बेदिया जनजाति सम्पूर्ण अध्ययन| Bedia Tribes Detailed Study

Jharkhand GKJharkhand Tribes

बेदिया जनजाति

Bedia Tribes

मूल निवास स्थान

Bedia Tribes का मूल निवास स्थान रामगढ़ जिला के बरकाकाना में स्थित महूदी पहाड़ के आसपास को माना जाता है। वर्तमान में बेदिया जनजाति का मुख्य जमाव झारखंड, पश्चिम बंगाल और बुंदेलखंड (UP & MP) में पाई जाती है।

मान्यता

एक आख्यान के अनुसार बेदिया लोगों का सोहराय पर्व के दिन एक वृद्ध स्त्री का बदला लेने के लिए सामूहिक नरसंहार कर दिया गया था। जिसमें एकमात्र राजा वेदवंशी सौभाग्य से जीवित बच पाए। वेदवंशी भागकर मुंडा ओं के गांव में छुप गए जहां उन्होंने “खर पूजा” की। वेदवंशी, मुंडाओं के बीच ही रहने लगे और इसका विवाह भी मुंडा कन्या से हुआ। इन दोनों के वंशज ही बेदिया कहलाए।

बेदिया समाज के बारे में एक अन्य मान्यता भी है कि इसे कुर्मी समाज ने बहिष्कृत कर दिया था। तब यह एक नया समुदाय घुमंतू कुर्मी के रूप में विकसित हुआ जो बाद में बेदिया कहलाया।

बेदिया शब्द की उत्पत्ति हिंदी शब्द “बेहारा” से हुई है जिसका अर्थ होता है जंगल में घूमने वाला।

डॉक्टर नर्मदेश्वर प्रसाद ने अपनी पुस्तक “लैंड एंड द पीपल ऑफ छोटानागपुर” में एक जगह बेदिया को संथाल की 12 जातियों में से एक जाति माना है किंतु उसी पुस्तक में दूसरी जगह लिखा है कुर्मी के मौसेरे भाई करके सूचित किया है। संभवत इसी वजह से बेदिया जनजाति में माझी उपाधि धारण करने की परंपरा की शुरुआत हुई है।

मानवविज्ञानी हंटर ने बेदिया को मुंडा से संबंधित माना है।

उपनाम

बेदिया जनजाति अपने आपको “वेदनिवस” कहलाना पसंद करता है। यह अपने आप को वेदों से उत्पन्न हुआ मानते हैं।

परिधान

बेदिया पुरुषों की पारंपरिक परिधान करैया है तथा महिलाओं की पारंपरिक परिधान ठेठी और पाचन है।

वर्गीकरण

बेदिया जनजाति अपने आप को राजपूत मानते हैं जिसने मुगलों के आक्रमण के पश्चात अपनी समृद्धि खोई है। प्रजातीय वर्गीकरण की दृष्टिकोण से यह द्रविड़ जनजाति के अंतर्गत आता है। बेदिया जनजाति की कोई मूल भाषा नहीं है, ज्यादातर बेदिया नागपुरी, कुरमाली भाषा बोलते हैं।

सामाजिक जीवन

बेदिया समाज पितृसत्तात्मक होते हैं। बेदिया समाज में वर्ण व्यवस्था की झलक दिखाई पड़ती है। प्रायः यह लोग मांझी या बेदिया उपाधि धारण करते हैं। बेदिया समाज में स्त्रियों का उत्तराधिकार अमान्य है। स्त्रियां संपत्ति की उत्तराधिकारी ही नहीं हो सकती है, परंतु स्त्रियों की आर्थिक एवं सामाजिक भूमिका महत्वपूर्ण है। पुत्र संपत्ति में बराबर अंश के हकदार होते हैं। जयेष्ठ पुत्र, पारंपरिक पद (यदि कोई हो तो) ग्रहण करता है। वह पिता की मृत्यु के पश्चात परिवार का प्रधान होता है।

