झारखंड का भौतिक विभाजन
Physiographic Division Of Jharkhand
Different Landform Of Jharkhand
परिचय -भारत के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित, झारखंड एक ऐसा राज्य है जो अपनी समृद्ध और विविध भौगोलिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है। झारखंड भौगोलिक रूप से 21°58’N – 25°26’N अक्षांश और 83°22’E – 87°57’E देशांतर के बीच स्थित है। राज्य का कुल क्षेत्रफल लगभग 79,714 वर्ग किलोमीटर है, जो भौगोलिक क्षेत्र के मामले में इसे भारत का 15वां सबसे बड़ा राज्य बनाता है।
झारखण्ड का भौगोलिक संरचना बहुत ही व्यापक है। यह उत्तर में बिहार, उत्तर-पश्चिम में उत्तर प्रदेश, पश्चिम में छत्तीसगढ़, दक्षिण में ओडिशा और पूर्व में पश्चिम बंगाल के बीच स्थित है, जो इसे देश के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाता है।
- झारखंड रणनीतिक रूप से भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है, जो कई राज्यों से घिरा हुआ है। इसकी उत्तरी सीमा बिहार से लगती है, जबकि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ इसकी पश्चिमी सीमा बनाते हैं। दक्षिणी ओर, यह ओडिशा से घिरा है और पूर्व में, इसकी पश्चिम बंगाल के साथ साझा सीमा है।
- झारखंड की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति और क्षेत्र ने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक विशेषताओं के अनूठे मिश्रण में बहुत योगदान दिया है। खनिज समृद्ध मिट्टी से लेकर घने जंगलों तक, राज्य की भौगोलिक विविधता और क्षेत्र ने इसकी सामाजिक-आर्थिक
लगभग 79,714 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह राज्य विभिन्न प्रकार की भौगोलिक विविधता प्रदर्शित करता है।
- घुमावदार पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों से लेकर खनिज-समृद्ध पठारों और जीवंत वन्य जीवन तक, झारखंड का भूगोल वास्तव में आंखों को लुभाने वाला है।
- झारखंड नाम, जिसका अर्थ है ‘वनों की भूमि’, इस क्षेत्र के प्रमुख परिदृश्य को सटीक रूप से दर्शाता है।
- राज्य का लगभग 29% क्षेत्र वन आवरण के अंतर्गत है, जिसमें वनस्पतियों और जीवों की एक श्रृंखला है। राज्य में कई नदियाँ भी हैं जो इसकी भौगोलिक विविधता को और समृद्ध करती हैं, इसकी कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और इसकी आबादी के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करती हैं।
पाट क्षेत्र
यह झारखंड का सबसे ऊंचा भूभाग है। इस क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 900 मी है। पाट शब्द का शाब्दिक अर्थ “समतल जमीन” होता है। यह छोटानागपुर पठार का ही पश्चिमी हिस्सा है जिसे पश्चिम पठार भी कहा जाता है। इसका आकार त्रिभुजाकार है, उत्तर में यह चौड़ा है तथा दक्षिण में संकीर्ण। इसका विस्तार दक्षिण पलामू, दक्षिण गढ़वा, लातेहार, लोहारदग्गा और उत्तरी गुमला तक है। पाट क्षेत्र के ऊपरी भाग को “टांड़” तथा निचला भाग को “दोन” कहा जाता है। प्रसिद्ध बारवे का मैदान इसी पाट क्षेत्र में अवस्थित है। बारवे के मैदान का आकार तश्तरीनुमा है। पाट क्षेत्र बॉक्साइट के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। पाट क्षेत्र से होकर उत्तरी कोयल, शंख, फुलझर नदी बहती है। वास्तव में पाट क्षेत्र कई पाट का समूह है
निम्न प्रमुख पाट अवस्थित है
नेतरहाट पाट – यह पाट सभी पाटो से ऊंचा है। इसकी ऊँचाई 1180 मी है।
गणेशपुर पाट – यह दूसरा सबसे ऊंचा पाट है जिसकी ऊंचाई 1171 मी है।
जमीरा पाट – यह झारखंड की तीसरी सबसे ऊँची पाट है जिसकी ऊँचाई 1142 मी है।
बगडु पाट – लोहारदग्गा स्थित इस पाट में कई बॉक्साइट की खान मौजूद है।
पाखर पाट – लोहारदग्गा स्थित इस पाट में कई बॉक्साइट की खान मौजूद है।
खामर पाट – लोहारदग्गा स्थित इस पाट में कई बॉक्साइट की खान मौजूद है।
