झारखंड के जनजाति
Gond Tribes गोंड जनजाति
परिचय
भारत मे भील के बाद सबसे बड़ी दूसरी जनजाति गोंड है। गोंड की सबसे ज्यादा जनसंख्या मध्य प्रदेश में है। झारखंड में गोंड जनजाति का जमाव दक्षिण भाग में है। ये गुमला सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, सरायकेला-खरसवाँ में पाए जाते। पलामू और राँची में भी इसकी कुछ आबादी है।
इनका मूल निवास स्थान गोंडवाना (महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश) माना जाता है। ये जनजाति 5वीं और 6ठी शताब्दी में गोदावरी नदी के किनारे किनारे के पहाड़ों में फैल गए। इस तरह ये जनजाति दक्षिण से मध्य भारत मे फैल गए। और मध्य भारत से होते हुए झारखंड में फैल गए।
गोंड शब्द की उत्पत्ति “गुण्ड” शब्द से हुई है जो तेलगु शब्द “कोड” का अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है पहाड़। गोंड जनजाति खुद को कोईतुरे/कोयतोर कहलाना पसंद करते है इसका अर्थ होता है पर्वतवासी मनुष्य
भाषा
इस जनजाति की मूल भाषा गोंडी है जो विलुप्त होने के कगार पर है। गोंडी भाषा तेलुगु भाषा से मिलती जुलती है। गोंडी द्रविड़ परिवार की भाषा है। सामान्यतः झारखंड में गोंड लोग नागपुरी/सादरी भाषा बोलते है।
धार्मिक जीवन
इनके प्रमुख देवता ठाकुर देव (सूर्य) जिसे बुढा देव भी कहा जाता है तथा ठाकुर देई (धरती) है। इनके अलावे दूल्हा देव, नारायण देव, नाग देव परसापेन गोंड जनजाति के कुल देवता होते है। बैगा इनके धार्मिक प्रधान होते है। बैगा के सहायता के लिए “मति” का पद होता है।
आर्थिक जीवन
गोंड सामान्यतः खेतिहर होते है। इनमे दहिया कृषि (स्थान्तरित कृषि) की परंपरा पाई जाती है जिसे दीपा या बेवार कहा जाता है। पेशा के आधार पर गोंड जनजाति के निम्न वर्ग पाए जाते है:-
a) ओझा – ये तांत्रिक कर्म का कार्य करते है।
b) अगरिया – इसकी उत्पत्ति आग से मानी जाती है। इन्हें लोहे की खोज करने वाली जाती मानी जाती है। ये लौहकर्म करते है।
c) सोलहास – ये बढ़ई का काम करते है।
d) परधान – ये मंदिर में पूजा-पाठ करते है।
e) नगारची या कोयला भूतिस – ये नगर में नृत्य-गान करते है।
सामाजिक जीवन
गोंड समाज मे संयुक्त परिवार की परंपरा है। ये लोग कई शाखाओं में बँटे हुए मिलते है। एक शाखा के सभी लोगो को भाईबंद कहा जाता है। गोंड जनजाति का युवागृह घोटुल कहलाता है। गोंडों के प्रमुख गोत्र होते है:- नेताम, टेकाम, कुंजाम, मरकाम, माँझी, मंडावी, कोमर्रा इत्यादि।
गोंड जनजाति में वधुमूल्य देने की परम्परा है जिसे ये दूध बंध कहते है। इनमे विवाह के कई प्रकार पाए जाते है:-
भगेली विवाह – इस विवाह में लड़की भाग कर लड़के के घर आ जाती है। यह हठ विवाह का गोंड रूप है।
लमसेना विवाह – इस विवाह में वधूमूल्य न चुका पाने की स्थिति में वर कन्या के पिता के घर रहकर उनके कार्य मे हाथ बटाता है। पिता की संतुष्टि के बाद (एक दो वर्ष में) वर कन्या को लेकर अपने घर वापस आ जाता है।
पठौनी विवाह – इस विवाह में कन्या पक्ष बारात लेकर वर पक्ष के घर आता है।
चड़ विवाह – इस विवाह में वर पक्ष बारात लेकर कन्या पक्ष के घर आता है।
पायसोतुर विवाह – यह विवाह अपहरण विवाह को गोंड रूप है।
दुध लौटावा विवाह – दूध लौटावा विवाह अपने निकट संबंधियों से किया जाता है।
गोंड जनजाति के वर्ग
गोंड जनजाति में तीन वर्ग पाए जाते है :- राजगोंड, पटेलगोंड और धुरगोंड/कमिया गोंड
राजगोंड – ये गोंड के अभिजात्य (राजा) वर्ग है। 15 वीं से 17 वीं शताब्दी तक गोंडवाना में राजगोंड का सफल राज्य स्थापित था। राजगोंड राजाओं ने बड़े-बड़े मंदिर, जलाशय और किले बनवाये है जो आज भी मौजूद है। 15वीं सदी में गोंडवाना के खेरला, गढ़मंगला, देवगढ़ और चाँदागढ़ (लेखक का ससुराल) में गोंड राजाओं का शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित था। गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर को बसाया था तथा गोंडवाना की राजधानी नागपुर को बनाया था। महारानी दुर्गावती भी गोंड रानी थी जिसने अकबर की सेना को परास्त की थी।
पटेलगोंड – पटेलगोंड बड़े रैयत या जमींदार वर्ग है।
धुरगोंड/कमिया गोंड – ये छोटे कृषक या खेतिहर मजदूर वर्ग है। इनकी उत्पत्ति राजपूत और गोंड के मिश्रण से मानी जाती है।
गोंड के मुख्य त्यौहार
मेघनाद बिदरी, करमा, बकपंथी, हरदिली, नवाखानी, छेरता, जवारा, मड़ई।
गोंड के प्रमुख नृत्य-गान
सैला, करमा, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, सजनी, सुआ, दीवानी और एबालतोइ है। सजनी और दीवानी स्त्री प्रधान नृत्य है। गोंड जनजाति में “खहुलपाता” मृत्युगान गाने की परंपरा है।
गोंड जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1) झारखंड की सभी जनजातियों में सबसे ज्यादा मद्यपान का प्रचलन गोंड जनजाति में है।
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