भारत के कुछ ऐतिहासिक ग्रंथ
Historical Books Of Jharkhand
जियाउद्दीन बरनी
यह एक प्रसिद्ध इतिहासकार थे। जियाउद्दीन बरनी को समकालीन इतिहासकारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसका जन्म दिल्ली के एक संपन्न परिवार में हुआ था। जियाउद्दीन बरनी के पिता जलालुद्दीन फिरोज खिलजी और अलाउद्दीन खिलजी के निजी तथा सबसे विश्वासपात्र कर्मचारियों में से एक थे। इसका राजनीतिक इतिहास का सफर गयासुद्दीन तुगलक के शासन काल से शुरू होता है। मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में जियाउद्दीन बरनी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।
बरनी ने मुहम्मद बिन तुगलक को दयावान और क्रूर दोनों तरह का शासक बताया है। बरनी के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक को इस्लामिक शरीयत के कानून का अच्छा ज्ञान नहीं था और वह कभी-कभी अपने फैसले स्वयं ले लेता था जो इस्लामिक उलेमा वर्ग के खिलाफ होते थे जिसमें उसकी खूब आलोचना भी होती थी। बरनी ने दो ग्रंथ की रचना फारसी में “तारीख ए फिरोजशाही” और “फतवा ए जहांदारी”।
बरनी प्रसिद्ध सूफी संत शेख निजामुद्दीन औलिया के परम शिष्य में से एक थे। वर्णी मुहम्मद बिन तुगलक के सभी विश्वास पात्र व्यक्तियों में से एक थे। तारीख ए फिरोजशाही में 1239 से लेकर 1359 ईसवी के मध्य का इतिहास विस्तार से बताया गया है जिसमें बलवन से लेकर फिरोज़ शाह तुगलक के शासन काल तक की घटनाओं का विस्तार से वर्णन देखने को मिलता है।
तारीख ए फिरोजशाही
इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद इलियट और डाउसन ने किया है।तारीख ए फिरोजशाही को तबकात ए नासिरी का उत्तर भाग माना जाता है क्योंकि इसके इतिहास की शुरुआत ठीक वहां से होती है जहां पर तबकात ए नासिरी का इतिहास समाप्त हो जाता है। इसलिए इतिहासकार ने तारीख ए फिरोजशाही को तबकात ए नासिरी का उत्तर भाग कहा है।
तारीख ए फिरोजशाही में अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था का विस्तार से वर्णन किया गया है। तारीख ए फिरोजशाही में मोहम्मद बिन तुगलक का मुद्रा व्यवस्था का भी विस्तार से वर्णन किया गया है इसमें कहा गया है कि प्रत्येक काफिर का घर टकसाल बन गया था।
अलबरूनी
इसका जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान के बरूनी में हुआ था बरूनी का अभी नाम ख्वारिज्म है। अलबरूनी का पूरा नाम अबू रेहान मोहम्मद अहमद अलबरूनी था। अलबरूनी प्रारंभ में ख्वारिज्म के शासक के यहां राजनयिक पद पर कार्य किया करता था।
संभवत 1016 ईस्वी में महमूद गजनबी के द्वारा ख्वारिज्म पर विजय प्राप्त की गई। उसी दौरान अलबरूनी से मोहम्मद गजनबी की मुलाकात हुई और अलबरूनी की प्रतिभा को देखकर मोहम्मद गजनबी ने उन्हें गजनी ले आया। मोहम्मद गजनबी के दरबार उठ भी फिरदोसी, उत्बी, वैहाकी और उनसुरी रहते थे उसी में अलबरूनी को शामिल किया गया।