गुलगुल पाट – यह पलामू जिला के दक्षिण में स्थित है यहाँ सम्मेद शिखर के बाद झारखंड की दूसरी सबसे ऊँची पर्वत शिखर है जिससे गुलगुल पहाड़ या सरुवत पहाड़ कहा जाता है। यह सरुवत गांव के समीप में होने के कारण सरूवत पहाड़ कहलाता है।
Note :- कुछ भूगोलवेत्ताओं ने पाट क्षेत्र को राँची पठार का ही हिस्सा माना है।
लालमटिया पाट – यह लातेहार जिला में अवस्थित है यही पर लालमटिया बाँध भी मौजूद है।
Note:- लालमटिया कोयला खान गोड्डा जिला में अवस्थित है।
अन्य पाट- दुधा पाट, महुआ पाट, कचकी पाट, बंगला पाट, धौता पाट, रुदनी पाट, गढ़ पाट, मनहे पाट, लुचु पाट।
राँची एवं हज़ारीबाग का पठार
Ranchi Plateau
यह झारखंड का सबसे बड़ा पठारी क्षेत्र है। इस क्षेत्र का आकार चौरस (चतुर्भुजाकार) है। इसकी समुद्रतल से औसत ऊँचाई 600 मी है। इस पठार के सीमावर्ती क्षेत्रों में ढाल पाए जाते है जिसकी वजह से इसके सीमावर्ती क्षेत्र में नदियों द्वारा कई जलप्रपात का निर्माण होता है। राँची का पठार एक संप्राय मैदान का उदाहरण है। राँची का पठार और हजारीबाग का पठार प्राचीन काल मे एक ही था, दामोदर नदी के निर्माण के पश्चात इस दोनो पठार का विभाजन हुआ। इसका विस्तार राँची, खूँटी, गुमला और लोहारदग्गा जिले में है। इसे दक्षिण छोटानागपुर पठार भी कहा जाता है।
Hazaribag Plateau
इसकी औसत ऊंचाई 600 मीटर है। यह छोटानागपुर के द्वितीय उत्थान से निर्मित है जो आज से 3 करोड़ वर्ष पूर्व मध्य ओलिगेसिन कल्प में हुआ था। इसका विस्तार राँची के पठार के समानांतर है। पहले यह राँची पठार से जुड़ा हुआ था बाद में दामोदर नदी के कटाव के कारण राँची पठार से अलग हो गया। यह उत्तरी छोटानागपुर पठार का एक हिस्सा है। हज़ारीबाग पठार को दो भागों में विभाजित किया जाता है।
a) निचला हजारीबाग पठार
(Lower Hazaribag Plateau)
हज़ारीबाग पठार के उत्तरी भाग को निचला हज़ारीबाग पठार कहा जाता है। इस पठार की औसत ऊँचाई 450 मी है। छोटानागपुर पठार का बाहरी हिस्सा होने के कारण इसे बाह्य पठार भी कहा जाता है। इस पठार को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है कोडरमा का पठार और गिरिडीह का पठार। गिरिडीह के पठार में झारखंड का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर “सम्मेद शिखर” स्थित है। कोडरमा के पठार में तीव्र ढाल मिलते है।
b) ऊपरी हजारीबाग पठार
(Upper Hazaribag Plateau)
हज़ारीबाग पठार के दक्षिणी भाग को ऊपरी हज़ारीबाग पठार कहा जाता है। इस पठार की औसत ऊँचाई 600 मी है। यह पठार राँची पठार के समानांतर फैला हुआ है।
बाह्य छोटानागपुर पठार
छोटानागपुर के बाहरी किनारे में अवस्थित होने के कारण इसे बाह्य छोटानागपुर का पठार कहा जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 300-600 मीटर है। इस क्षेत्रों में पूर्व से पश्चिम की और क्रमिक ह्रास दिखाई पड़ती है।
इस पठारी क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया गया है:- a) उत्तरी बाह्य छोटानागपुर पठार b) दक्षिण बाह्य छोटानागपुर पठार
उत्तरी बाह्य छोटानागपुर पठार
उत्तरी बाह्य छोटानागपुर पठार का को निम्न उपभागों में बाँटा जाता है
a) गढ़वा उच्च भूमि – यह क्षेत्र उत्तरी कोयल और कान्हर नदी के मध्य अवस्थित है। इस क्षेत्र को पश्चिम पलामू या कोयल-कान्हर अन्तरप्रवाही उच्चभूमि कहा जाता है।
b) छतरपुर मैदान – यह पुनपुन नदी का ऊपरी बेसिन क्षेत्र है। यह झारखण्ड का पश्चिमोत्तर किनारा है। इसकी ऊँचाई 150 से 300 मीटर तक है।
c) कोयल-औरंगा बेसिन – इस क्षेत्र में उत्तरी कोयल और औरंगा नदी के बेसिन क्षेत्र आते है।
d) चतरा पठार – यह पठार काफी अपरदित है तथा घने जंगल से आच्छादित है। इस पठार से होकर लीलाजन नदी और इसकी सहायक नदियाँ उत्तर की और प्रवाहित होती है। अमानत नदी और इसकी सहायक नदी पश्चिम की और प्रवाहित होती है। अर्थात चतरा पठार की ढाल उत्तर और पश्चिम की और है।
दक्षिण बाह्य छोटानागपुर पठार
