Q. लिच्छिवी गणतंत्र में प्रचलित शासन पद्धति की मूल विशेषताओं का वर्णन करे। वर्तमान समय में प्रचलित गणतांत्रिक शासन व्यवस्था और लिच्छिवी गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में क्या क्या समानताएं देखने को मिलती है?
Q. Describe the basic features of the system of governance prevalent in the Lichchhavi Republic. What similarities can be seen between the currently prevalent republican governance system and the Lichchivi republican governance system?
परिचय –वज्जी महाजनपद मगध के उत्तर में गंगा नदी के उत्तर से नेपाल की पहाड़ियों तक स्थित था। यह गणसंघ आठ कुलों के संयोग से बना था और इनमें चार (विदेह, ज्ञातृक, वज्जि तथा लिच्छवि) कुल अधिक प्रमुख थे। इतिहासकार स्मिथ के अनुसार लिच्छिवी, मंगोलो और तिब्बतियों से मिलते जुलते पहाड़ी इलाके के लोग थे जो शवों को खुले में छोड़ देते थे। इस बात से वह यह निष्कर्ष निकालते है कि इस कारण मनु ने अपनी पुस्तक मनुस्मृति में इसे पतित क्षत्रिय का नाम दिया। किन्तु यह बात तर्कसंगत नही क्योंकि ऐसी परंपरा ईरानियों में भी पाई जाती थी। दूसरी तरफ वैदिक सक्षयों से यह प्रतीत होता है कि लिच्छिवी पतित क्षत्रिय/वृत्या थे जो ब्राह्मणों के रीति- रिवाज को नही मानते थे।
Introduction – Vajji Mahajanapada was situated in the north of Magadha from the north of river Ganga to the hills of Nepal. This Ganasangha was formed by the combination of eight clans and among them four (Videha, Gyantrika, Vajji and Lichchavi) clans were more prominent. According to historian Smith, the Lichchivi were a mountain people similar to the Mongols and Tibetans who left dead bodies in the open. From this he concludes that for this reason Manu in Manusmriti called him a fallen Kshatriya. But this is not logical because such tradition was found among Iranians also. On the other hand, it appears from the Vedic evidence that the Lichchivis were fallen Kshatriyas/Vrityas who did not follow the customs and traditions of the Brahmins.
लिच्छवी शक्ति का उदय – छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में 16 महाजनपदों के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में 10 गणराज्यों का अस्तित्त्व था। जो थे कपिलवस्तु के शाक्य, रामग्राम के कोलिय, केसपुत्त के कलाम, सुमसुमारा के भग्ग, अलकप्प के बुली, कुशीनगर के मल्ल, पावा के मल्ल, पिप्लीवन के मोरीय, मिथिला के विदेह, वैशाली के लिच्छिवी। लिच्छिवी गणतंत्र का शासन 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक रहा। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में लिच्छवी गणराज्य शक्ति मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित हुई। यद्यपि लिच्छवि वज्जि संघ के थे, फिर भी उन्हें स्वायत्त दर्जा प्राप्त था। बुद्धकाल में पूर्वी क्षेत्र में सरकार की दो प्रणालियाँ थीं राजतंत्रात्मक और गणतंत्रत्मक। अंग, मगध, वत्स आदि राजतंत्र थे। दूसरी ओर मल्ल, वज्जी, शाक्य, मोरिय, कोलिय, भग्ग आदि गणतंत्र थे। इनमें से दो गणराज्य काफी प्रसिद्ध थे, वज्जियों या लिच्छवियों के गणराज्य और मल्लों के गणराज्य। गणतंत्र राजशाही के बाद के विकास और लोकतंत्र के पूर्ववर्ती थे। लिच्छवियों ने अपनी राजनीतिक शक्ति को मजबूत करने के उद्देश्य से अपने गणराज्य की स्थापना की। इसकी नींव का श्रेय चेतक को जाता है ,जो विदेह का एक बुद्धिमान और वीर राजा था।
Rise of Licchavi power – In the sixth century BC, apart from 16 Mahajanapadas, there existed 10 republics in eastern Uttar Pradesh and Bihar. They were Shakyas of Kapilavastu, Koliyas of Ramgram, Kalams of Kesaputta, Bhaggas of Sumasumara, Bullis of Alakapp, Mallas of Kushinagar, Mallas of Pava, Moriyas of Piplivan, Videhas of Mithila, Lichchivis of Vaishali. The Lichchhavi Republic ruled from the 6th century BC to the 4th century BC. The Licchavi Republic established itself as a strong power in the sixth century BC. Although the Licchavi belonged to the Vajji Sangha, they still had autonomous status. During the Buddha’s time, there were two systems of government in the eastern region, monarchical and republican. Anga, Magadha, Vatsa etc. were monarchies. On the other hand, Malla, Vajji, Shakya, Moriya, Koliya, Bhagga etc. were republics. Two of these republics were quite famous, the republic of the Vajjis or Licchavis and the republic of the Mallas. Republics were the later development of monarchy and the precursor to democracy. The Licchavis established their republic with the aim of consolidating their political power. The credit for its foundation goes to Chetak, who was an intelligent and brave king of Videha.
