Tribes Of Jharkhand
Chero Tribe चेरो जनजाति
परिचय
झारखंड में इसका मुख्य जमाव पलामू क्षेत्र में पाई जाती है। राँची और हज़ारीबाग जिले में भी इसकी अच्छी जनसंख्या है। ये स्वयं को च्यवन ऋषि के संतान मानते है। ये अपने को चौहान राजपूत मानते है। मुंडा और पुराणों की तरह ही करो भी अपने उपनाम किल्ली नाम के अनुसार नहीं रखते हैं। ये अपने नाम के साथ “सिंह” और “चौहान” उपनाम जोड़ते है। चेरो अपने आप को चंद्रवंशी कहते हैं। चेरो जनजाति मुख्य रूप से सादरी और हिंदी बोलते है।
प्रजातीय समूह
झारखंड के पाँच राजपूत जनजातियो में चेरो जनजाति भी आती है। प्रजातीय वर्गीकरण में इसे द्रविड़ प्रजातीय समूह में रखा गया है। ये सात किल्ली (गोत्र) में विभाजित है:- मौवार, कुँवर, सनवत, रौतिया, माँझी, महतो, सोहनेत। इस जनजाति में टोटम प्रथा नही पाई जाती है।
इस जनजाति में दो वर्ग पाए जाते है:- बारह हजारी और तेरह हजारी। इसमे बारह हजारी को उच्च वर्ग में माना जाता है।
सामाजिक व्यवस्था
इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है। समगोत्रीय विवाह वर्जित है। इनमे वधुमूल्य की परंपरा पाई जाती है जिसे ये “दस्तूरी” कहते है। झारखंड के अन्य जनजातियो के विपरीत इनमे “तिलक” का रिवाज भी इनमे पाया जाता है, जिसमे वधु पक्ष द्वारा वर पक्ष को पैसा, सामग्री दिया जाता है। चेरो समाज मे 3 तरह के विवाह प्रचलित है:-
a) डोला – यह विवाह वर के घर मे सम्पन्न होता है।
b) घराऊ – यह विवाह वर के घर मे सम्पन्न होता है।
c) चढ़ाऊ – यह विवाह कन्या के घर मे सम्पन्न होता है।
अत्यंत गरीब परिवार के लोग गोलट विवाह को प्राथमिकता देते है। पुर्नविवाह की परंपरा भी पाई जाती है जिसे ये “सगाई” कहते है। चेरो के गाँव को “डीह” कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था
चेरो के अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि होता है। यह जनजाति पहाड़ों और जंगलों में रहना पसंद नही करते। ये मजदूरी करना अपने प्रतिष्ठा के खिलाफ समझते है।
धार्मिक जीवन
शिव-पार्वती इनके मुख्य देवता है। इनके ग्राम देवता रक्सेल/ दरहा होते है। धार्मिक मान्यताओं में जादू-टोना का विशेष स्थान है। बीमार की स्थिति में ये ओझा/मति/भगत की सहायता लेते है। के धार्मिक प्रधान को बैगा कहा जाता है। चेरो जनजाति में पोइता (जनेऊ) पहनने का रिवाज पाया जाता है। गोसाई इनका धार्मिक प्रधान होता है।
राजनीतिक व्यवस्था
चेरो समाज के जनजातीय पंचायत को “भैयारी पंचायत” कहा जाता है। इस पंचायत का ग्राम-स्तर पर प्रमुख को महतो तथा अंचल स्तर पर सभापति कहा जाता है। चारीदार और पंच इस शासन व्यवस्था के मुख्य अधिकारी होते है।
चेरो के गोत्र
इनमें सात गोत्र होते है जिसे पारी कहा जाता है। अन्य जनजातियों की तरह चेरो के गोत्र टोटमिक नही होते है :-मौआर, कुंवर, सनवत, महतो, रौतिया, मांझ और सोहनेत।
चेरो जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
🌹 यह अन्य जनजातियों की तरफ पहाड़ों और जंगलों में रहना पसंद नहीं करते हैं।
🌹 यह किसी के यहां मजदूरी करना अपने साल के खिलाफ समझते हैं।
🌹 झारखंड में चोरों का आगमन रोहतास से हुआ था।
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