Kharia Tribes

खड़िया जनजाति का विस्तृत अध्धयन | Detailed Study Of Kharia Tribes

Jharkhand GKJharkhand Tribes

Kharia Tribes

Introduction Of Kharia Tribes

Kharia Tribes झारखंड की सातवीं बड़ी जनजाति है। इस जनजाति की सबसे ज्यादा संख्या राँची जिला में है। इसके अलावा ये कोल्हान, गुमला, सिमडेगा आदि जिलों में पाए जाते है। प्राचीन काल से ही बीरू क्षेत्र (सिमडेगा) को खड़िया के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। खड़िया की उत्पत्ति स्थान रो: जंग को माना गया है। झारखंड के अलावा खड़िया उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम में पाई जाती है। इस समुदाय का परंपरागत पेशा खड़खड़िया (पालकी) ढोना था इस वजह से इसका नाम खड़िया पड़ा

शरीर की बनावट

शारीरिक रूप से ये सामान्य (औसत) कद के होते है। इसकी नाक जड़ में दबी हुई होती है। इसका चेहरा उभरा हुआ तथा चौड़ा होता है।

खड़िया जाति के वर्ग

खड़िया प्रोटो -ऑस्ट्रालॉयड प्रजातीय समूह में आते है। इसकी भाषा का नाम खड़िया है। जनजाति के 3 उपवर्ग है:-

a) पहाड़ी खड़िया

b) ढेलकी खड़िया

c) दूध खड़िया

इन तीनों वर्गो में पारस्परिक विवाह संबंध नहीं होते। तीनो वर्गो में दूध खड़िया सबसे उन्नत अवस्था में है और ढेलकी खड़िया की स्थिति सबसे दयनीय है। पहाड़ी खड़िया आज भी मुख्य रूप से वनोत्पाद (कंदमूल,जंगली फल, शहद, जड़ी बूटी) इत्यादि पर निर्भर है और इसका जीवन आदिम जनजाति की तरह ही है। ढेलकी और दूध खड़िया ने कृषि कर्म को अपना लिया है।

पहाड़ी खड़िया को हिल खड़िया या इरेंगा भी कहा जाता है क्योंकि ये जंगल के भीतर पहाड़ो में रहना पसंद करते है। ये अपने आपको खड़िया से ज्यादा सबर कहलाना पसंद करतें है और खुद को अन्य खड़िया से अलग मानते है। 1980 से पहले पहाड़ी खड़िया खड़िया से अलग था। ये सबर का उपवर्ग माना जाता था।

भाषा

ढेलकी खड़िया और दूध खड़िया की भाषा “खड़िया” है। यह भाषा मुंडा (ऑस्ट्रो -एशियाटिक/ऑस्ट्रिक) भाषा परिवार के अंतर्गत आता है। पहाड़ी खड़िया की भाषा “खड़िया थार” है जो की भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत आता है।

खड़िया जनजाति के गोत्र

ढ़ेलकी खड़िया के 8 गोत्र होते हैं ।

मुरू (कछुआ) ,समद (हिरण),हाँसदा /डुंगडुंग /आइंद (एक लंबी मछ्ली),टोपनो (एक चिड़िया),मैल /किरो (बाघ),सोरेन /तोरेंग (एक चट्टान),चारहाद /चारहा (एक चिड़िया),बरलीहा (एक फल)

दूधी खड़िया में 9 गोत्र पाए जाते हैं

डुंगडुंग ( एक लंबी मछली),कुलू (कछुआ),समद(एक पक्षी),बिलुंग (निमक),सोरेन (एक चट्टान), बा (धान),टेटेहोंए (एक पक्षी),केरकेट्टा (एक पक्षी),टोपो (एक चिड़िया)

पहाड़ी खड़िया में कई गोत्र पाए जाते है। जिसमें गुलगो सबसे प्रमुख है इसके अलावा सांडी, गीडी, नागो, भुईया, सुया, तोलोंग, धार, टेसा, जारू, हेंब्रम आदि गोत्र है।

धार्मिक जीवन

पहाड़ी खड़िया का धार्मिक प्रधान देहुर कहलाता जबकि दूध और ढेलकी खड़िया का धार्मिक प्रधान कालो या पाहन कहलाता है। खड़िया समुदाय का प्रमुख देवता सूर्य है जिसे ये लोग “बेला भगवान या ठाकुर” के नाम से पुजा करतें है। पहाड़ देवता को पारदूबो के नाम से वनदेवता को बोराम के नाम से और सरना देवी को गुमी के नाम से पुजा करते है।

