झारखंड के लोकृत्य
Folk Dance Of Jharkhand
छऊ नृत्य
छऊ, संस्कृत के छद्म शब्द का अपभ्रंश है, इसका शाब्दिक अर्थ छाया या मुखौटा होता है। इस नृत्य का जन्म स्थान सरायकेला है। यही से यह नृत्य मयूरभंज (उड़ीसा) और पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) पहुंचा। अभी यह नृत्य सरायकेला, मयूरभंज और पुरुलिया शैली में बंट गया है। सरायकेला और पुरूलिया शैली में मुखौटा का इस्तेमाल अनिवार्य होता है । जबकि मयूरभंज शैली में मुखौटा का इस्तेमाल नहीं होता है। मयूरभंज छऊ और सरायकेला छऊ की नृत्य शैली लगभग समान है।
झारखण्ड के अन्य लोकनृत्य में सिर्फ भाव की अभिव्यक्ति होती है उसके साथ कोई प्रसंग जुड़ा नही होता है। छऊ नृत्य में भाव अभिव्यक्ति के साथ प्रसंग भी जुड़ा होता है। यह प्रसंग रामायण, महाभारत और पुराण से लिया जाता है। इस नृत्य को संपन्न कराने के लिए गुरु की उपस्थिति भी अनिवार्य है। छऊ नृत्य में हर वो विधा विद्यमान है जो इसे शास्त्रीय नृत्य के समरूप बनाता है इसलिए इसे अर्द्ध-शास्त्रीय नृत्य माना जाता है।
Chhau is a corruption of the Sanskrit word pseudo, which literally means shadow or mask. The birthplace of this dance is Seraikela. From here this dance reached Mayurbhanj (Orissa) and Purulia (West Bengal). Presently this dance is divided into Seraikela, Mayurbhanj and Purulia styles. Use of mask is mandatory in Seraikela and Purulia style. Whereas in Mayurbhanj style the mask is not used. The dance styles of Mayurbhanj Chhau and Seraikela Chhau are almost similar.
In other folk dances of Jharkhand, there is only expression of feelings and there is no context associated with it. In Chhau dance, there is context associated with the expression of feelings. This incident is taken from Ramayana, Mahabharata and Purana. The presence of a Guru is also mandatory to perform this dance. Every genre is present in Chhau dance which makes it similar to classical dance, hence it is considered as semi-classical dance.
राजपरिवार का संरक्षण – इस नृत्य को सरायकेला रियासत के राजपरिवार ने संरक्षण प्रदान किया है। 1938 में पहली बार इस नृत्य का प्रदर्शन सरायकेला के राजकुमार सुधेंदु नारायण शाहदेव ने यूरोप में किया। आजादी के बाद बिहार सरकार ने इस नृत्य को संरक्षण दिया और इसका प्रदर्शन देश विदेश में कराया। झारखंड बनने के बाद झारखंड सरकार ने छऊ महोत्सव की शुरुआत की और इसे राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया।
Patronage of the Royal Family – This dance has been patronized by the royal family of Seraikela princely state. This dance was performed for the first time in Europe in 1938 by Prince Sudhendu Narayan Shahdev of Seraikela. After independence, the Bihar government patronized this dance and got it performed in the country and abroad. After formation of Jharkhand, Jharkhand government started Chhau Mahotsav and gave it the status of state festival.
छऊ नृत्य नृत्य की धाराएं – इस नृत्य की दो धाराएं है हातियार धारा और काली भंग धारा। हातियार धारा में वीर रस की प्रधानता है। इस में ओज गुण की प्रधानता होती है तथा ये ज्यादा लोकप्रिय है। कालीभंग धारा में श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। यह नृत्य राज्य के अन्य लोकनृत्य से भिन्न है।
Chhau dance dance streams – This dance has two streams, Hatiyar Dhara and Kali Bhang Dhara. The heroic spirit predominates in the Hatiyar stream. Ojas quality predominates in this and it is more popular. Shringaar Rasa predominates in Kalibhang stream. This dance is different from other folk dances of the state.
