चिक बड़ाईक जनजाति
Chik Baraik Tribes
यह एक बुनकर जनजाति है। ये कपड़े बुनने के काम करती है। यह जनजाति अन्य जातियों के साथ गाँव मे निवास करती है और उनलोगों के जरूरत के अनुसार कपड़ा बुनकर अपनी जीविका चलाते है। इसे “हाथ से बुने कपड़ो का जनक” कहा जाता है। प्राचीनकाल में ये नागवंशी राजाओं के सिपाही और द्वार-रक्षक हुआ करते थे। छतीसगढ़ में ये “चिकवा” तथा उड़ीसा में “बड़ाईक कहे जाते है।
झारखंड में इसकी सबसे ज्यादा जनसंख्या दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल में पाई जाती है। राँची जिला में इसकी सबसे ज्यादा जनसंख्या पाई जाती है।
प्रजातीय दृष्टि से यह द्रविड़ वर्ग में आता है। ये झारखंड की सात सदान जनजातियों में से एक है। इस जनजाति में अखरा और पंचायत व्यवस्था नही पाई जाती है। ये मुख्य रूप से नागपुरी भाषा बोलते है।
नामकरण
इस जनजाति का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। चिक का मतलब प्राकृत भाषा मे “कपड़ा” होता है। बड़ाईक का मतलब “महान” होता है। ये कपड़ा बुनने के अलावा राजाओं के साथ युद्ध मे हिस्सा लेते थे। इस वजह से प्राचीन राजाओ ने इसे चिक बड़ाईक नाम दिया।
उपजाति एवं गोत्र
इस जनजाति में दो उपजाति पाई जाती है:- बड़ गोड़ही और छोट गोड़ही। जिसमे बड़ गोड़ही को उच्च माना जाता है। इस जनजाति में मुख्यतः तीन गोत्र पाए जाते है:- तनरिया, तजना और खम्भा।
विवाह
समगोत्रीय विवाह वर्जित होता है। विधवा विवाह और पुनर्विवाह दोनो का प्रचलन है। विधवा को सगाई कहा जाता है। वधुमूल्य को “गोनोड़ या दामदनी” कहा जाता है।
धार्मिक जीवन
इस जनजाति का मुख्य देवता सिंगबोंगा और मुख्य देवी “देवी माई” है। इसके धार्मिक प्रधान को “ठाकुर” कहा जाता है। ये ब्राह्मण या पाहन से भी पूजा कराते है। त्यौहार में बड़ पहाड़ी पूजा और सूर्याही पूजा को धूमधाम से मनाते है। आरम्भ में इनमें नर-बाली की प्रथा थी, अभी खत्म हो चुकी है। ये मृतकों का अंतिम संस्कार मसना में करते है। चिक बड़ाईक में शव को दफनाने का रिवाज है।
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