खड़िया जनजाति की सामाजिक व्यवस्था

खड़िया समाज पितृसत्तात्मक समाज होता है। खड़िया समाज में बहुविवाह का प्रचलन है। विधवा विवाह और तलाक को सामाजिक मान्यता प्राप्त है। खड़िया समाज में विवाह के कई रूप देखने को मिलते है।

ओलोलदाय विवाह- इसे असल विवाह भी कहा जाता है इसे सबसे उत्तम विवाह माना जाता है, यह एक क्रय विवाह है जिसमें वधुमुल्य देकर विवाह किया जाता है। खड़िया समाज में वधुमूल्य को “गिनिड•तड•” कहा जाता है।

उधरा-उधरी विवाह – यह एक प्रेम विवाह है जब परिवार वालो की सहमति न हो। इस विवाह में लड़का लड़की पलायन करके विवाह करते है,जब घर वाले विवाह को स्वीकृति दे देते तब वे घर वापस आते है।

ढूकु-चोलकी विवाह- यह हठ विवाह (अनाहुत विवाह) का ही खड़िया रूप है। इस तरह के विवाह में लड़की जबरदस्ती लड़के के घर में रहने लगती है और लड़के के माता -पिता सहित पूरे परिवार की सेवा करती है। इस दौरान लड़की खाना कम खाती हो सेवा बहुत ज्यादा करती। अन्त में लड़के के माता पिता को विवाह के लिए राजी होना पड़ता है। ये लड़की के तरफ से एकतरफा प्यार होता है।

तापा विवाह – यह विवाह लड़के तरफ से एकतरफा प्यार होने से होता है। इस विवाह के लड़का लड़की का अपहरण कर लेता हैं उसके पश्चात विवाह होता हैं।

राजी-खुशी विवाह – यह प्रेम विवाह है जब परिवार वाले विवाह के लिए सहमत हो।

डोकलो सोहोर शासन व्यवस्था

यह शासन व्यवस्था खड़िया समाज की परंपरागत शासन व्यवस्था है। खड़िया समाज अपने मुद्दों और विवादों का निपटारा इसी शासन व्यवस्था के मदद से करते है। इस शासन व्यवस्था में ग्राम स्तर के पंचायत को धीरा पंचायत कहा जाता है। धीरा पंचायत में निम्न प्रमुख अधिकारी होते है:-

महतो/डंडिया – दूध और ढेलकी खड़िया में ग्राम पंचायत के प्रमुख को महतो तथा पहाड़ी खड़िया में ग्राम पंचायत के प्रमुख को डंडिया (बंदिया) कहा जाता है। महतो/डंडिया ग्राम स्तर का प्रशासनिक और न्यायिक प्रधान होता है। यह पद ज्येष्ठता के आधार पर वंशानुगत होता है किन्तु अयोग्यता की स्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है। यह पद अवैतनिक होता है । किन्तु सेवा के बदले में गांव द्वारा लगानमुक्त जमीन दिया जाता है।

कालो/देउरी – ढेलकी तथा दूध खड़िया गांव का धार्मिक प्रधान कालो या पाहन होता है जबकि पहाड़ी खड़िया के गांव का धार्मिक प्रधान देउरी होता हैं । गांव के सारे धार्मिक मामलों का निपटारा ये अधिकारी ही करते है। कालो/देउरी का पद ज्येष्ठता के आधार पर वंशानुगत होता है किंतु अयोग्यता की स्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है। सेवा के बदले में इसे लगानमुक्त जमीन दिया जाता है।

Important Facts Of Kharia Tribes

1) खड़िया जनजाति की सबसे ज्यादा आबादी उड़ीसा राज्य में तथा दूसरा और तीसरा स्थान क्रमश: झारखंड और छत्तीसगढ़ का है।

2) खड़िया समुदाय का मुख्य भोजन चावल है।

3) खड़िया समाज में युवागृह को “गोतिओ” कहा जाता है।

Detailed Study Of Kharia Tribes VIDEO

https://youtu.be/ZJDrTG47zDc

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