लोकोक्तिक (लोकबाइन) बिसेसता

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लोकोक्तिक (लोकबाइन) बिसेसता

खोरठा भाखाक लोकोक्तिक बा लोकबाइनेक हेठें लिखल बिसेसता पावल जाइ हे:-

खोरठा भाषा के लोकोक्ति या लोकबाइन में निम्न विशेषता पाई जाती है:-

1. गागरे सागर भरेक खेमोता (क्षमता) – हिन्दीञ जकरा गागर में सागर भरेक-छमताक बात कहल जाहे, ऊ गुन खोरठा लोकबाइने पावल जाहे, काहेकि खोरठा लोकबाइन छोट-छोट होवे मेकिन बिसेस अरथ राखइ। एकर भाव गंभीर आर अड़गुड़माम (रहस्यपूर्ण) होवे हे। जइसे “ददाक भोरसे कतारी चास”, “तुरी गेल आपन लुरी” एकर में अरथ आर भाव “लकछना” सबद सकति से लगवल जाहे।

गागर में सागर भरने की क्षमता – हिंदी भाषा में जिसे गागर में सागर भरने की क्षमता की बात कही जाती है, वो गुण खोरठा लोकोक्ति में पाई जाती है क्योंकि खोरठा लोकोक्ति छोटे छोटे होते है किंतु विशेष अर्थ रखते है। इसके भाव गंभीर और रहस्यपूर्ण होते है जैसे “ददाक भोरसे कतारी चास”, “तुरी गेल आपन लुरी” इसके अर्थ और भाव में “लक्षणा” शब्दशक्ति से पता लगाया जाता है।

2. मानुसेक अनुभूतिक उपज – मानुस आयन जिनगीञ जे अनुभव करल हे, देखल आर सुनल हे, ओकर से जे सीखल हे, ओहे काभइत और लोकबाइन बनल आर पटतइर रूपे अचके मुँह से बहराइ जाहे । सेइ ले एकरा अनुभूतिक उपज (प्रसूत) कहल जाइ पारे।

मनुष्य के अनुभूति का उपज – मनुष्य ने आदिकाल से जिंदगी में जो अनुभव किया है, देखा और सुना है, उससे सीखा है, वही कहावत और लोकोक्ति बना और उदाहरणस्वरूप अचानक मुंह से बाहर आने लगा। इसलिए इसे मनुष्य के अनुभूति कहा जा सकता है।

3. नितिसासतरेक नियर सोभाब – कहल जाइ पारे कि लोकबाइन एगो नितिसासतरेक भाग लागे। ककरो कुछ सिखावेक आर बुझावेक हे बा सीख दियेक हे ताब लोकबाइन परजोग करल जाहे। एहे ले एकरा लोक साहितेक नितिसासतर कहल जाहे ।

नीतिशास्त्र के जैसा स्वभाव – कहा जा सकता है की लोकोक्ति नीतिशास्त्र का ही एक भाग है। किसी को कुछ सीखना है, समझाना है, या सीख देना है तब लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इसे लोक साहित्य का नीतिशास्त्र कहा जाता है।

4. लोकबाइनेक भासा सहज आर सरल- खोरठा लोकबाइनेक भाखा एगदम सहज आर सरल पावल जाहे, सेइले एकरा साधारन लोको सीधे बुझी जाइ, एहे खातिर एकरा लोकबाइनो कहल जाइ।

लोकोक्ति का भाषा सहज और सरल – खोरठा लोकोक्ति की भाषा एकदम सहज और सरल पाया जाता है, इसलिए इसे साधारण व्यक्ति भी आसानी से समझ जाता है, इसलिए इसे लोकबाइन कहा जाता है।

5. बेसी लोकबाइन पइद रूपे आर तुकांत जुडल पावल जाइ – खोरठा भाखाक बेसी लोकबाइन पइद रूपे आर तुकान्त रुपे पावल जाइ। जे सरल (सीधा ) वाइकें रहे। जइसे “तुरी गेल, आपन लुरी” हियां तुरी आर लुरी में एगो तुक हे आर ई पइद रुपे हे, ‘एका पूता, चुके मूता” पइद रूपे हे, हियां पूता आर मूता में तुक हे। मगुर ‘ददाक भरोसे कतारी चास” में तुक नखे आर ना ई पइद रूपे हे, मेन्तुक ई सरल बाइके है।

