झारखंड के विभिन्न क्षेत्र
Different Regions Of Jharkhand
छेछारी घाटी (Chechari Valley)
यह बेतला राष्ट्रीय उद्यान के दक्षिण भाग में चौड़ी कटोरी के आकृति में छेछारी घाटी फैली हुई है। जिसके चारों और एक ऊँची पर्वत श्रृंखला है। कटोरी के किनारा के कारण जल-संभर का निर्माण करती है। जहाँ से कई नाले का निर्माण होता है तथा बुढा नदी का निर्माण करती है जिसका जल उत्तरी कोयल नदी में मिलती है।
छेछारी घाटी की पश्चिम सीमा सरगुजा के महान टेबललैंड के स्क्रैप से बेसिन बनाती है। पुर्व में यह नेतरहाट और पकरी पाट उत्तर में पलामू किला तथा दक्षिण में राँची जिला के बरवे घाटी तक है। महुआटांड़ भेड़िया अभ्यारण छेछारी घाटी में ही बना हुआ है।
पंचपरगना क्षेत्र (Panch Paragna)
यह राँची जिला में अवस्थित है। पाँच प्रखंड, बुंडू, सोनेहातू, तमाड़, राहे, सिल्ली को मिलाकर पंचपरगना कहा जाता है। यहाँ पंच परगनिया भाषा की प्रधानता पाई जाती है। टुसु पर्व के लिए यह क्षेत्र काफी प्रचलित है। जगह जगह पे मकर संक्रांति में यहाँ टुसु मेला लगता है।
मोरवान क्षेत्र (Morwan Region)
यह क्षेत्र भी राँची-खूँटी जिला में पंचपरगना के उत्तरी भाग में स्थित है। यह मुरहू, खूँटी, सिल्ली, जोन्हा, तपकारा, सिल्ली को मिलाकर मोरवान क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र का निर्माण Cenozoic Era में हुआ था। लाह के उत्पादन में यह क्षेत्र विशिष्ट स्थान रखता है।
बीरू-कैसलगढ़ ( Biru-Kaisalgarh)
यह क्षेत्र आधुनिक सिमडेगा में पड़ता है, इसका कुछ भाग उड़ीसा में भी था। इस क्षेत्र को खड़िया जनजाति की मुलभूमि कहा जाता है। मुंडा राज्य का 7 गढ़ो में यह भी एक गढ़ था।
धालभूमगढ़ (Dhalbhumgarh)
यह पूर्वी सिंहभूम में स्थित एक ब्लॉक है। यह प्राचीन समय मे बाँकुड़ा (मिदनापुर) के दो परगने सुपुर और अम्बिकानगर को मिलाकर बनाया गया था। 1833 के पहले यह मिदनापुर का हिस्सा था। 1833 में मानभूम का हिस्सा हुआ तथा 1846 में यह सिंहभूम का हिस्सा बना।
मानभूम (Manbhum)
1831-32 के कोल विद्रोह और 1832-33 के भूमिज विद्रोह के बाद कंपनी सरकार ने 1833 में रेगुलेशन-13 को पारित किया। इस रेगुलेशन के तहत कई प्रशासकीय बदलाव किए गए। इस रेगुलेशन के तहत जंगल महाल जिला का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। तत्कालीन जंगल महाल के शेरगढ़, विष्णुपुर और सोन पहाड़ी को वर्धमान जिले का अंग बना दिया। शेष जंगल महाल और धालभूम को मिलाकर मानभूम जिला बनाया गया। नए मानभूम का मुख्यालय मान बाजार को बनाया गया जो बाद में पुरुलिया (1938 में) बना।
1956 में बिहार एवं पश्चिम बंगाल क्षेत्र स्थांतरण विधेयक के तहत मानभूम से अलग करके एक नया जिला धनबाद का निर्माण किया गया।
जंगल महाल (Jangal Mahal)
चुआड़ विद्रोह (1769-1805) के विद्रोह के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने 1805 में Regulation-18 पारित किया जिसके तहत बंगाल के मानभूम मिदनापुर, बाँकुड़ा, वीरभूम, वर्धमान को मिलाकर जंगल महाल की स्थापना की।
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