पल्लव वंश
History Of Palllava Dynasty
ऐतिहासिक स्रोत
अभिलेख
1) गुंटूर अभिलेख – यह अभिलेख राजा सुस्कंधबर्मन का है इस अभिलेख में पल्लवों को क्षत्रिय कहा गया है।
2) बेलूर अभिलेख- यह अभिलेख राजा सिंहविष्णु का है और इसमें उनके विजयों का वर्णन किया गया है।
3) मांडगुपयल अभिलेख- यह अभिलेख महेंद्रवर्मन का है और इस अभिलेख में मंदिर निर्माण की कला का वर्णन किया गया है।
4) तालगुंड अभिलेख- इस अभिलेख में पल्लव वंश का प्रारंभिक इतिहास मिलता है।
साहित्य
1) मतविलास प्रहसन – इस ग्रंथ की रचना राजा महेंद्रवर्मन द्वारा की गई थी।
2) कुडमीमालय – इस ग्रंथ की भी रचना महेंद्रवर्मन द्वारा की गई थी। संगीत ग्रंथ है।
3) दसकुमारचरित – इस ग्रंथ की रचना कवि दांडी ने की थी।
4) किरातार्जुनीयम् – इस ग्रंथ की रचना कवि भारवी ने की थी।
सिंहविष्णु
पल्लव वंश की स्थापना बहुत ही पहले हो चुकी थी जिसे सिंह वर्मा ने स्थापित किया था। मगर इतिहासकारों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इतिहासकार सिंहविष्णु को पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक मानते हैं। इनका शासनकाल 575 से 600 ईसवी तक माना गया है। इन्होंने तमिलनाडु में कांची को पल्लव वंश की राजधानी बनाई थी। यह वैष्णव धर्म का अनुयाई था। विष्णु को अवनी सिंह और विष्णुयोत्तर के नाम से भी जाना जाता था। किरातार्जुनीयम् के लेखक भारवी सिंह विष्णु के दरबार में रहते थे। सिंह विष्णु के द्वारा ही मामल्लपुरम (महाबलीपुरम) में आदीवाराहा मंदिरों का निर्माण करवाया गया था।
महेंद्र वर्मन प्रथम
महेंद्र वर्मन प्रथम सिंह विष्णु का पुत्र था। इसका शासनकाल 600 से 630 ईसवी के मध्य में माना जाता है। महेंद्र वर्मन प्रथम ने मतविलास, गुणभर, शत्रमल्ल, लिलातांकुर की उपाधियां धारण की थी। वर्मन प्रथम कवि और गायक थे। मतविलास प्रहसन, भगवदज्जूकियम तथा कुडमीमालय ग्रंथ की रचना की थी। महेंद्र वर्मन प्रथम को महेंद्र शैली का जन्मदाता माना जाता है। इन्होंने कई वास्तु कला का निर्माण एक नई शैली से करवाया था।
महेन्दवर्मन प्रथम और चालुक्य (वातापी) के नरेश पुलेकिशन द्वितीय के बीच भीषण संघर्ष कांचीपुरम के पास हुआ था। इस युद्ध में किसी को भी स्पष्ट जीत नहीं मिली मगर पुलेकिशन द्वितीय ने महेंद्र वर्मन प्रथम के साम्राज्य के उत्तरी भाग के कुछ हिस्सों में कब्जा कर लिया और पुलकेशिन द्वितीय ने इसे अपने भाई विष्णुवर्धन को सौंप दिया। कालांतर में विष्णु वर्धन ने इसी स्थान पर चालुक्य (बेंगी) वंश की स्थापना की। महेंद्र वर्मन प्रथम शुरू में जैन मतावलंबी था परंतु बाद में तमिल संत अप्पार के प्रभाव में आकर शैव बन गया।
नरसिंह वर्मन प्रथम
यह महेंद्र वर्मन प्रथम के पुत्र थे। इनका शासनकाल 630 से 668 ईस्वी के मध्य माना जाता है। इस ने “मामल्ल” की उपाधि धारण की। इसी को मामल्ल शैली का जन्मदाता माना जाता है। मामल्लपुरम नामक शहर को इसी ने बसाया था जो अभी महाबलीपुरम के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर इन्होंने कई मंदिरों का निर्माण कराया इसी मंदिरों को महाबलीपुरम का रथ मंदिर कहा जाता है। इसी के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कांचीपुरम की यात्रा की थी। व्हेनसांग ने अपनी रचनाओं में “हीरे की तरह चमकता हुआ राजा” नरसिंहवर्मन प्रथम को बताया है। 642 ई वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित कर वातापीकोंड की उपाधि धारण की थी। युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय मारा गया था। वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को हराने के लिए श्रीलंका के राजा मानवर्मा का सहयोग लिया था। इसने मल्लिकार्जुन मंदिर में विजय स्तंभ की स्थापना की थी।
