ट्रांस हिमालय के पर्वत श्रेणियां
Trans Himalaya Mountain Range
हिमालय का परिचय
हिमालय अर्धचंद्राकार (crescent shape With Southward Convexity) आकार में उत्तर -पश्चिम से दक्षिण- पूर्व तक फैला हुआ है। इसका विस्तार सिंधु नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक पाया जाता है। जिसका दक्षिण भाग उत्तलाकार है। यह भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बत के पठार से अलग करती है। हिमालय का फैलाव पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन में पाया जाता है। इसका विस्तार उत्तर-पश्चिम में नंगा पर्वत (8126 मी) से लेकर दक्षिण-पूर्व में नामचा बरवा (7,756 मी) पर्वत तक है। इसकी चौड़ाई पूर्व में 400 किमी तथा पश्चिम में 150 किमी तक है।
ट्रांस हिमालय (Trans Himalaya)
ट्रांस हिमालय (पार हिमालय) का मुख्य रूप से विस्तार पाकिस्तान भारत और चीन में पाया जाता है। इसका सर्वाधिक विस्तार तिब्बत में पाया जाता है इसलिए इसे तिब्बत हिमालय भी कहा जाता है। ट्रांस हिमालय, हिमालय क्षेत्र का वृष्टि छाया प्रदेश है इसलिए यहां का मौसम शुष्क होता है। ट्रांस हिमालय में तीन पर्वत श्रेणियां एक दूसरे के समानांतर है। उत्तर से दक्षिण में इन श्रेणियों का क्रम:-
काराकोरम श्रेणी ▶️ लद्दाख श्रेणी ▶️ जास्कर श्रेणी
ट्रांस हिमालय महान हिमालय से ITSZ भ्रंश से अलग है। ट्रांस हिमालय का विस्तार जम्मू कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में है। यह हिमालय का सबसे पुराना भाग है। ट्रांस हिमालय का निर्माण टेथीस भूसन्नति के उप सन्नति से हुआ है और इसे लौरेशिया का भाग माना जाता है। इसका निर्माण मिसोजोइक युग के क्रीटेशियस कल्प में हुआ था। ट्रांस हिमालय में शीत कटिबंधीय जलवायु पाई जाती है इसलिए यहां बर्फ अच्छादित रहता है। यहां वनस्पतियों का अभाव पाया जाता है। यहां स्थित लद्दाख एक शीत मरुस्थल है। ट्रांस हिमालय को “उच्च एशिया की रीढ़ की हड्डी” कहा जाता है।
काराकोरम श्रेणी
काराकोरम एक किर्गज भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है भुरभुरी मिट्टी। पुराणों में इस पर्वत को कृष्णागिरी पर्वत कहा गया है। यह श्रेणी पामीर गांठ से जुड़ा हुआ है। यह भारत की सबसे उत्तरतम पर्वत श्रेणी है। शक्सागाम नदी इसके उत्तर में अवस्थित है।
शक्सागाम नदी घाटी – शक्सगाम नदी काराकोरम श्रेणी के उत्तरी भाग से निकलकर चीन के यारकांद नदी से मिल जाती है। यह नदी घाटी क्षेत्र को पाकिस्तान ने एक समझौते के तहत चीन को सौंप दिया है।
पामीर गांठ (Pamir Knot)
इस पठार की स्थिति मध्य एशिया में है, यह तिब्बत के पठार का भाग एक भाग है। इसका विस्तार ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन में पाया जाता है। पामीर के पठार में जंगली प्याज की बहुतायत मात्रा में उत्पत्ति के कारण इसे प्याजी पर्वत कहा जाता है। चीनी भाषा में इसे “कोंगलिंग” कहा जाता है। इस का सर्वोच्च शिखर “इस्माइल सामानी” है। पामीर का पठार हिमालय श्रेणी के उत्तर में अवस्थित है। इस पठार से कई पर्वत श्रृंखला जुड़ी हुई है जैसे हिमालय (काराकोरम श्रेणी), क्युंनलून पर्वत श्रेणी (चीन), हिंदूकुश पर्वत श्रेणी (अफगानिस्तान) और तियान सान (मध्य एशिया) जिस वजह से इसे पामीर गांठ (Pamir Knot) कहा जाता है। पामीर के पठार को विश्व का छत कहा जाता है क्योंकि यह बहुत ऊंचाई पर अवस्थित है। ट्रांस हिमालय में अवस्थित काराकोरम पर्वत श्रृंखला भी इसी गांठ से जुड़ा हुआ है।
क्युंनलून पर्वत श्रेणी – पामीर गांठ से एक श्रृंखला चीन की तरफ चली जाती है जिसे क्युंनलून पर्वत श्रेणी कहते हैं।
हिंदूकुश पर्वत श्रेणी (Hindukush Range)