छऊ नर्तक को पदमश्री- अब तक 7 झारखंडी को छऊ नृत्यकला के क्षेत्र में पदमश्री पुरस्कार मिल चुका है। सुधेंदु नारायण सिंह (1992), केदारनाथ साहू (2005), श्यामचरण पति (2006), मंगला प्रसाद मोहंती (2008), मकरध्वज दारोघा (2011), गोपाल प्रसाद दुबे (2012) और शशधर आचार्य (2020) को।
Padmashree to Chhau dancer- Till now 7 Jharkhandis have received Padmashree award in the field of Chhau dance. Sudhendu Narayan Singh (1992), Kedarnath Sahu (2005), Shyamcharan Pati (2006), Mangala Prasad Mohanty (2008), Makardhwaj Darogha (2011), Gopal Prasad Dubey (2012) and Shashadhar Acharya (2020).
छऊ नृत्य की कुछ विशेषताएं (Some features of Chhau dance)
🪢 यह नृत्य रात को किया जाता है। यह नृत्य किसी खुले मैदान में किया जाता है जिसे अखरा या असर कहा जाता है।
🪢 This dance is performed at night. This dance is performed in an open field called Akhara or Asar.
🪢छऊ नृत्य में गायन नही होती है तथा छऊ एक पुरुष प्रधान नृत्य है।
🪢There is no singing in Chhau dance and Chhau is a male dominated dance.
🪢 यह नृत्य झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल में वसंत उत्सव के समय चैत्र पर्व में किया जाता है।
This dance is performed in Chaitra festival during the spring festival in Jharkhand, Orissa, West Bengal.
🪢 नृत्य के माध्यम से Martial Arts, Acrobatics, Athletes का प्रदर्शन किया जाता है।
🪢 Martial Arts, Acrobatics, Athletes are demonstrated through dance.
🪢 यह सदान और आदिवासी दोनों का नृत्य है।
🪢 This is the dance of both Sadan and tribal people.
🪢 इसमें लास्य भाव का अभाव तथा तांडव भाव की प्रचुरता पाई जाती है।
🪢 There is lack of Lasya Bhava and abundance of Tandava Bhava in it.
अन्य महत्वपूर्ण छऊ नर्तक
💕 प्रभात कुमार महतो
💕 कमला चरण पति
💕 तपन पटनायक – इसे 2022 में संगीत नाटक एकेडमी पुरस्कार प्रदान किया गया। छऊ महोत्सव को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिलाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। यह सरायकेला खरसावां जिला के निवासी है।
🌸 Tapan Patnaik – Awarded the Sangeet Natak Academy Award in 2022. He has an important contribution in giving Chhau Mahotsav the status of a state festival. He is a resident of Seraikela Kharsawan district.
छऊ नृत्य से संबंधित शब्दावली
a) उफ्लिस – ग्रामीण युवती के दैनिक जीवन के दैनिक कार्य पर आधारित भंगिमाएं।
a) Uflis – gestures based on the daily routine of a rural girl’s life.
b) टोपकस – नृत्य के दौरान जानवरों की शैली के अनुरूप चाल।
b) Topkas – animal-style movements during the dance.
c) खेल – नृत्य के दौरान युद्ध की तकनीक का खेल कहा जाता है।
c) Khel – The technique of fighting during dance is called Khel.
d) महापात्रा/महाराणा/ सूत्रधार – मुखौटा बनाने वाले कुशल कारीगर महापात्रा, महाराणा या सूत्रधार कहलाता है।
d) Mahapatra/Maharana/Sutradhar – Skilled artisans who make masks are called Mahapatra, Maharana or Sutradhar.
e) चेलिस – नृत्य के दौरान पक्षियों की शैली के अनुरूप चाल।
e) Chellis – Movements similar to the style of birds during dance.
छऊ नृत्य संस्थान
छऊ कला केंद्र सरायकेला – छऊ कला केंद्र सरायकेला की स्थापना 1960 में सरायकेला और मयूरभंज में की गई।
Chhau Art Center Seraikela – Chhau Art Center Seraikela was established in 1960 at Seraikela and Mayurbhanj.
मानभूम छऊ नृत्य कला केंद्र – यह संस्थान सिल्ली में अवस्थित है।
Manbhum Chhau Dance Art Center – This institute is located in Silli.
National Centre For Chhau Dance- संगीत नाटक अकादमी द्वारा उड़ीसा के बारीपदा में इसे बनाया गया है।
National Center For Chhau Dance- It has been created by Sangeet Natak Akademi in Baripada, Orissa.
