झारखंड के जनजाति
Ho Tribe हो जनजाति
झारखंड की चौथी बड़ी जनजाति हो है। इसकी जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 92,82,89 है जो राज्य की जनजातीय जनसंख्या का 10.74 प्रतिशत है। भारत मे हो जनजाति की सबसे बड़ी जनसंख्या झारखंड में पाई जाती है। इसके बाद उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इसकी जनसंख्या सबसे ज्यादा है। हो समाज प्रोटो-ऑस्ट्रलोयड प्रजातीय समूह में वर्गीकृत है। इसकी भाषा हो है। हो भाषा मुंडा भाषा परिवार (आस्ट्रिक/आस्ट्रो-एशियाटिक) के अंतर्गत आता है। हो भाषा की अपनी लिपि वारंग-क्षिती है जिसे लाखो बोदरा ने बनाया है।
Note:-2011 के जनगणना के अनुसार झारखंड में जनजातीय जनसंख्या का 31.26% संथाल, 19.86% उरांव और 14.22% मुंडा है।
निवास स्थान
झारखंड में हो जनजाति का आगमन 600 BC में मुंडाओं के साथ हुआ था। इसका सघन निवास स्थान सिंहभूम के दक्षिणी भाग में है। पश्चिम सिंहभूम में हो जनजाति की सबसे ज्यादा जनसंख्या पाई जाती है। सारंडा के जंगलों में हो जनजाति की बड़ी जनसंख्या पाई जाती है।
खानपान
हो जनजाति का मुख्य भोजन चावल है। इनका मुख्य पेय दियांग/ इली है जो चावल को उबालकर उसमे रानू मिलाकर बनाया जाता है। “लेटो मांडी” और “पोडोम जिलू” इनके मुख्य व्यंजन है। मद्यपान का इस समाज मे काफी प्रचलन है।
Note:- लेटो मांडी का मतलब हड़िया होता है तथा पोडोम जिलु चिकन को पत्ते में लपेट के जलाकर बनाया जाता है।
Note:- हो जनजाति को सबसे एस आर टिकेल ने लड़ाका कोल कहा।
आर्थिक जीवन
हो जनजाति स्थायी कृषक होते है। इनकेखेती की भूमि को 3 भागो में बाँटा गया है।
a) बाड़ी भूमि (बेड़ो भूमि)- घर से सटे या आसपास की भूमि जिसमे ये मुख्य रूप से सब्जी उगाते है।
b) दोन भूमि (वादी भूमि) – ये सबसे उपजाऊ और निचली भूमि है जिसमे ये धान उगाते है।
c) टाँड़ भूमि (गोड़ा भूमि) – ये उच्च भूमि है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ होते है। मुख्य रूप से इसपर दाल की खेती की जाती है जैसे:- चना, अरहर, कुल्थी।
इनके निवास स्थान के आस पास लोहे के खान होने के कारण इसकी बड़ी आबादी लोहे के खान में काम करते है।
धार्मिक जीवन
हो जनजाति का प्रमुख देवता सिंगबोंगा है जो सूर्य का प्रतिरूप है। इनके ग्राम देवता को पाहूई बोंगा कहा जाता। धरती माता को “ओटी बोडोम” के नाम से पूजा करते है। पहाड़ को “मरांग बुरु” और सर्प देवता को “नागे बोंगा” के नाम से पूजा करते है। “देशाउली बोंगा” को वर्षा देवी के रूप में पूजा करते। जादू-टोना, भूत-प्रेत के प्रति काफी विश्वास देखा जाता है। डायन प्रथा का सबसे ज्यादा प्रभाव इस समाज मे देखा जाता है। इसके धार्मिक प्रधान को “देउरी” कहा जाता है। इनके घर के एक कोने में पूजा के लिए स्थान होता है जिसे आंदिस्थल कहते है, यहॉं पूर्वजों का वास माना जाता है।
सामाजिक जीवन
प्रारंभ में हो समाज मातृसत्तात्मक था बाद में समाज पितृसत्तात्मक हो गया। समगोत्रीय विवाह वर्जित होता है। बाल विवाह वर्जित है। इस समाज मे निर्जीव चीजो से विवाह की प्रथा पाई जाती है जैसे सूर्य, चंद्रमा। हो जनजाति में विवाह के कई रूप देखने को मिलता है:-
a) आंदि विवाह – यह आयोजित विवाह का एक रूप है। यह सबसे प्रचलित विवाह एवं श्रेष्ठतम विवाह है। इसमे दोनो पक्षो की सहमति से विवाह आयोजित होता है। इस विवाह में वधुमूल्य अनिवार्य होता है जिसे हो समाज मे “कुरी गोनोंग टाका” कहा जाता है।
