सल्तनतकालीन झारखंड
परिचय – 1206 से 1526 तक के कालखण्ड को सल्तनतकाल के नाम से जाना जाता है। सल्तनत काल में 5 राजवंश हुए गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश और लोदी वंश। इस काल में मुसलमानों का झारखंड में प्रवेश सिर्फ दुश्मनों का पीछा करते समय हुआ और बिहार-उड़ीसा के आने जाने के क्रम में हुआ।
इस काल में झारखंड में छिंट-पुट आक्रमण हुए इसके आलावा झारखंड पूरी तरह से बाहरी प्रभाव से मुक्त रहा। सल्तनत काल में तीन प्रमुख आक्रमण झारखंड में हुए:-
पहला वीरभूम के राजा ने सिंहभूम पर आक्रमण किया
दूसरा मलिक बयां (मुहम्मद बिन तुगलक का सेनापति) का 1340 में हजारीबाग में आक्रमण
तीसरा उड़ीसा के शासक कपिलेंद्र गजपति द्वारा संताल परगना में आक्रमण। लेकिन इस आक्रमणों का झारखंड में कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़ा। यहां के क्षेत्रीय राजा बिना किसी बाहरी दबाव के शासन करते रहे।
गुलाम वंश में झारखंड
1202-03 में कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने दक्षिण बिहार में आक्रमण किया और नालंदा, ओदंतपूरी और विक्रमशिला विश्विद्यालय को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और हिंदुओं का भारी मात्रा में खून-खराबा करवाया। प्राणों की रक्षा के लिए हिन्दुओं के विभिन्न समूहों को झारखंड में शरण लेना पड़ा। इस तरह झारखंड में अब नई मानव-समूहों का आगमन हुआ।
इस तरह गुलाम वंश के दौरान झारखंड की संस्कृति में नवीन नृजातीय समूहों का समावेश हुआ। इस आक्रमण के दौरान मुसलमानों को बंगाल पहुंचने के मार्ग का पता चला जो की झारखंड से होकर गुजरती है और इसी मार्ग का उपयोग करते हुए बख्तियार खिलजी ने 1204-1205 बंगाल के सेनवंशी शासक लक्ष्मण सेन की राजधानी नदिया में आक्रमण किया गया।
इस युद्ध में लक्ष्मण सेन ने बख्तियार खिलजी को परास्त कर बंगाल से खदेड़ दिया था। गुलाम वंश के दूसरे शक्तिशाली सुल्तान इल्तुतमिश और गयासुद्दीन बलवन के समय बिहार में उथल पुथल रहा, इन दोनो ने झारखण्ड में प्रवेश का प्रयास किया किंतु नागवंशी राजा हरिकर्ण इस दौरान कुशलतापूर्वक शासन चला रहा था और इसके सारे प्रयासों को विफल कर दिया। इसलिए झारखंड में इसका प्रभाव नाममात्र ही पड़ा। (सल्तनतकालीन झारखंड)
Note: झारखंड में उराँव और मुसलमानों का प्रवेश खिलजी वंश में हुआ
खिलजी वंश में झारखंड
खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक छज्जू ने 1310 में नागवंशी शासक वेणुकर्ण को कर देने के लिए विवश किया।
तुगलक वंश में झारखण्ड
मुहम्मद बिन तुगलक के सेनापति मलिक बयां ने 1340 में हजारीबाग के छै-चंपा राज्य की राजधानी बीघा में आक्रमण हुआ। छै-चंपा को जीतकर इसने फतेह खानुदोल्ला को देकर मालिक बयां वापस चला गया। यह क्षेत्र संताल समुदाय का मूल निवास स्थान था। मलिक बयां और फतेह खानुदोल्ला के अत्याचार के कारण संताल समुदाय को इस क्षेत्र को छोड़ना पड़ा। संताली स्रोतों में मलिक बयां का नाम इब्राहिम अली बताया गया है और उस समय जनरा नामक संताल राजा हुआ करता था।
मुहम्मद बिन फिरोज शाह तुगलक अपने जाजनगर(उड़ीसा-बंगाल) अभियान के दौरान झारखंड आया और बंगाल के शमसुद्दीन इलियास शाह को पराजित करके हजारीबाग के कुछ क्षेत्रों में अधिकार कर लिया और सतगावां(कोडरमा जिला) को जीते हुए क्षेत्र का राजधानी बनाया। फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय नागवंश का राजा शिवदास कर्ण था।
सैय्यद वंश में झारखण्ड
सैय्यद वंश के सुल्तानो की शक्ति कम होती रही। सैय्यद वंश के किसी सुल्तान का झारखण्ड में हस्तक्षेप नहीं हुआ। इस काल में झारखंड पर कोई प्रभाव नही पड़ा।
लोदी वंशमें झारखण्ड
लोदी वंश के समय भी किसी सुलतानों का झारखंड में कोई हस्तक्षेप नहीं रहा। मगर लोदी वंश के समकालीन उड़ीसा के गजपति वंश के संस्थापक कपिलेंद्र गजपति ने संताल परगना पर आक्रमण किया। कपिलेंद्र गजपति ने संताल परगना के अलावा हजारीबाग में भी आक्रमण किया था तथा नागवंशियो के कुछ हिस्सों मे भी कब्जा कर लिया था, मगर इसका प्रभाव कुछ समय के लिए ही था। लोदी वंश के समकालीन नागवंशी राजा प्रताप कर्ण, छत्र कर्ण और विराट कर्ण था।
इसी काल में खानदेश के राजा आदिलशाह द्वितीय ने एक सैन्य दल को झारखंड भेजा था और खुद को झारखंडी सुल्तान घोषित किया था।
सलतन्त काल में ही चैतन्य महाप्रभु वृंदावन जाने के क्रम में झारखंड का दौरा किये थे। वे पंच परगना क्षेत्र में कई ठाकुरबाड़ी की स्थापना किये। इस समय नागवंशी राजा चक्षु कर्ण थे।