अलबरूनी मोहम्मद गजनबी के साथ 1017 में भारत आया था। 1017 से 1030 ईस्वी के मध्य में वह भारत में रहा तथा इसी दौरान अलबरूनी ने तहकीक ए हिंद नामक पुस्तक की अरबी भाषा में रचना की। अलबरूनी पहले मुस्लिम विद्वान थे जिन्होंने हिंदू ग्रंथों का अध्ययन किया था। अलबरूनी के द्वारा लिखे गए तहकीक ए हिंद पुस्तक को किताब उल हिंद के नाम से भी जाना जाता है।
Trick:-मोहम्मद गजनबी के साथ FUFA भारत आया था। फारुकी (F) उत्बी (U) फिरदौसी (F) अलबरूनी (A)
तहकीक ए हिंद
तहकीक ए हिंद में भारत के समाज एवं संस्कृति के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है जिसमें अच्छाई और बुराई दोनों का मिश्रण देखने को मिलता है। अलबरूनी ने भारत में रहकर कई स्थानों की यात्रा की और धर्म, समाज, रीति रिवाज, अंधविश्वास, पवित्र स्थानों आदि के बारे में विस्तार से वर्णन किया है।
अलबरूनी ने तहकीक ए हिंद में भारतीयों के बारे में लिखा है कि भारतीय लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं उन्हें लगता है कि उनके जैसा देश पूरी दुनिया में नहीं है लेकिन जब उनसे किसी घटना के बारे में पूछा जाता है तो वह कहानियां करने लगते हैं उन्हें न तो अपने राजाओं का इतिहास पता है और ना ही किसी घटना का समय।
अलबरूनी ने आगे लिखा है जब दो ब्राह्मण बैठकर खाना खाते थे तो वह बीच में सफेद कपड़ा रख लेते थे ताकि एक दूसरे का शरीर आपस में ना मिले। अलबरूनी की मृत्यु गजनी में हुआ था।
मिनहाज उस सिराज
सिराज का जन्म 1193 ईस्वी में अफगानिस्तान के फिरोजपुर में हुआ था। मिराज का पूरा नाम अबू उस्मान मिनहाजुद्दीन बिन सिराजुद्दीन था। इसे नसरुद्दीन कुवाचा (मुल्तान और सिंध का शासक) जाने एक मदरसे का शिक्षक नियुक्त किया था। इल्तुतमिश ने जब कुवाचा को पराजित किया तो उसी समय इल्तुतमिश की मुलाकात सिराज से हुई थी। इल्तुतमिश ने सिराज को दिल्ली लेकर आया और अपना संरक्षण प्रदान किया।
1231 ईस्वी में इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर आक्रमण किया। उस समय मिनहाज उस सिराज उनके साथ में थे। ग्वालियर पर अधिकार करने के बाद पुलिस ने सिराज को ग्वालियर में काजी तथा इमाम के पद पर नियुक्त किया था।
रजिया सुल्तान के शासनकाल में सिराज को दिल्ली में एक मदरसे का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया था। बहराम शाह के शासनकाल में सिराज को मुख्य कार्य के पद पर नियुक्त किया गया था।
नसीर उद्दीन मोहम्मद के समय में सिराज को दरबारी कवि बनाया गया था। सिराज के द्वारा लिखा गया तबकात ए नासिरी पुस्तक नसरुद्दीन मोहम्मद को ही समर्पित है। तबकात ए नासिरी मैं नसरुद्दीन मोहम्मद को दिल्ली का सबसे आदर्श सुल्तान बताया गया है। सिराज की मृत्यु दिल्ली में बलबन के शासनकाल में हुई थी।
तबकात ए नासिरी
तबकात ए नासिरी की रचना फारसी भाषा में शिवराज ने 13वीं सदी में की थी। यह पुस्तक 23 अध्यायों में विभक्त है, इसमें तराइन के युद्ध तथ्य नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय आदि को ध्वस्त करने की जानकारी प्रदान की गई है। तबकात ए नासिरी, मोहम्मद गौरी के भारत विजय, कुतुबुद्दीन ऐबक तथा बख्तियार खिलजी के द्वारा किए गए आक्रमणों की जानकारी देता है।
