पश्चिम सिंहभूम में किरीबुरू लौह क्षेत्र के समीप स्थित है। इसके नजदीक ही पांडुल जलप्रपात, खंडधारा जलप्रपात, सानघाघरा जलप्रपात स्थित है। प्रसिद्ध स्वप्नेश्वर मंदिर भी मेघाहातुबुरु में अवस्थित है।
पंसीराबुरु (WS) – भारत मे खोजी गई सबसे पहला लौह खनिज का खान पंसीराबुरु है (1901)।
गुरुमहिसानी- इस खान की खोज झारखड के प्रसिद्ध भुगर्भशास्त्री पी एन बोस ने किया और इसके सलाह पर ही जमशेदजी टाटा ने साकची में टिस्को की स्थापना की।
नोवामुंडी (WS) – पहले यह उत्पादन की दृष्टि से झारखंड का सबसे बड़ा लोहे की खान थी। यह टाटा स्टील द्वारा संचालित है।
बारामजादा समूह – भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क क्षेत्र बारामजादा समूह है जो झारखंड के सिंहभूम और उड़ीसा के क्योंझर जिला में फैला हुआ है। पंसीराबुरु, अजीता बुरु और नोआमुण्डी इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण लौहे की खान है।
अन्य महत्वपूर्ण लौह अयस्क खान – वनरसियाबुरु, बुदाबुरु, नाटुबुरु, लोकदू बूरु, झिलिंग बुरू, अजीताबुरू, टाटी बुरु, सुकरी लुतूर बुरू, शंशागदा, गुआ, बादाम पहाड़, जामदा, धोबली, अनकुआ
महत्वपूर्ण तथ्य
1. लौहा की प्राप्ति धारवाड़ और कुडप्पा क्रम के चट्टानों से होती है।
2. झारखंड में भारत का कुल 26 % लौह अयस्क निक्षेपित है। झारखंड में निम्न वर्ग के लौह अयस्क पाए जाते हैं: –
हेमेटाइट – यह लौह अयस्क मुख्य रूप से पश्चिम सिंहभूम में पाया जाता है। इसका कुल भंडार 4596 मिलियन टन है जो भारत का 25.70% है।
मैग्नेटाइट- राज्य में मैग्नेटाइट लौह अयस्क के भंडार पूर्वी सिंहभूम, पलामू, गुमला, हजारीबाग, लातेहार जिला में है। इसका कुल भंडार 10.54 मिलियन टन है जो भारत के कुल उत्पादन का 0.10% है।
ऐपेटाइट रॉक फास्फेट – इस वर्ग के लौह अयस्क पश्चिम सिंहभूम में पाए जाते हैं जिसका कुल भंडार 7.27 मिलियन टन है। भारत के कुल उत्पादन का 27.70% है।
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