हिंदू कश का शाब्दिक अर्थ “हिंदुओं की हत्यारे” है। इसके ऊंचे-ऊंचे दर्रे में कई भारतीय लोगों की मृत्यु होने के कारण यह नाम पड़ा। इसी पठार से हिंदूकुश पर्वत श्रेणी जुड़ा हुआ है जिसका विस्तार पकिस्तान -अफगानिस्तान में पाया जाता है। यह 800 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी तिरिच मीर (70708 मी) है जो पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित है। इस पर्वतमाला में की ऊंचाई अधिक होने के बावजूद भी कई दर्रे पाए जाते हैं। प्राचीन काल में हिंदू उसका नाम “उपरासेना” था। सिकंदर का जब इस क्षेत्र में आगमन हुआ था तब उसने इस पर्वतमाला का नाम यूनानी भाषा में काकेशस इंडिकस (Caucasus Indicus) दिया था, जिसका अर्थ है भारतीय पर्वत।
खैबर दर्रा (Khyber Pass)
ऐतिहासिक खैबर दर्रा पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर हिंदूकुश पर्वत के सफेद कोह पर्वत श्रेणी पर ही स्थित है। यह दर्रा 50 किलोमीटर लंबा है और इसके सबसे सकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है। यह जरा प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया के साथ जोड़ता था। सिकंदर के समय से लेकर शक-पहलव, महमूद गजनी, चंगेज खान, तैमूर, बाबर आदि का भारत में आक्रमण इसी दर्रे से हुआ था। मैक्स मूलर के अनुसार भारत में मध्य एशिया से आर्यों का आगमन इसी रास्ते से हुआ था।
तियान सान पर्वत श्रेणी (Tian San Range)
यह पर्वतमाला मध्य एशिया में विस्तृत है। इसका क्षेत्र कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और चीन देशों के मध्य स्थित है। यह चीन में अवस्थित टकला माकन रेगिस्तान के उत्तर-पश्चिम में अवस्थित है। जेनगिश चोकुशु (Victory Peak) इसकी सर्वोच्च शृंखला है।
सुलेमान और किरथर पर्वत श्रेणी
सुलेमान पर्वत श्रेणी को भी हिंदूकुश पर्वत का विस्तार माना जाता है। यह पाकिस्तान में सिंधु नदी के समानांतर अवस्थित है। अवस्थित है एक अन्य पर्वत शृंखला इस पठार का विस्तार सुलेमान पर्वत श्रेणी (अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और किरथर पर्वत श्रेणी (पाकिस्तान) को माना जाता है। कीर्तन श्रेणी सुलेमान श्रेणी का ही एक भाग है जिसमें बोलन दर्रा तथा गोमल दर्रा अवस्थित है।
काराकोरम श्रेणी के प्रमुख शिखर
इस श्रेणी श्रेणी में स्थित सबसे प्रमुख शिखर गॉडविन ऑस्टिन (K2) है यह विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है तथा यह भारत की सबसे उच्चतम पर्वत शिखर है। जिसकी ऊंचाई 8,611 मीटर है। इसे गौरीनंदा पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। काराकोरम श्रेणी के अन्य शिखर है:- हिडन, ब्रोडपिक, गेशरब्रम, मेशरब्रम है।
काराकोरम श्रेणी के हिमनद (Glaciar)
काराकोरम श्रेणी में स्थित ग्लेशियर, घाटी प्रकार के ग्लेशियर है। इसमें स्थित प्रमुख हिमनद सियाचिन (76 किमी), हिस्पार (61 किमी), ब्योफो (59 किमी), बाल्टोरो (58 किमी), बतुरा (57 किमी) तथा सियाचिन। बातुरा और हिस्पार हिमनद हुंजा घाटी में अवस्थित है। ब्योफो और बाल्टोरो हिमनद सिगार घाटी में अवस्थित है। वही सियाचिन ग्लेशियर नुब्रा घाटी में अवस्थित है। सियाचिन ग्लेशियर भारत का सबसे ऊंचा तथा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। सियाचिन ग्लेशियर की लंबाई 76 किलोमीटर है। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्ध स्थल है। काराकोरम श्रेणी से के सियाचिन क्षेत्र से श्योक नदी निकलती है जो सिंधु नदी की सहायक नदी है। यह नदी काराकोरम और लद्दाख श्रेणी के बीच में बहती है।
Note:- 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर में ऑपरेशन मेघदूत चलाया था। सबसे यह दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्ध स्थल बन गया है।