b) दिकू आंदि विवाह – यह विवाह संपन्न और शिक्षित हो वर्ग मे पाया जाता है। यह विवाह हो जनजाति के समाज के बाहर के वर/कन्या से विवाह कराया जाता है। इस विवाह को ब्राह्मण द्वारा सम्पन्न कराया जाता है।
c) ओपोरतिपि विवाह – यह हरण विवाह का हो रूप है। इस विवाह में वर कन्या का अपहरण करके विवाह कर लेता है।
d) राजी-खुशी विवाह – यह प्रेम विवाह का एक रूप है। इसमे वर-कन्या अपने आपसी सहमति से विवाह करते है।
e) आनदेर विवाह – यह हठ विवाह का हो रूप है। इस विवाह में कन्या बलपूर्वक वर के घर मे रहने लगती है और तब तक उस परिवार की सेवा करती है जब तक कि वर पक्ष वाले विवाह की स्वीकृति न दे दे।
हो समाज मे तलाक, विधवा विवाह और पुनर्विवाह स्वीकार्य है। हो समाज मे एकल विवाह का प्रचलन है पर कही कही बहुविवाह का भी प्रचलन है। हो समाज में दूध लोटावा विवाह भी किया जाता है।
Note:- हो जनजाति में घर-जमाई रहने की प्रथा नही पाई जाती है। गोलट विवाह और सेवा विवाह भी हो समाज मे देखने को कम मिलता है।
पर्व-त्यौहार
हो समाज की सबसे मुख्य पर्व “मागे पर्व” है। यह पर्व माघ महीने में कृषि-वर्ष के समाप्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके अलावा हो समाज में वाह हेरो, बतौली, दमुराई (धान रोपनी) जोमनामा कोलम आदि प्रमुख त्यौहार है।
गोत्र
हो जनजाति में गोत्र को किल्ली कहा जाता है। हो जनजाति में 80 से ज्यादा गोत्र पाए जाते है। रिजले के अनुसार हो जनजाति के 46 गोत्र है।
शासन व्यवस्था
हो जनजाति में सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था पाई जाती है जिसे मुंडा मानकी शासन व्यवस्था कहा जाता है। इनके गांव का प्रधान मुंडा होता है तथा डाकुआ मुंडा का सहायक होता है। अंतरग्राम पंचायत को पीड़ कहा जाता है। पीड़ का प्रधान मानकी होता है। पूरे कोल्हान क्षेत्र को 26 पीड़ में बांटा गया है।
हो जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1) इस जनजाति में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की आबादी है।
2) इस जनजाति में शिक्षा का आभाव पाया जाता है।
3) हो जनजाति के चेहरे पर मूँछ और दाढ़ी की कमी पाई जाती है।
4. इनके युवागृह को गीतिओड़ा कहा जाता है।
5) इनके गाँव के बीच मे अखरा होता है जिसे स्टे-तुरतुड़ कहा जाता है। यह मुंडा या मानकी के टोला के पास होता है। यहां नाच-गान, मनोरंजन, प्रशिक्षण होता है।
6) हो जनजाति के लोग दूसरे जाति के घर मे भोजन नही करते है। ऐसा करने पर पूरे गाँव को सामूहिक भोज कराने का दंड दिया जाता है।
7) हो जनजाति लोग चुटिया नागपुर से जाकर कोल्हान क्षेत्र में बसे हैं। हो कोल्हान में बसने से पहले वहां भुईयां और सरक जैन जाति के लोग बसे हुए थे हो लोगों ने उन्हें कोल्हान क्षेत्र से भगाकर संपूर्ण क्षेत्र में आधिपत्य कर लिया था।
8) मुंडा भूमिज और हो जनजातियों को कोल की संज्ञा दी जाती है। इन तीनों में हो को शारीरिक दृष्टि से मजबूत माना जाता है। सच्चाई ईमानदारी सहृदयता तथा सहायक प्रवृत्ति के लिए हो हमेशा से विख्यात रहे हैं।
9) हो समाज में डायन प्रथा का विकराल रूप पाया जाता है।
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