चौहान राजवंश का इतिहास| History Of Chouhan Dynasty

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चौहान राजवंश

History Of Chouhan Dynasty

राजधानी – प्रारंभिक राजधानी अहिच्छापुर/ अहिच्छत्र (नागौर के पास) थी बाद में अजयराज द्वितीय ने अजयमेरु (अजमेर) को राजधानी बनाया।

संस्थापक – वासुदेव। चौहान वंश के प्रारंभिक राजा गुर्जर- प्रतिहारो के सामंत हुआ करते थे। जिस की पूर्ण जानकारी और स्पष्ट नहीं है।

चौहान वंश के ऐतिहासिक स्रोत

1) सेवदी ताम्रपत्र अभिलेख – यह राजा रतन पाल सिंह का अभिलेख है। इस अभिलेख के अनुसार चौहान वंश की उत्पत्ति चाहमान नामक व्यक्ति से हुआ है।

2) अजमेर का अभिलेख – फिर अभिलेख यह विग्रहराज चतुर्थ का अभिलेख है इस अभिलेख में कहा गया है कि चौहान वंश की उत्पत्ति श्रीराम के इक्ष्वाकु वंश से हुई है।

3) बिजोलिया अभिलेख – राजा सोमेश्वर देव द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था। बिजोलिया अभिलेख के अनुसार चौहान वंश की स्थापना वासुदेव ने 551 ईसवी के आसपास की थी।

4) बरल अभिलेख – इस अभिलेख को पृथ्वीराज चौहान द्वारा उत्कीर्ण कराया गया था। इस अभिलेख में भी चौहान वंश का संस्थापक चाहमान नामक व्यक्ति को माना गया है।

5) वंश भास्कर – इसकी रचना सूर्यमल कवि द्वारा की गई है। इस पुस्तक में चौहान वंश की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताया गया है।

6) हम्मीर महाकाव्य – इस महाकाव्य की रचना नयन चंद्र सूरी द्वारा किया गया था। इस पुस्तक में चौहान वंश की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताया गया है।

7) पृथ्वीराज रासो – इस पुस्तक की रचना कवि चंदबरदाई द्वारा की गई है। इस पुस्तक में भी चौहान वंश की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताया गया है।

8) राजस्थान का इतिहास – इसकी रचना जेम्स टॉड द्वारा की गई थी। इस पुस्तक के अनुसार चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव को माना गया है।

Note:- प्रतिहार, परमार, चौहन और चालुक्य इन चारो राजपूत का जन्म अग्निकुण्ड से हुआ है।

मुख्य राजा

अजयराज द्वितीय – अजय राज द्वितीय ने अजयमेरु (अजमेर) नमक शहर बसाया था जिसे चौहान वंश की राजधानी बनाई।

अर्नोराज/अरुणोराज – इसने परमेश्वर महाराजाधिराज, परमभट्ठारक की उपाधि धारण की थी। अजमेर में इनके द्वारा आनासागर झील की स्थापना की गई परंतु बाद में इसी झील के पास मुगल बादशाह जहांगीर ने दौलतबाग का निर्माण करवाया था। अर्नोराज हत्या इसके पुत्र जगदेव के द्वारा की गई थी। इसलिए जगदेव को चौहान वंश में पितृहंता माना जाता है।

सिद्धराज –

विग्रहराज द्वितीय -इन

विग्रहराज चतुर्थ – इसका नाम विसलदेव भी था। यह चौहान वंश का सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। विग्रहराज चतुर्थ ने तोमर वंश के राजाओं से दिल्ली को छीन कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। इसको भी आपको ध्यान रखें इस का शासनकाल चौहान वंश का स्वर्णकाल कहा जाता है। इन्होंने संस्कृत में हरिकेलि नाटक की रचना की। सोमदेव नामक विद्वान किसके दरबार में रहते थे जिसने ललित विग्रहराज नाटक की रचना की। इनके दरबार में रहने वाले नरपति नाल्ह ने “बीसलदेव रासो” की रचना की थी। विग्रहराज चतुर्थ ने अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी जिसे बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया था जो राजस्थान की पहली मस्जिद मानी जाती है।

पृथ्वीराज तृतीय – पृथ्वीराज चौहान को रायपिथौरा के नाम से भी जाना जाता है। यह चौहान वंश का अंतिम शासक था। तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी में हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय की विजय एवं गोरी की हार हुई। तराइन (हरियाणा) के दूसरे युद्ध 1192 इसी में हुआ जिसमें गोरी की विजय हुई एवं पृथ्वीराज तृतीय की हार हुई। चंदबरदाई जिसकी रचना “पृथ्वीराज रासो” है।

पृथ्वीराज चौहान ने 1182 ई में चंदेल वंश के अंतिम राजा परमर्दीदेव को पराजित किया था और इसी युद्ध में परमर्दीदेव के प्रसिद्ध दो सेनानायक आलहा उदल की मृत्यु हो गई थी।

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