हुंजा घाटी (Hunza Valley)
यह घाटी पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित बालस्तान क्षेत्र मैं अवस्थित है। यह प्राचीन काल में प्रसिद्ध रेशम मार्ग पर अवस्थित है। इस घाटी से होकर हुंजा नदी प्रभावित होती है जो आगे चलकर गिलगित नदी से मिल जाती है। हुंजा नदी को स्थानीय नाम “बुरुशस्की” की से बुलाया जाता है। इस घाटी में सबसे बड़ा शहर करीमाबाद है जिसे यहां बलतीत नाम से भी जाना जाता है। इसी जगह पर बलतीत का किला अवस्थित है। इस घाटी के लोग विश्व में अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोगों की आयु बहुत लंबी होती है। यहां के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा होता है तथा औरतें 60 साल की उम्र तक मां बन सकती है। लंबी आयु का मुख्य कारण यहां के लोगों का प्रतिदिन पैदल चलने की आदत है। मधु, बादाम अखरोट जैसे प्राकृतिक स्वास्थ्यवर्धक भोजन ज्यादा मात्रा में खाने की वजह से भी इसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
लद्दाख श्रेणी (Laddakh Range)
यह काराकोरम श्रेणी के दक्षिण में अवस्थित है। यह श्रेणी श्योक नदी और सिंधु नदी के बीच जल विभाजक का काम करती है। लद्दाख श्रेणी और जास्कर श्रेणी के बीच में सिंधु नदी बहती है। लेह, सिंधु नदी के किनारे अवस्थित है। राकापोशी को लद्दाख श्रेणी की सर्वोच्च शिखर माना जाता है। राकापोशी शिखर विश्व की सबसे तीव्र ढाल वाली पर्वत शिखर है। इस श्रेणी में चोरबत ला, खारदुंग ला, चांग ला, दिगार ला, त्साका ला नामक दर्रे मौजूद है। सिंधु नदी लद्दाख श्रेणी को काटकर बुंजी नामक स्थान पर 5,200 मीटर गहरे बुंजी गार्ज का निर्माण करती है।
जास्कर श्रेणी (Zaskar Range)
यह श्रेणी महान हिमालय का हिस्सा है लेकिन इसे हम ट्रांस हिमालय मैं पढ़ाई करते हैं। 80 डिग्री देशांतर में जास्कर श्रेणी महान हिमालय से अलग हो जाती है। जास्कर श्रेणी के सर्वोच्च शिखर तथा पश्चिमतम शिखर नंगा पर्वत है। जास्कर श्रेणी का विस्तार गिलगित -बाल्टिस्तान मैं देवोसई नाम से है। द्रास और कारगिल क्षेत्र जास्कर श्रेणी में ही अवस्थित है। द्रास और करगिल क्षेत्र में एंथ्रासाइट कोयले का भंडार है किंतु इसे निकालना बहुत कठिन है। जास्कर नदी इसी श्रेणी से निकलती है जो लेह के आगे सिंधु नदी से मिल जाती है। नुनकुन शिखर भी जास्कर श्रेणी में अवस्थित है।
कैलाश श्रेणी (Ksilash Range)
लद्दाख श्रेणी के तिब्बत में विस्तार को भारत में कैलाश श्रेणी कहा जाता है। इसका विस्तार कश्मीर से लेकर भूटान तक है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। तिब्बत में इस श्रेणी का नाम Gang Rimpoche है। इसकी ऊंचाई 6,638 मीटर है।
मानसरोवर झील तथा राकस ताल झील इसी श्रेणी में अवस्थित है। इस श्रेणी से 4 बड़ी-बड़ी नदियों का उद्गम होता है सिंधु, सतलज करनाली (घाघरा) तथा ब्रह्मपुत्र। यह सनातन धर्म मैं पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। इसे अष्टापद गणपर्वत और रजतगिरी तीर्थस्थान के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव ने यहीं पर निर्वाण प्राप्त किया था।
Trans Himalaya Mountain Range
हिमालय क्षेत्र में स्थित भ्रंश
भ्रंश | Full Form | Divider |
ITSZ | Indo Tsangpo Suture Zone | ट्रांस हिमालय को महान हिमालय से अलग करती है |
MCT | Main Central Thrust | महान हिमालय को मध्य हिमालय से अलग करती है |
MBF | Main Boundry Fault | मध्य हिमालय को शिवालिक से अलग करती है |
HFF | Himalayan Frontal Fault | शिवालिक को उत्तर के विशाल मैदान से अलग करती है |
अरावली पर्वतमाला की विशेष जानकारी
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