संस्कार

बेदिया जनजाति, हिंदू धर्म में प्रचलित 16 संस्कारों में से 3 संस्कार को अनिवार्य रूप से मनाते हैं वह है जन्म संस्कार विवाह संस्कार और मृत्यु संस्कार।

जन्म संस्कार

बच्चे के जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जब बच्चा जन्म लेता है तब कांसा की थाली बजाकर पूरे गांव को सूचित किया जाता है। अगर लड़का का जन्म हुआ है तो गांव वाले को बताया जाता है कि “हलवाहा” आया है और लड़की का जन्म हुआ है तो यह बताया जाता है कि “रोपनी” आई है। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद बच्चे के मुंह में मधु और बकरी का दूध दिया जाता है।

विवाह संस्कार

विवाह के समय वधूमूल्य देने की परंपरा है। बेदिया समाज में वधुमुल्य को पौन (डाली टाका) कहा जाता है। विवाह संस्कार बेदिया समाज में बाल विवाह की प्रथा नहीं पाई जाती है। इनके विवाह अपने गोत्र के बाहर ही होता है। अगर कोई समगोत्रीय विवाह करता है तो उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है। समाजिक बहिष्कार को बेदिया समाज में “ठुकुर ठैनी” कहा जाता है। उन्हें वापस अपने जाति में सम्मिलित होने के लिए “भतोही” समारोह संपन्न करना पड़ता है जिसमें समुदाय के सदस्यों को बृहत रूप से भोजन करानी पड़ती है। माता-पिता की राय से अगुआ के माध्यम से वधूमूल्य देकर विवाह करने की परंपरा को सबसे अच्छा विवाह माना जाता है। विवाह तय हो जानें पर वर पक्ष लड़की के घर जाकर गोअन-बांधनी (सगाई) करते है। फिर पनहरा का रस्म होता है, जिसे पूर्वजों को पानी अर्पित किया जाता है। विवाह तय करने की इस विधि को चावल मिलाना (ता उरद) कहते हैं कहीं-कहीं से “छिपा-पानी” भी कहा जाता है।

समाज के अनुमोदन के उपरांत दोनों पक्ष विवाह-विच्छेद कर सकते हैं। विवाह-विच्छेद निम्नांकित स्थितियों में हो सकता है:- 1) परस्त्रीगमन/ परपुरुषगमन 2) बांझपन 3) सामंजस्य के अभाव तथा आलस्य। परित्यक्त पक्ष को बिहोदी या छोड़अंती (विच्छेद के बदले में दिया जाने वाला शुल्क) दिया जाता है। स्त्रियों को साड़ी दी जाती है जिसे “रंगसाड़ी” कहा जाता है। परित्यक्त एवं विधवाओं को पुनर विवाह की अनुमति है। पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं परंतु यह उनके आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है।

पत्नी की मृत्यु के बाद साली के साथ या बड़े भाई की मृत्यु के बाद भाभी के साथ विवाह करने का रिवाज इस समाज में देखने को मिलता है। जीजा-साली विवाह को “सारोरेट” और देवर-भोजाई के विवाह को “लेविरेट” कहा जाता है।

मृत्यू संस्कार

मृत्यु के पश्चात यह लोग शव को दफनाने और जलाने दोनों का प्रथा है। हैं। प्रायः गरीब लोग शव को दफनाते हैं। दफनाने के दिन संध्याकल में मृतक की आत्मा का आह्वान करते हैं जिसे “छानहुड़ दुकाना” कहते हैं। मृत्यु के 3 दिन तक यह लोग तेल, हल्दी आदि का प्रयोग नहीं करते हैं। मृत्यु के तीसरे दिन “तेलनहान” की क्रिया संपन्न की जाती है। दसवीं दिन 10 कर्म की क्रिया संपन्न की जाती है। इस दिन यह अपना सर मुंडाते हैं इसे “छूत मिटाना” कहा जाता है।

शासन व्यवस्था

बेदिया जातीय पंचायत व्यवस्था को “बिरादरी पंचायत” कहा जाता है इसमें ओहदार, महतो, पाहन और गौड़ैत के पद होते हैं और सारे पद अनुवांशिक होते हैं। ओहदार पंचायत व्यवस्था का प्रधान होता है।

