खरवार आंदोलन
Kharwar Revolt खरवार आंदोलन
परिचय
यह एक संताल समाज मे सुधारवादी आंदोलन था। यह संताल समाज के एक उपजाति खेरवाड़/खरवार में चला इसलिए इसका नाम खेरवाड़/खरवार आंदोलन पड़ा। इस आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ता भगीरथ माँझी थे। इस वजह से इस आंदोलन को “भागीरथ माँझी का आंदोलन” भी कहा जाता है। यह आंदोलन सांस्कृतिक/सुधारवादी आंदोलन के रूप में शुरु हुआ लेकिन बाद में कंपनी सरकार के राजस्व बंदोबस्ती के विरुद्ध राजनीतिक आंदोलन में परिवर्तित हो गया।
भागीरथ माँझी के प्रमुख विचार
1) सूर्य (सिंगबोंगा) और दुर्गा की उपासना। शेष बोंगाओ का परित्याग।
2) हड़िया, मांसाहार और नाच-गान का परित्याग।
3) सिद्धू-कान्हो के जन्म-स्थली को तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता।
4) संताल स्वर्ण युग की पुनर्स्थापना
5) संताल समाज मे उपवर्गों की संख्या 12 तक सीमित रखना।
6) ये धरती, धरती पुत्र की और धरती पुत्र ही इसके उपज के सही हकदार।
7) आत्म समर्पण के भाव के आधार पर उपासकों का वर्गीकरण
a) सफाहोड़ – पूर्ण समर्पण से इस आंदोलन को मानने वाले उपासक।
b) बाबाजिया/भिक्षुक – उदासीन भाव से इस आंदोलन से जुड़े उपासक।
c) मेल बरागर – बेमन से इस आंदोलन में जुड़े उपासक।
भगीरथ माँझी
भगीरथ माँझी का जन्म गोड्डा जिला के तलडीहा गाँव मे हुआ था। भागीरथ माँझी को इसके अनुयायी “बाबाजी” कहकर बुलाते थे। भगीरथ माँझी ने 1874 में प्राचीन मुल्यों के पुनर्स्थापना के लिए खरवार आंदोलन चलाया। यह आंदोलन धर्म आधारित एवं अहिंसक था। उन्होंने घोषणा की सिंगबोंगा ने उसे दर्शन दिए है और उन्हें बौसी (गोड्डा) गाँव का राजा नियुक्त किया है।
इसके बाद उन्होंने स्वयं को बौसी गाँव का राजा घोषित किया तथा जमींदारों और अंग्रेजो को कर देने से मना किया। उन्होंने लोगो पर लगान तय किये और रसीद देना शुरू किया। भगीरथ माँझी के अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई। कंपनी सरकार ने भागीरथ माँझी और ज्ञान परगनैत को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इनके गिरफ्तारी के बाद भी आंदोलन रुका नही। 1877 को दोनो को जेल से रिहा किया गया। इसके बाद आंदोलन और जोर पकड़ लिया और यह हज़ारीबाग, राँची तक फैल गया।
हज़ारीबाग में इस आंदोलन का नेतृत्व दुबु बाबा ने किया था। दुबु बाबा ने अंधविश्वास से भरी भविष्यवाणी की जो सही नही हुई जिससे यह आंदोलन शिथिल पड़ गया। लेकिन 1881 ई के जनगणना के विरुद्ध दुविधा गोसाई के नेतृत्व में पुनः खरवार आंदोलन जीवित हो गया। लेकिन कुछ समय के भीतर ही इसकी गिरफ्तारी के साथ ही खरवार आंदोलन का यह द्वितीय चरण समाप्त हो गया।
सफाहोड़ आंदोलन
यह आंदोलन खरवार आंदोलन के एक उपजाति सफाहोड़ ने 1870 में शुरू किया। इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता लाल हेम्ब्रम थे। इन्हें इसके अनुयायी “लाल बाबा” कह के बुलाते थे। लाल हेम्ब्रम ने चारित्रिक शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया। लाल बाबा अपने अनुयायियों को सफेद झंडा देते थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को कुछ नियम के साथ जीने की सलाह दी:-
1) अपने आंगन में तुलसी चौरा लगाने को कहा
2) जनेऊ धारण करना
3) राम नाम जपना
4) मांस मदिरा निषेध
लाल हेम्ब्रम ने आजाद हिंद फौज के तर्ज पर देशोद्धारक दल की स्थापना की और अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन चलाया। 1945 में महात्मा गांधी के कहने पर लाल बाबा ने आत्म-समर्पण कर दिया। लाल बाबा का मुख्य कार्य क्षेत्र लाठी पहाड़ी (दुमका) था। इस आंदोलन के अन्य प्रमुख नेता पैका मुर्मू, भातु सोरेन, रसिक लाल, पैगान मरांडी थे।
यह एक दिशाहीन आंदोलन जल्द ही समाप्त हो गया लेकिन यह आंदोलन संताल समाज मे जागरूकता की छाप छोड़ गया।
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