इस पुस्तक में इल्तुतमिश के बारे में लिखा गया है कि कोई भी राजा इतना दयावान और विद्वानों और बड़ों के प्रति सहानुभूति रखने वाला नहीं हुआ।
Note:- हारने के बाद कुआं जाने अपने पुत्र को संधि प्रस्ताव लेकर इल्तुतमिश के पास भेजा था जिसे इल्तुतमिश ने ठुकरा दिया। इसके बाद कुवाचा ने सिंधु नदी में कूदकर आत्महत्या कर लिया था। इस तरह मुल्तान और सिंध पर इल्तुतमिश का आसानी से अधिकार हो गया। इसके बाद इल्तुतमिश ने अपने वजीर जुननैद को सिंध का राजा घोषित कर दिया था।
मलिक इसामी
इसका जन्म दिल्ली में एक संपन्न परिवार में हुआ था। मलिक सामी एक प्रसिद्ध इतिहासकार थे जिन्होंने सल्तनत कालीन शासकों के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख विस्तार से किया है। इसका वास्तविक नाम ख्वाजा अब्दुल्लाह मलिक इसामी था।
मोहम्मद बिन तुगलक ने जब राजधानी दिल्ली से दौलताबाद में स्थानांतरित किया उसी समय मलिक इसामी दिल्ली से दौलताबाद गए और फिर वहां के निवासी हो गए। मलिक इसामी को बहमनी राज्य के संस्थापक अल्लाहउद्दीन अहमद शाह ने अपने दरबार में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया था।
मलिक इसामी के द्वारा लिखा गया फुतुह उस सलातीन ग्रंथ अलाउद्दीन बहमन शाह को समर्पित है। इसामी के पूर्वज भारत के नहीं बल्कि बगदाद के रहने वाले थे।
फुतुह उस सलातीन
फुतुह उस सलातीन ग्रंथ में इस आदमी ने मोहम्मद बिन तुगलक को इस्लामिक दुनिया का सबसे मूर्ख शासक बताया है क्योंकि राजधानी स्थानांतरित करते समय असंख्य लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस पुस्तक में अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा देवगिरी आक्रमण का विस्तृत वर्णन किया गया है।
इब्नेनतूता
इसका जन्म अफ्रीका के मोरक्को में हुआ था। इसका वास्तविक नाम शेख फतेह अब्दुल्लाह या मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह इब्नेनतूता था। इसे सभी मुस्लिम विदेशी यात्रियों में सबसे महान माना जाता है। ये बहुत से कठिनाइयों का सामना करते हुए मक्का, ईरान, इराक, अफगानिस्तान होते हुए भारत पहुंचा था। 1135 ईस्वी में यह दिल्ली पहुंचे और उस समय यहां तुगलक वंश के शासक मोहम्मद बिन तुगलक का शासन था।
मोहम्मद बिन तुगलक ने इसे दिल्ली काजी बनाया था। काफी के पद पर लगभग 8 वर्ष तक रहे और अंत में उनको भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ा जिसके कारण इब्नेनतूता को मोहम्मद बिन तुगलक ने जेल में डाल दिया था। इब्नेनतूता भारत में 14 वर्ष रहे। 1342 में मोहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा था। इसकी मृत्यु मोरक्को में हुई थी।
किताब उल रेहला
इब्नेनतूता किताब उल रेहला की रचना अरबी भाषा में की थी। वैसे तो रेहला ग्रंथ में इब्नबतूता की यात्राओं का वर्णन किया गया है लेकिन इसमें सल्तनत कालीन इतिहास की जानकारी को भी विस्तृत रूप से बताया गया है। इस पुस्तक में सल्तनत कालीन डाक व्यवस्था का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।
मेगास्थनीज