दक्षिण बाह्य पठार का विस्तार राँची पठार के दक्षिण-पूर्व में सिमडेगा से पूर्वी सिंहभूम तक है। इस क्षेत्र में कोल्हान उच्च भूमि की ऊँचाई सर्वाधिक है। इस क्षेत्र को 4 भागों में विभाजित किया गया है:-
a) शंख बेसिन – इस क्षेत्र के अंतर्गत दक्षिण गुमला और सम्पूर्ण सिमडेगा आता है। सिमडेगा का शंख बेसिन में अवस्थित है।
b) दक्षिण कोयल बेसिन – यह क्षेत्र पश्चिम सिंहभूम में पड़ता है जो सारंडा वन के पश्चिम एवं उत्तर भाग में अवस्थित है।
c) चाईबासा का मैदान –यह मैदान पश्चिमी सिंहभूम के पूर्व-मध्य भाग में अवस्थित है। यह मैदान उत्तर में दाल्मा की पहाड़ी से, पूर्व में धालभूम की पहाड़ी से, पश्चिम में सारंडा पहाड़ी से,पश्चिमोत्तर में पोरहाट की पहाड़ी और दक्षिण में कोल्हान पहाड़ी से घिरा है। चारो और से पहाड़ियों से घिरे होने के कारण मॉनसूनी हवाओ का प्रवेश बहुत कम हो पाता है जिससे इस क्षेत्र में बारिश बहुत कम होती है। चाईबासा का मैदान झारखंड में सबसे कम वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र है।
d) पंचपरगना का मैदान – यह राँची पठार का पूर्वी किनारा है जो समतल है। इसके उत्तरी भाग को मोरवान कहा जाता है।
दामोदर-बराकर नदी घाटी क्षेत्र
यह क्षेत्र राँची पठार और हज़ारीबाग पठार का विभाजक है। ये क्षेत्र एकसमान नही है, इसमे विभिन्न उच्चावच पाए जाते है। यहाँ की चट्टाने महादेव श्रेणी के बालू पत्थर और कांगलोमरेट से बनी है। यह कहीं-कही हज़ारीबाग और राँची के पठार के समतुल्य ऊँचा है। दामोदर-बराकर नदी घाटी क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया गया है- ऊपरी दामोदर घाटी क्षेत्र और निचली दामोदर नदी घाटी क्षेत्र। ये विभाजन 300मीटर Contour Line द्वारा की गई है।
संताल परगना निम्न भूमि और अपरदित भू-भाग
संताल परगना में कहीं भी 300 मीटर से ऊंचा स्थान नही मिलता है। इसका पहाड़ी भाग (उच्च भूभाग) उत्तरी पूर्वी भाग में स्थित है। संताल परगना के दक्षिण और पश्चिम भाग अनेक नदियों द्वारा अपरदित किए गए है जाने के कारण निम्न स्वरूप धारण कर लिया है। इसलिए इसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है:-
a) राजमहल पहाड़ी क्षेत्र
इस क्षेत्र की समुद्रतल से ऊँचाई 150 मीटर से 300 मीटर तक है। इसका विस्तार साहेबगंज, गोड्डा, पाकुड़, उत्तर- पूर्वी दुमका में पाया जाता है। इसका कुछ क्षेत्र पूर्वी दुमका और पूर्वी देवघर जिला में भी आता है। यह क्षेत्र राजमहल पहाड़ी, असमान नदी घाटी और मैदानी क्षेत्र से मिलकर बना है। यह क्षेत्र 2000 वर्ग किमी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में नुकीली पहाड़ियों को टोंगरी और गुम्बदनुमा पहाड़ियों को डोंगरी कहा जाता है। इसकी पहाड़ी क्षेत्रों से कई नदियाँ निकालकर पूर्वी ढाल के सहारे गंगा नदी में मिल जाती है। इन नदियों द्वारा राजमहल पहाड़ी के तलहटी क्षेत्रों में जलोढ़ का निक्षेपण किया गया है। जिससे जलोढ़ उच्चभूमि का निर्माण हुआ है, जिसका विस्तार साहेबगंज क्षेत्र में देखने को मिलता है। गंगा नदी के द्वारा भी साहेबगंज क्षेत्र में जलोढ़ निक्षेप मिलते है।
b) अपरदित भू-भाग
अपरदित भूभाग के अंतर्गत जामताड़ा, देवघर और दुमका जिला के पश्चिम भाग का क्षेत्र आता है। अपरदित भूभाग को तीन भागों में वर्गीकृत करते है- a) देवघर अपरदित निम्न भूमि b) राजमहल का उत्तर-पश्चिमी भाग और c) अजय-मोर बेसिन
c) गंगा-डेल्टाई क्षेत्र
यह राजमहल पर्वत शृंखला के पूर्वी भाग और गंगा नदी के बीच में अवस्थित हैं। इसका विस्तार साहेबगंज और पाकुड़ जिला पूर्वी तथा उत्तरी भाग में मिलता है। गंगा नदी के द्वारा लाए गए जलोढ मिट्टी पाई जाती है जो काफी उपजाऊ होती है।
Important Facts related to Physiographic Division Of Jharkhand
1. हज़ारीबाग पठार, राँची पठार और पाट क्षेत्र को सम्मिलित रूप से छोटानागपुर का पठार कहा जाता है।
Physiographic Division Of Jharkhand
झारखंड के आगामी ताप विद्युत परियोजना Video
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