लिच्छवि का गणतांत्रिक संविधान
महावस्तु ग्रंथ से ज्ञात होता है कि गौतम बुद्ध लिच्छिवियों के विशेष निमन्त्रण पर वैशाली गए थे। लिच्छिवियों का शासन एक प्रकार का कुलीन परिवारों का प्रजातन्त्र था। इस राज्य की राजनीतिक शक्ति नागरिकों द्वारा निर्वाचित सभासदों के हाथों में थी। राजकार्य चलाने वाले वृद्ध हुआ करते थे, जिनमें से प्रत्येक को ‘राजा’ कहा जाता था। इतिहासकार आर के मुखर्जी का विचार है कि लिच्छिवी गणराज्य में शासन कार्य को चलाने के लिए 7707 राजा होते थे। जिसे 1,68,000 वैशाली के नागरिक चुनते थे। उनमें से कई उपराज़ा, सेनापति, भंडारिक, तथा अन्य गणतांत्रिक संस्था के सदस्य होते थे। वे सभी अपने तर्को और विवादो से कुख्यात थे। बौद्ध साहित्य ललित विस्तार” में लिखा है कि” वैशाली के लिच्छिवी में वृद्धो और अपने से ज्यादा उम्र के लोगो के लिए आदर का नियम लागू नहीं था। प्रत्येक अपने आप को राजा समझता था। मैं राजा हूं, मैं राजा हूं, कोई किसी का अनुयायी नही है।” पाणिनि के अष्टाध्यायी अनुसार गण में ऐसे क्षत्रिय शासक होते थे जिसे शासन के लिए दीक्षा दी जाती थी और वे राजा कहलाते थे।” कौटिल्य ने लिच्छिवी गणतंत्र को “राजशब्दोपजीवी” नाम से जिक्र किया है। इनके अनुसार सभी नागरिक राजा कहलाते थे, कोई किसी से हीन नही समझा जाता था। लिच्छिवी गणराज्य के शासन का मुख्य आधार गण और संघ थी। गण, शासकों के समुह को कहा जाता था तथा संघ, लिच्छिवियों की संस्था को। विभिन्न अवसरों में लिच्छवियों ने विदेह और मल्लों के साथ मिलकर संघ करता था। लिच्छवियों और मल्लों के संघ की सभा में 18 सदस्य होते थे, जिसमे दोनो के 9-9 सदस्य होते थे। संघीय सदस्यों के प्रमुख को “गण राजा/गणनायक/गणमुखिया” कहा जाता था। 9 सदस्यों में गणमुखिया के साथ अष्टकुलिकस होते थे। गणमुखिया और अष्टकुलिकस में 8 राजाओं का चयन चुनाव के माध्यम से होता था। गणसंघ के विधायी, कार्यकारी और न्यायिक कार्य इसी 9 सदस्यीय परिषद के द्वारा किया जाता था। गण मुखिया लिच्छवी गणराज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था, वह राज्य का प्रमुख और सर्वोच्च न्यायाधीश दोनों था, और संथागार द्वारा 10- 15 वर्ष के लिए चुना जाता था।
मल्ल, लिच्छवियों के समान शक्तिशाली नही थे किन्तु निर्णय लेते समय समान प्रतिनिधित्व मिलता था। गणनायकों की परिषद को गणसभा कहा जाता था । इसने संविधान और कानून बनाये। व्यक्तिगत इकाइयाँ गण या संघ के संविधान के अनुसार शासित होती थीं ।
It is known from Mahavastu Granth that Gautam Buddha had gone to Vaishali on the special invitation of Licchivis. The rule of Lichchivis was a kind of democracy of aristocratic families. The political power of this state was in the hands of the councilors elected by the citizens. There used to be elders who ran the government affairs, each of whom was called ‘Raja’. Historian RK Mukherjee is of the opinion that there were 7707 kings to run the governance in Lichchhavi Republic. Which was elected by 1,68,000 citizens of Vaishali. Many of them were princes, generals, stewards, and members of other republican institutions. All of them were notorious for their arguments and controversies. It is written in Buddhist literature “Lalit Vistaar” that “The rule of respect for elders and people older than oneself was not applicable in Lichchivi of Vaishali Everyone considered himself a king. I am the king, I am the king, no one is anyone’s follower.” According to Panini’s Ashtadhyayi, there were such Kshatriya rulers in the Gana who were given initiation to rule and they were called kings. Kautilya has mentioned the Licchivi republic by the name “Rajashabdopajivi”. According to them, all citizens were called kings, no one was considered inferior to anyone else. The main basis of governance of Lichchhavi Republic was Gana and Sangha. Gana was the group of rulers and Sangha was the organization of Licchivis. On various occasions the Lichchhavis formed alliances with the Videhas and the Mallas. There were 18 members in the assembly of Lichchavis and Mallas, in which both had 9 members each. The head of the federal members was called “Gana Raja/Gananayak/Ganmukhiya”. Of the 9 members, there were Ashtakulikas along with Ganmukhiya. Among Ganmukhiyas and 8 Raja of Ashtakulikas were selected through elections. The legislative, executive and judicial work of Gana Sangh was done by this 9-member council. The Gana Mukhiya was the highest official of the Licchavi Republic, he was both head of state and supreme judge, and He was elected by Santhagaar for 10-15 years.