सरायकेला और मयूरभंज छऊ नृत्य प्रतिष्ठान – ओडिशा सरकार ने 1960 में सरायकेला में सरकारी छऊ नृत्य केंद्र और 1962 में बारीपदा में मयूरभंज छऊ नृत्य प्रतिष्ठान।
Seraikella and the Mayurbhanj Chhau Nritya Pratisthan – The Government of Odisha established the Government Chhau Dance Centre in 1960 in Seraikella and the Mayurbhanj Chhau Nritya Pratisthan at Baripada in 1962.
छऊ नृत्य से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1. 1941 में इस नृत्य को महात्मा गांधी के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।
1. This dance was presented to Mahatma Gandhi in 1941.
2. बामनिया छऊ नृत्य महोत्सव पश्चिम बंगाल में आयोजित एक नृत्य महोत्सव है।
2. Bamnia Chhau Dance Festival is a dance festival organized in West Bengal.
3. छऊ नृत्य में युद्ध और सैनिक की स्थिति को व्यक्त कराने के लिए धमसा वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
3. In Chhau dance, Dhamsa instrument is used to express the state of war and soldier.
4. झारखंड के खूँटी जिला में छऊ की एक विशेष प्रकार की शैली का विकास हुआ है जिसे “सिंगूआ छऊ” के नाम से जाना जाता।
4. A special type of style of Chhau has developed in Khunti district of Jharkhand which is known as “Singua Chhau”.
5. छऊ नृत्य को 2010 में UNESCO द्वारा प्रकाशित अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची (Intangible Cultural Heritage List) में शामिल किया गया है।
5. Chhau dance has been included in the Intangible Cultural Heritage List published by UNESCO in 2010.
6. छऊ मुखौटा के लिए पुरुलिया को जीआई टैग मिला है। यह मुखौटा मिट्टी से बनाया जाता है
6. Purulia gets GI tag for Chhau mask. This mask is made from clay.
7. छऊ नृत्य में नाट्य शास्त्र में वर्णित दो भाव में से लास्य भाव की कमी और तांडव भाव की प्रचुरता दिखाई पड़ती है है।
7. In Chhau dance, out of the two expressions mentioned in Natya Shastra, there is lack of Lasya expression and abundance of Tandava expression.
पाइका नृत्य – झारखंड में प्रचलित यह एक ओजपूर्ण नृत्य है। इसमें वीर रस की प्रधानता होती है। इस नृत्य में नर्तक सिपाही की वेशभूषा में नृत्य करता है। यह गीतरहित नृत्य है यह नृत्य गीत के बिना संपन्न होता है, नर्तकों के हाथ में तलवार और ढाल रहता है। यह एक पुरुष प्रधान नृत्य है। इस नृत्य में मार्शल आर्ट्स का संयोजन रहता है।
इस नृत्य में नर्तक पगड़ी पहनते है जिसमे कलगी या मोर पंख लगा रहता है, पगड़ी में मोर पंख या कलगी अनिवार्यतः होता है। इस नृत्य में नर्तक पांच,सात या नौ के जोड़े में रहते है। यह नृत्य सदान और आदिवासी दोनो में पाई जाती है। मुंडा समुदाय में इस नृत्य का प्रचलन विशेष रूप से मिलता है। रामदयाल मुंडा ने नेतृत्व में झारखंड के पाइका दल का मंचन 1987 में रूस में आयोजित भारत महोत्सव के दौरान हुआ था जिससे इस नृत्य की चर्चा विदेशों में हुई थी।
Paika Dance – This is an energetic dance popular in Jharkhand. Heroic essence predominates in it. In this dance the dancer dances in the costume of a soldier. This is a songless dance. This dance is performed without songs, the dancers hold sword and shield in their hands. It is a male dominated dance. There is a combination of martial arts in this dance.
In this dance, the dancers wear a turban which has a kalgi or peacock feather attached to it, peacock feather or kalgi is mandatory in the turban. In this dance the dancers remain in pairs of five, seven or nine. This dance is found in both Sadan and tribe. This dance is especially prevalent in the Munda community. Jharkhand’s Paika Dal, led by Ramdayal Munda, was staged during the Bharat Mahotsav held in Russia in 1987, due to which this dance became famous abroad.