मेगास्थनीज का जन्म 350 हिसाब पूर्व में एशिया माइनर आधुनिक तुर्की में हुआ था और यह फारस तथा बेबीलोन के शासक सेल्यूकस निकेटर के राजदूत थे जो मौर्य वंश के राजा चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए थे। उसी दौरान इन्होंने जो अपनी आंखों से देखा उसका विस्तार पूर्वक वर्णन अपने इंडिका नामक ग्रंथ में किया था।
मेगास्थनीज के इंडिका में जम्बू द्वीप का वर्णन मिलता है जिसे मेगास्थनीज ने इंडिका नाम से संबोधित किया है। मेगास्थनीज उस समय के जंबूद्वीप अर्थात आज के भारत की सीमाओं के बारे में बताते हैं कि इस देश का आकार चौकोर है पूर्व एवं दक्षिण सीमाएं समुद्र से लगती है। उत्तर में हिमोदोस यानी बर्फ का देश है lपश्चिम में सिंध दरिया बहता है। सिंध दरिया के दूसरे और आर्य देश अर्थात आर्यावर्त है जहां से पानी बहकर भारत के मैदानों में आता है।
इस देश में बड़े-बड़े पर्वत है और विशाल मैदान भी है जहां पर मिट्टी बहुत उपजाऊ है। यहां के हाथी बहुत ताकतवर है जिन्हें पकड़कर सेना के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और इन्हीं हाथियों के कारण यहां के राजा युद्ध को आसानी से जीत लेते हैं। यहां के लोग मजबूत कद काठी के हैं इसी कारण व अन्य लोगों से अलग ही पहचान में आ जाते हैं। सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
आगे मेगास्थनीज लिखते हैं यहां पर अकाल नहीं पड़ता है और हल जोतने वाले को पवित्र मनुष्य माना जाता है। दुश्मन देश का राजा भी हमला करते समय ना तो फसल को बर्बाद करता है और ना ही किसी किसान को चोट पहुंचाता है। यहां के लोग बहुत सौभाग्य शाली है, सांस लेने के लिए शुद्ध वायु मिलता है और दुनिया का सबसे उत्तम पानी पीने को मिलता है।
भारत की सामाजिक स्थिति मेगास्थनीज आगे लिखते हैं कि राजा सेंट्रोकोट्स (चंद्रगुप्त मौर्य) ने आदेश जारी किया है कि किसी भी व्यक्ति को दास नहीं बनाया जाएगा चाहे वह किसी भी स्थिति में क्यों ना हो।
भारतीय समाज का वर्गीकरण
उस समय भारतीय समाज सात भागों दार्शनिक किसान चरवाहे कारीगर सैनिक निरीक्षक और पंच में विभाजित था।
दार्शनिक – यह समाज के सबसे ज्ञानी व्यक्ति होते थे और समाज में सबसे अधिक मान सम्मान इनका ही होता था। दार्जिलिंग बोता (बुद्ध) को अपना आदर्श मानते थे तथा उसी का गुणगान किया करते थे।
किसान – खेती का काम करने वाले होते थे जिन्हें दार्शनिकों के बाद समाज में सबसे पवित्र व्यक्ति माना जाता था।
चरवाहे – पशुओं को चारा नाइन का काम होता था और यह गांव के बाहर तंबू लगाकर रहते थे।
कारीगर – इनसे राजा कर नहीं लेता था बल्कि इन्हें जीवन यापन के लिए भत्ता भी दिया जाता था क्योंकि युद्ध के समय यह हथियार बनाने का काम करते थे।
सैनिक – समाज में किसानों के बाद सबसे अधिक संख्या सैनिकों की थी।
निरीक्षक – इनका काम किसी भी महत्वपूर्ण घटना को जानकारी राजा तक पहुंचाना होता था।
पंच – यह समाज का सबसे छोटा समूह था लेकिन सबसे ज्यादा महत्व इसी समूह को दिया जाता था क्योंकि राजा के सलाहकार इसी समूह से चुने जाते थे।
मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में किसी भी वर्ग व्यवस्था और समाज में छुआछूत का वर्णन नहीं किया है।
पाटलिपुत्र के बारे में
मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र को अपने इंडिका ग्रंथ में पोलीब्रोथा के नाम से संबोधित किया है। पोलीब्रोथा विशालतम नगर है इस नगर की लंबाई 80 स्टेडिया अर्थात 15 किलोमीटर तथा चौराहा चौड़ाई 15 स्टेडिया था 3 किलोमीटर तक है। इसके चारों ओर लकड़ी की सुरक्षा दीवार है और इस दीवार पर 570 मीनार तथा 64 द्वार है। जहां सुरक्षाकर्मी पहरा देते हैं। दीवार के पास ही गहरी खाई बनाई गई है जिसमें शहर का गंदा पानी आ कर गिरता है।
इस नगर को राजा (सेंट्रोकोट्स) चंद्रगुप्त मौर्य पालीबुत के नाम से संबोधित करते थे। यहां के लोग चोरी नहीं करते थे और बिना चौकसी के घर को खुला छोड़ जाते हैं। राजा (सेंट्रोकोट्स) चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में अगर कोई व्यक्ति झूठी गवाही देता है तो उसका अंग काट दिया जाता है और जो व्यक्ति किसी का अंग-भंग करता था उसका वही अंग काट दिया जाता था।
अगर कोई व्यक्ति किसी कारीगर का हाथ काट दे तोड़ दे या फिर आंख फोड़ दे तो ऐसे व्यक्ति को मृत्यु दंड दिया जाता था। राजा दिन में नहीं सोता था और रात में वह अलग-अलग स्थानों पर सोता था ताकि कोई उसे मार ना दे। मेगास्थनीज के इंडिका में चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) के नाम का कोई उल्लेख नहीं है जो बहुत आश्चर्य की बात है।
फहियान
चीनी भाषा में था का अर्थ होता है धम्म तथा हियान का अर्थ होता है गुरु। इस तरह फाहियान का अर्थ हुआ धन गुरु। फहियान चीन के उयंग नामों के स्थान के रहने वाले थे और वहीं पर उनका जन्म हुआ था। फाहियान के बचपन का नाम कुंभ था। फहियान बचपन में ही एक गंभीर रोग से ग्रस्त हो गए थे और इसी कारण उनके पिता ने उन्हें भी भिक्खू संघ में भेज दिया था फाहियान ने भिक्खू संघ में रहकर धर्म का ज्ञान शिखा और समण ( विहार का मालिक) बन गए।
अगले जन्म में फाहियान जिस विहार में रहते थे वहां पर एक दिन चोरों ने धावा बोल दिया था। फाहियान ने उनसे कहा जितना ले जाना चाहते हो उठा ले जाओ। पिछले जन्म में दान न देने का यह फल है कि तुम इस जन्म में दरिद्र हो गए हो। इस जन्म में तुम दूसरों की चोरी करते फिरते हो अगले जन्म में इससे बड़ा दुख तुम पाओगे मुझे तो यही सोच कर दुख होता है। फाहियान की यह बात सुनकर चोर बिना चोरी किए ही लौट गए और फाहियान के इस काम की प्रशंसा पूरे भिक्खू संघ ने की।
फाहियान एक दिन त्रिपिटक का अध्ययन कर रहे थे जिसमें विनय पिटक अधूरा था। जिसका सीधा संबंध भिक्खू संघ से होता है फाहियान ने मन में संकल्प लिया कि मैं भारत से विनय पिटक को लाकर पूरे देश में उसका प्रचार करूंगा।
फाहियान चांगमान के विहार में थे, उसी दौरान उनकी मुलाकात तावचिंग, हैकिंग, हेयींग और हेवेई से हुई। पांचों भिक्खू ने मिलकर यह निश्चय किया कि हम सब लोग भारत की यात्रा पर चलेंगे तथा वहां से त्रिपिटक की प्रतियां अपने देश में लाएंगे और उनका पूरे देश में प्रचार करेंगे। पांचों भिक्खू ने 399 ईसवी में चांगमान से भारत के लिए यात्रा शुरू की।