महेंद्र वर्मन द्वितीय
यह नरसिंह वर्मन प्रथम के पुत्र थे इनका शासनकाल मात्र 2 वर्ष का रहा जो 668 से 670 ईसवी तक था। इस 2 वर्षों तक चालुक्य राजा के साथ इनका युद्ध होता रहा और चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम के साथ युद्ध में मारा गया।
परमेश्वरवर्मन प्रथम
परमेश्वर वर्मन प्रथम महेंद्र वर्मन द्वितीय के पुत्र थे इनका शासनकाल 670 से 695 ईसवी के मध्य रहा। परमेश्वर वर्मन प्रथम ने एकमल्ल और लोकदित्यु की उपाधि धारण की थी। क्या विनीत भी कहा जाता था क्योंकि यह बहुत बड़े विद्वान थे। इन्होंने मामल्लपुरम में एक गणेश मंदिर की स्थापना की थी।
नरसिंह वर्मन द्वितीय
यह परमेश्वर वर्मन प्रथम के उत्तराधिकारी और पुत्र थे। ।इनका शासनकाल 695 से 722 ईसवी के मध्य माना जाता है। नरसिंह वर्मन द्वितीय ने राजसिंह आगमप्रिय (शास्त्रों का प्रेमी) और शंकरभक्त, परम भागवत, “कामदेव की तरह सौंदर्य वाला” की उपाधि धारण की थी। नरसिंह वर्मन द्वितीय ने कांचीपुरम के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे आज राज सिद्धेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और इस मंदिर से ही द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत हुई थी। नरसिंह वर्मन द्वितीय ने मामल पुरम में एरावतेश्वर मंदिर और शोर मंदिर का निर्माण करवाया था। नरसिंह वर्मन द्वितीय को राजसिंह शैली का जन्मदाता भी माना जाता है। नरसिंह वर्मन के दरबार में दशकुमारचरित के रचनाकार दांडी इन रहते थे।
सिंह वर्मन द्वितीय ने चीन के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए थे। इन्होंने चीन में दूत भेजा था। उन्हें चीनियों के लिए गंगाईकोंडपुरम में एक बुध विहार की स्थापना की।
Note:- कांची के कैलाश नाथ मंदिर में पल्लव राजाओं और रानियों की आदम कद तस्वीरें लगी हुई है।
Note:-अरबों के समय पल्लव का राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय था।
नरसिंह वर्मन द्वितीय के बाद महेंद्रवर्मन तृतीय, परमेश्वर वर्मन द्वितीय, नंदीवर्मन द्वितीय, दंतीबर्मन, नंदीवर्मन तृतीय और नृपतंग वर्मन राजा हुए। परंतु इनमें से कोई भी शक्तिशाली नहीं हुआ और पल्लव साम्राज्य अपने पतन की ओर जाने लगा था।
Note:-कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरूमल मंदिर का निर्माण नंदी वर्मन द्वितीय ने कराया था।
Note:- नंदी वर्मन तृतीय के समय पल्लव और राष्ट्रकूट के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हुए नंदी वर्मन तृतीय ने राष्ट्रकूट वंश की कन्या संखा को विवाह किया। नंदी वर्मन तृतीय के समय में पूराम्बियम युद्ध पांडय राजाओं के साथ हुआ जिसमें पांड्य राजाओं की हार हुई।
अपराजित वर्मन
पल्लव वंश के आखिरी राजा थे। 897 ईसवी में चोल राजा आदित्य प्रथम ने पराजित कर पल्लव राजवंश का अंत कर दिया था। इसे अपराजित शैली का जन्मदाता माना जाता है।
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कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1) प्रारंभ में पल्लव वंश का प्रतीक बैल था बाद में शिवलिंग बना।
2) पल्लवों और वातापी के चालुक्य के बीच रायचूर दोआब को लेकर लगातार भीषण युद्ध होते रहे थे।
3) बर्मन के पुत्री रेवा का विवाह चोल वंश के प्रतापी राजा गोविंद तृतीय के साथ हुआ था।
4) पल्लव वंश की कोई मुद्रा अभी तक प्राप्त नहीं हुई है।
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महाजनपद काल का इतिहास
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