नटुआ नृत्य – यह पंचपरगना क्षेत्र में सदानो के बीच प्रचलित नृत्य है। यह”नट” शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है नर्तक। यह पुरुषप्रधान नृत्य है। इस नृत्य में श्रृंगार और वीर रस का संगम मिलता है। यह एकल नृत्य है जो सिर्फ एक नर्तक द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य में नर्तक कलगा (पगड़ी जिसमे पंख लगा होता है)पहनते है। इसमे नर्तक अपने कलाबाजी के साथ युद्ध मैदान में दुश्मन से युद्ध का प्रदर्शन करता है।
Natua Dance – This is a dance popular among Sadano in Panchpargana region. It is derived from the word “Nat” which means dancer. This is a male-dominated dance. In this dance there is a confluence of makeup and heroic spirit. It is a solo dance performed by just one dancer. In this dance the dancers wear Kalga (turban with feathers attached). In this, the dancers display their acrobatics and fight against the enemy in the battlefield.
कली नृत्य – यह स्त्री प्रधान नृत्य है। इस नृत्य को “नचनी-खेलाड़ी” भी कहा जाता है। इस नृत्य को प्रस्तुत करनेवाली मुख्य नर्तकी को कली या खेलाड़ी कहा जाता है। यह नृत्य सदानो में प्रचलित है। इस नृत्य में श्रृंगार रस और भक्तिरस का संगम पाया जाता है। इस नृत्य में राधा-कृष्ण के प्रेम-प्रसंग गीत की प्रमुखता पाई जाती है। इस नृत्य में कली भरपूर श्रृंगार करती है तथा बालो की सजावट में विशेष ध्यान दिया जाता है, कली सर पे मुकुट पहनती है।
Kali Dance – This is a female dominated dance. This dance is also called “Nachni-Kheladi”. The main dancer who performs this dance is called Kali or Kheladi. This dance is popular among Sadans. In this dance, a confluence of Shringaar Rasa and Bhakti Rasa is found. In this dance, the love song of Radha-Krishna has prominence. In this dance, Kali wears a lot of makeup and special attention is paid to the decoration of hair.
भादूरिया नृत्य
भादूरिया नृत्य – सदानो के बीच प्रचलित यह नृत्य भादो संक्रांति में मछुआ महोत्सव में किया जाता है। इस नृत्य में दैनिक मनुष्य के जीवन शैली को प्रस्तुत किया जाता है। इस उत्सव में भादु देवी की प्रतिमा बनाई जाती है और इसका विसर्जन किया जाता है। प्रसाद के रूप में खिचड़ी का वितरण किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष ही स्त्री का रूप धारण करता है।
Bhaduria dance – This dance popular among the Sadans is performed in the Fishermen Festival during Bhado Sankranti. In this dance the daily life of man is presented. In this festival, an idol of Bhadu Devi is made and it is immersed. Khichdi is distributed as Prasad. In this dance the man takes the form of a woman.
झूमर नृत्य – यह पूर्वी भारत मे प्रचलित सदानो का नृत्य है। जो बंगाल, बिहार, झारखंड,उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और असम में प्रचलित है। असम के चाय बागान क्षेत्र में यह काफी लोकप्रिय नृत्य है। भीमबेटका गुफा में इस नृत्य का चित्रण मिलता है। यह फसल कटाई के समय किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। यह नृत्य खुले स्थानों में किया जाता है। इस नृत्य के कई प्रकार है :-
Jhumar Dance – This is a traditional dance popular in Eastern India. Which is prevalent in Bengal, Bihar, Jharkhand, Orissa, Chhattisgarh and Assam. This is a very popular dance in the tea plantation region of Assam. A depiction of this dance is found in the Bhimbetka cave. This is a group dance performed at the time of harvest. This dance is performed in open spaces. There are many types of this dance:-
a) मर्दानी झूमर – यह पुरुष प्रधान झूमर नृत्य है। मुकुन्द नायक इस नृत्य के प्रमुख कलाकार है। इस नृत्य का प्रदर्शन रात में खुले मैदान में किया जाता है।
a) Mardaani Jhumar – This is a male dominated Jhumar dance. Mukund Nayak is the main artist of this dance. This dance is performed in the open field at night.