ज्यादातर लोकोक्ति पद्य रूप में और तुकांत जुड़ा हुआ होता है – खोरठा भाषा का ज्यादतर लोकोक्ति पद्य रूप में और तुकांत रूप में पाया जाता है। जो सरल वाक्य में होता है। जैसे – “तुरी गेल, आपन लुरी” यहां तुरी आर लुरी में तुक एक तुक है, ‘एका पूता, चुके मूता” भी पद्य रूप में है, और पूता आर मूता में एक तुक हे। लेकिन ‘ददाक भरोसे कतारी चास” में कोई तुक नहीं है और न ही यह पद्य रूप में है, किंतु ये सरल वाक्य में है।

6. लोकबाइनेक पटतइर रूपे परजोग –लोकबाइनेक परजोग बिनु कोनहों भिनु सबद बा बाइक के सहजोग के करल जाइ पारे। एकर माने ई एगो गोटा आर स्वतंत्र बाइक हेकइ। से ले लोकोक्तिक पटतइर (दृष्टांत) कहल जाइ।

लोकोक्ति का दृष्टांत के रूप में प्रयोग – लोकोक्ति का प्रयोग बिना किसी अन्य शब्द या वाक्य के सहयोग से किया जा सकता है। इसका मतलब यह एक सम्पूर्ण और स्वतंत्र वाक्य है। इसलिए इसे पटतइर (दृष्टांत) कहा जाता है।

7. सलाठन रूपे परजोग – जखन कोकरो पर फिंगाठी करल जाइ तखन उलाहना करे खातिर सलाठन रूपे लोकोक्तिक परजोग करल जाइ।

हास्य के रूप में प्रयोग – जब किसी पे व्यंग किया जाता है तब रोमांचक बनाने के लिए हास्य के रूप में लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।

8. गइद पइद दुइयो रुप – खोरठा लोकबाइन गइद आर पइद दुइयो रुपे पावल जाइ, जइसे:-

गइद रुप:- आबट गरु इंड़की खाइ, उसावल माटी बिलारी कोड़े, अघाइल बोकली पोठी तीता, आरो मुड़री बेल तर?, गाछे कठर होंठे तेल आरो- आरो।

पइद रुप:- के सुने के पतिआय, हाथी के कउआ लेगल जग पतिआय। दस मिली करा काज, हारले जितले नखइ लाज। चासा चिनहाय आइरे, तांती चिनहाय पाइरे।

गद्य और पद्य दोनो रूप में – खोरठा लोकोक्ति गद्य और पद्य दोनो रूपो में पाया जाता है, जैसे:-

पद्य रूप – के सुने के पतिआय, हाथी के कउआ लेगल जग पतिआय। दस मिली करा काज, हारले जितले नखइ लाज। चासा चिनहाय आइरे, तांती चिनहाय पाइरे।

गद्य रूप – आबट गरु इंड़की खाइ, उसावल माटी बिलारी कोड़े, अघाइल बोकली पोठी तीता, आरो मुड़री बेल तर?, गाछे कठर होंठे तेल इत्यादि।

9. मड़उ सबाद नाय के जुगुर पावल जाइ – खोरठा लोकबाइन साफ-सुथर आर सामाजेक चलन लखे पावल जाइ। एकराय कोनहों गारी, खाराप बाइत, लुइझरगिरि, भोंडोपना के कमी पावल जाइ।

अश्लील शब्द का प्रयोग नही के बराबर – खोरठा लोकोक्ति साफ सुथरा और समाज में प्रचलन के लायक पाया जाता है। इसमें गाली, खराब बात, गंदापन, फूहड़ की कमी पाई जाती है।

10. ठेंठ सबदेक परजोग – खोरठा लोकबाइने ठेंठ खोरठा सबदेक परजोग पावल जाइ। जे लोक खोरठाक जानकार हके ऊ एकरा आसानी से बूझेल पार जाइ मकिन बाकि लोकेक लागिन ई बूझेल कति कठिन काम हके।

शुद्ध खोरठा का प्रयोग – खोरठा लोकोक्ति में शुद्ध खोरठा शब्दो का प्रयोग किया जाता है। जो लोग खोरठा के जानकार है वो इसे आसानी से समझ जाता है लेकिन अन्य लोगो के लिए ये समझना

शब्दावली

अड़गुड़माम – रहस्यपूर्ण

मड़उ – अश्लील

फिंगाठी – व्यंग्य

सलाठन – हास्य

हेठें – नीचे

कति – थोड़ा

ठेंठ – शुद्ध

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