भारत यात्रा
चांगमान से लंग, किनकी, नवतन होते हुए चंगाई पहुंचे जहां पर फाहियान की मुलाकात चेयेन, हैकिन सांगशाओ, पावयून, सांगकिंग से हुई जो फाहियान की भारत यात्रा में शामिल हुए। चंगाई से ये तनहांग पहुंचे जो चीन की दीवार के पश्चिम दिशा में पड़ता है। तनहांग से फाहियान अपने साथियों के साथ गोबी मरुस्थल की तरफ चल पड़े जिसे पार करने में उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। फाहियान आगे लिखते हैं कि ना ऊपर कोई चिड़िया उड़ती है और नो नीचे कोई जंतु दिखाई पड़ता है। आंख उठाकर जिधर देखो कहीं किसी ओर जाने का मार्ग नहीं सूझता। बहुत ध्यान देने पर भी कोई मार्ग नहीं मिलता। हां मुर्दों की सूखी हड्डियों के चिन्ह अवश्य मिलते हैं।
गोबी मरुस्थल को पार करके फाहियान शेनशेन जनपद पहुंचे। शेनशेन से ऊए देश पहुंचे और ऊए से खूतन जनपद पहुंचे खूतन जनपद के बारे में अपने लेखों में लिखा है कि यह जनपद बहुत वैभवशाली है। यहां पर रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है और भगवान बुद्ध की मूर्ति रथ में रखी जाती है। दोनों ओर दो बोधिसत्व की मूर्तियां रखी जाती है। सभी मूर्तियां सोने और चांदी से निर्मित होते हैं नए कपड़े धारण करता है और अपने हाथ से फूल बरसाता है।
खूतन के बाद फाहियान जिहो, किचा, तोले, उद्यान, सुहोतो के बाद गांधार पहुंचे जहां पर सम्राट अशोक के वंशज धम्मवर्धन का शासन था। गांधार से फाहियान तक्षशिला पहुंचे और तक्षशिला से पुरुषपुर अर्थात आज के पेशावर जनपद पहुंचे। जहां पर फाहियान ने 400 हाथ ऊंचा और अनेक रत्नो से जड़ित राजा कनिष्क के द्वारा बनवाया गया धम्म स्तूप देखा जो जंबूद्वीप का सबसे सुंदर स्तूप माना जाता था । भगवान बुध का भिक्खापात्र भी इसी जनपद में है। फाहियान के कुछ साथियों ने भगवान बुध के भिक्खापात्रकी पूजा की और वापस अपने देश लौट गए।
पेशावर से फाइनल नगरहरा जनपद पहुंचे और वहां से हिमालय की पहाड़ियों में चले गए। जहां पर अत्यधिक ठंडी हवा चल रही थी। फाहियान के साथी ठिठुर कर मूक रह गए। हैकिंग बीमार हो गया और उसने फाहियान से कहा मैं तो जी नहीं पाऊंगा तुमसब तत्काल यहां से भागो ऐसा ना हो कि सब के सब यही मर जाएं। इतना कह कर वह मर गया था। फाहियान उसके शव को पीट पीट कर रोने लगा कि मुख्य उद्देश्य पर पानी फिर गया हम क्या करें?
इसके बाद फाहियान लोई, पोना, हिंतू होते हुए पंजाब पहुंचे जहां पर बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार था। पंजाब के बाद फाहियान मथुरा (मताऊला) पहुंचे जहां पर उन्होंने कई विहार को देखा जिनमें तीन हजार से ज्यादा भिक्खू रहते थे और यहां के सभी राजा बुद्ध के अनुयाई थे। फाहियान आगे लिखते हैं कि इस देश का कोई निवासी ना जीव हत्या करता है ना मद्यपान करता है और ना लहसुन प्याज खाता है।
प्राचीन भारत के राजवंश एवं राजधानी का Tricks
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