b) करिया झूमर – यह स्त्री-प्रधान झूमर नृत्य है। महिलाएँ दलों में इस नृत्य को प्रस्तुत करती है। सबसे आगे रहने वाली महिला करताल लिए रहती है और पूरे नृत्य का नेतृत्व करती है। इस नृत्य का वादक पुरुष होता है। महिलाओं का श्रृंगार इस नृत्य में सामान्य होता है। इस नृत्य को जनानी झूमर के नाम से भी जाना जाता है।
b) Kariya Jhumar – This is a female-dominated Jhumar dance. Women perform this dance in groups. The woman in the lead holds the Kartal and leads the entire dance. The performer of this dance is a man. Women’s makeup is normal in this dance. This dance is also known as Janani Jhumar.
c) बँगला झूमर- इस झूमर नृत्य की प्रस्तुति महिला और पुरुष दोनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।,मगर पुरुषों की प्रधानता दिखती है। नर्तकियाँ पुरुषों के साथ जुड़कर नृत्य नही करती है।
c) Bangla Jhumar- This Jhumar dance is performed collectively by both men and women, but men appear to have predominance. Dancers do not dance in association with men.
ऑंगनई नृत्य – यह नृत्य आँगन में होने के वजह से ऑंगनई नृत्य कहा जाता है। यह नृत्य सदानो में प्रचलित है। यह महिला प्रधान नृत्य है। ऑंगनई नृत्य को कई रूपो में किया जाता है जैसे चढ़नतरी, पहिलसाँझ, अधरतिया, भिनसरिया, बिहनिया, उधउवा, ठढ़िया, लहसुआ, खेमटा,रासक्रीड़ा, ठहरुआ। यह वर्षा ऋतु का नृत्य है जो आषाढ़ महीने से शुरू होकर देवउठान (कार्तिक) पर्व तक किया जाता है। इस नृत्य में थपरी राग (नृत्य-गान के समय ताली का प्रयोग) का समावेश मिलता है।
Aongnai Dance – This dance is called Aongnai Dance because it takes place in the courtyard. This dance is popular among Sadanos. This is a female dominated dance. Aongnai dance is performed in many forms like Chadhantari, Pahilsanjh, Adhartiya, Bhinsariya, Bihaniya, Udhuwa, Thadhiya, Lahsua, Khemta, Raskrida, Tharua. This is a dance of the rainy season which starts from the month of Ashadha till the festival of Devuthan (Kartik). Thapari raga (use of clapping during dance and song) is included in this dance.
अलकप नृत्य – यह नृत्य झारखंड के राजमहल पहाड़ियों के इर्द-गिर्द तथा बंगाल के मुर्शिदाबाद और मालदा जिले में प्रचलित है। यह नृत्य नाटक के प्रदर्शन के साथ किया जाता है। इस नृत्य में एक या दो मुख्य गायक होते हैं तथा 10 से 12 नर्तकियों द्वारा नृत्य किया जाता है। इस नृत्य-नाटक में प्रचलित लोक कथाओं तथा पौराणिक कहानियों का पाठ किया जाता है। बीच-बीच में हास्य कथावस्तु को जोड़ा जाता है जिसे “कप” कहा जाता है। इसे मुख्यता शिव गजान उत्सव में किया जाता है।
Alkap Dance – This dance is prevalent around the Rajmahal hills of Jharkhand and in Murshidabad and Malda districts of Bengal. This dance is performed along with the performance of drama. There are one or two main singers in this dance and the dance is performed by 10 to 12 dancers. In this dance-drama, popular folk tales and mythological stories are depicted. In between, humorous story elements called “cups” are added. It is mainly performed in Shiv Gajan festival.
अन्य नृत्य – इसके अलावा चौकारा, संथाल, जमदा, घटवारी, माथा, सोहराय, चोकरा, लुरी, सायरो, बखार, कठघोड़वा, लौंडा, खोलड़िन, पंवड़िया, जोगीड़ा, विदायत, धोबिया, झिझिया, झरनी, बौंग आदि अन्य झारखंड में प्रचलित प्रमुख नृत्य हैं।
Other dances – Apart from this, Chaukara, Santhal, Jamda, Ghatwari, Matha, Sohrai, Chokra, Luri, Sayro, Bakhar, Katghodwa, Launda, Kholdin, Panwadiya, Jogida, Vidayat, Dhobia, Jhijhiya, Jharni, Bong etc. are popular in Jharkhand.
VIDEO ON Folk Dance Of Jharkhand PART-1
VIDEO ON Folk Dance Of Jharkhand PART-2
VIDEO ON Folk Dance Of Jharkhand PART-3
VIDEO ON Folk Dance Of Jharkhand PART-4