Tribes Of Jharkhand
Sabar Tribes सबर जनजाति
परिचय
सबर झारखंड की एक लघु जनजाति है 2011 के जनगणना के आधार पर झारखंड में इसकी जनसंख्या मात्र 9688 है जो कुल जनसंख्या की 0.11% है। इसकी सर्वाधिक जनसंख्या उड़ीसा में पाई जाती है। झारखंड में उड़ीसा से सटे क्षेत्र में इनकी जनसंख्या पाई जाती है। इसकी मूल भाषा “लोधी” है। सबर जनजाति का मुख्य जमाव महानदी नदी के तट पर पाए जाते है।
आर्थिक जीवन
परंपरागत रूप से जंगल मे रहने के कारण इन लोगो मे कृषि का विकास नही हो पाया। इनके जीविका का मुख्य आधार वन्य उत्पाद है।
अन्य नाम
1) साबर
2) सोरा
3) करिया – इस नाम से पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी क्षेत्रों में जाने जाते।
4) हिल खड़िया
वर्गीकरण
ये झारखंड के 8 आदिम जंजातियो मे से एक है। इसे प्रोटो-ऑस्ट्रलोयड प्रजातीय समूह के अंतर्गत रखा जाता है। सबर जनजाति के 4 उपवर्ग होते है:- झारा, बासु, जंटापति और जहरा। इसमे झारखंड में सिर्फ जहरा उपजाति पाई जाती है। सबर जनजाति में गोत्र प्रणाली नही पाई जाती है।
धार्मिक जीवन
काली माता इनके प्रमुख देवता है। ये अपने पूर्वजों को महीमसान (बुढा-बूढ़ी) के नाम से पूजते है। देहुरी इनके धार्मिक प्रधान होते है। मनसा देवी की पूजा करते है।
सामाजिक जीवन
इनके समाज पितृसत्तात्मक होते है। बहुविवाह की प्रथा नही पाई जाती। विवाह में वधुमूल्य देने की प्रथा है जिसे “पोटे” कहा जाता है। युवागृह की परंपरा नही पाई जाती है। डोमकच तथा पन्ता- सल्या इसके प्रमुख लोकनृत्य है।
प्रशासनिक व्यवस्था
सबर जनजाति के ग्राम पंचायत के प्रमुख को ” प्रधान” कहा जाता है। प्रधान के सहायता के लिए गौडाइत का पद होता है जो संदेशवाहक का कार्य करता है। ग्रामीण पंचायत के सभी पद वंशानुगत होते है।
सबर जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1) इस जनजाति का वर्णन महाभारत और रामायण में मिलता है।
2) ब्रिटिश काल मे इस जनजाति को आपराधिक जनजातीय अधिनियम, 1871 के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
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