गोत्र

बेदिया जनजाति में जनजाति में 12 गोत्र पाए जाते हैं जो है: – 1.फेचा (सूअर) 2. काष्ठिम (कछुआ) 3. आहेर (एक मछली) 4.बांबी (एक मछली) 5. महुआ (वृक्ष) 6. डाडी डिबडा (एक मछली) 7. सुईया (एक पक्षी) 8.महूकल (एक पक्षी) 9. सुडरी (एक पक्षी) 10.शेरहार (एक पक्षी) 11. चीड़रा(गिलहरी) 12..बैडवार (वट वृक्ष)।

Note:- असुर, बेदिया, संताल और कोल जनजाति में 12 गोत्र पाए जाते है।

धार्मिक जीवन

इनके गृह देवता माई, मूड़कटी, कुंडरी, बंसा, दरहा है। जाहेर बूढ़ी, गवान देवी, महदनिया, दुर्गा एवं चंडी इनके ग्रामीण देवता है। पलचारू और बड़पहाड़ी क्षेत्रीय देवता है। पूजा स्थल को सरना/बड़कथान/मंडई कहा जाता है। बेदिया लोगों का वार्षिक मेला रजरप्पा, हुंडरू, जोन्हा जलप्रपात एवं जगन्नाथपुर में लगता है। इनके धार्मिक प्रधान को पाहन कहा जाता है तथा पाहन के सहयोगी भगत एवं ओझा होते हैं। बेदिया समाज में पूर्वजों की पूजा तथा वेदों की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्याही, करपा, सरहुल जितिया, सोहराय इनके प्रमुख त्यौहार है।

उपवर्ग

Bedia Tribes के मुख्यतः तीन उप वर्ग पाए जाते हैं: – नाथोटिया, जोगियारा और गंगापारिया।

आर्थिक जीवन

प्रारंभ में बेदिया लोग घुमंतू जीवन व्यतीत करते थे। किंतु समय के साथ उन्होंने स्थाई कृषि को अपना लिया है। बेदिया समाज का आर्थिक आधार कृषि है। इनके पास जमीन कम होते है जिस पर ये खेती करते हैं। ज्यादातर बेदिया मजदूरी करते है। पश्चिम बंगाल के बेदिया जनजातियों में सांप पकड़ने और सांप का करतब दिखाना भी रोजगार का एक साधन है। यह जंगलों से दुर्लभ जड़ी बूटी जमा करके बाजार में बेचते भी है।

राई नृत्य

Bedia Tribes में सबसे प्रचलित नृत्य “राई नृत्य” है। इस नृत्य के नर्तकी को “बेडनी” कहा जाता है। यह नृत्य बुंदेलखंड में काफी प्रचलित है। इस नृत्य के साथ फाग गाई जाती है। राई गीत में ख्याल, स्वांग आदि का प्रयोग होता है। इस नृत्य में दर्शक चारों ओर एक वृत्ताकार रूप में बैठते हैं या खड़े रहते हैं। पुरुष मृदंग बजाते हुए नाचता है। इस नृत्य का नाम राई इसलिए पड़ा कि इस नृत्य के दौरान मशाल जलाया जाता है और इस मशाल को जलाने के लिए राई का प्रयोग किया जाता है। नाचते हुए बेडनी के पास वह मशाल लाया जाता है जिससे उसका चेहरा स्पष्ट भाव-भंगिमाओं के साथ दिखाई देता है।

Important Facts OfBedia Tribes

👌 औपनिवेशिक भारत में Criminal Tribes Act,1871 के तहत बेदिया जनजाति को Criminal Tribes के अंतर्गत रखा गया था। 1952 में इस एक्ट को समाप्त कर दिया गया।

👌 बेदिया जो पश्चिम बंगाल में बस गए वह छोटो कुर्मी, बेदिया कुर्मी तथा सान कुर्मी के नाम से जाने जाता हैं।

Bedia Tribes Video

https://youtube.com/live/1CqkKKsNqsw?feature=share

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