Mallas were not as powerful as Lichchhavis but they got equal representation while taking decisions. The council of Gananayakas was called Ganasabha. It made the constitution and laws. It made the constitution and laws. Individual units were governed according to the constitution of the gana or sangha.
गण (Council) –अष्टकथा के अनुसार लिच्छवी गणसंघ में, उपराजा और सेनापति तीन सर्वप्रमुख पद होते थे। सेनापति को नायक भी कहा जाता था। जिसका चुनाव मतदान प्रक्रिया द्वारा किया जाता था। एक जातक में चौथे प्रमुख “भंडागारिक” पदाधिकरी का जिक्र आता है जो वित्तमंत्री का कार्य करता था। इन चारो पदाधिकारियों से मंत्रिमंडल का निर्माण होता था। मंत्रिमंडल का मुख्य कार्य प्रशासन की देखभाल करना था। इतिहासकार अल्टेकर का मानना है कि लिच्छवी गणसंघ में 9 तथा मल्ल गणतंत्र में 4 मंत्री होते थे। इन लोगो को राजतिलक लगाकर पवित्र किया जाता था। बौद्ध साहित्य लिच्छिवियों के सामाजिक, और राजनीतिक जीवन पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालता है। यहाँ कानून द्वारा नागरिकों का सामाजिक जीवन को नियंत्रित किया जाता था। सबके लिए सामान्य नियम यह था कि कोई भी संघीय कुलों से बाहर विवाह नहीं कर सकता था। उनका आन्तरिक संगठन अच्छा था और गौतम बुद्ध के अनुसार इसलिए लिच्छिवि गण अजेय था। इसकी जनसंख्या काफी अधिक थी। अनेक भवन इस नगर की सुन्दरता को बढ़ाते थे। इस नगर का विशेष धार्मिक महत्त्व था। वर्धमान महावीर की माता इसी राज्य के क्षत्रियों की वंशज थी।
Gana (Council) –According to Ashtakatha, in Licchavi Gana Sangh, there were three most important posts, Uparaja and Senapati. The commander was also called a Nayak. Whose election was done through voting process. In one Jataka, there is mention of the fourth major “warehouse” official who used to work as the Finance Minister. The cabinet was formed from these four officials. The main function of the Cabinet was to look after the administration. Historian Altekar believes that there were 9 ministers in the Licchavi Gana Sangh and 4 in the Malla Republic. These people were purified by applying coronation. Buddhist literature throws detailed light on the social and political life of the Licchivis. Here the social life of the citizens was controlled by law. The general rule for all was that no one could marry outside the confederal clans. Their internal organization was good and according to Gautam Buddha, hence the Licchivi group was invincible. Its population was quite high. Many buildings enhanced the beauty of this city. This city had special religious importance. Vardhaman Mahavir’s mother was a descendant of the Kshatriyas of this state.
राजा – राजा’ से तात्पर्य एक निरंकुश शासक से नहीं अपितु राज्य का शासक या प्रशासकीय सभा का एक सदस्य से होता था। स्रोतों से यह ज्ञात नहीं होता कि इन राजाओं का चुनाव होता था या उनका पद विभिन्न परिवारों के पितृ वंशानुगत स्वामी या नायक होते थे। पण्य जातक के अनुसार लिच्छवी राज्य में 7707 राजा मिलकर नागरिक प्रतिनिधि सभा का निर्माण करते थे। इस सभा के सदस्य परस्पर एक-दूसरे से छोटे या बड़े नहीं माने जाते थे। इन्हीं में एक राजा, एक उपराजा, सेनापति ओर भंडागारिक (या कोषाध्यक्ष) चुने जाते थे। बौद्ध अभिलेखों में महत्वपूर्ण लिच्छवी राजाओ के नाम संरक्षित हैं जिनमें चेतक का नाम विशेष उल्लेख के योग्य है। चेटक की बहन त्रिशला का जैन धर्म के प्रचारक महावीर स्वामी की माँ थीं। चेटक की पुत्री चेल्लना का विवाह मगध के राजा बिम्बिसार से हुआ था।
Raja – Raja’ meant not an autocratic ruler but the ruler of a state or a member of the administrative assembly. It is not known from the sources that these kings were elected Or their position was that the patriarchs of various families were hereditary lords or Nayaks. According to Panya Jataka, 7707 kings together formed the Citizens’ Representative Assembly in the Licchavi state. The members of this assembly were not considered younger or older than each other. Among these, Raja, Upraja, Senapati and a Bhandagarik (or treasurer) were elected. The names of important Licchavi kings are preserved in Buddhist inscriptions, among which the name of Chetak deserves special mention. Chetak’s sister Trishala was the mother of Mahavira, the preacher of Jainism. Chetak’s daughter Chellana was married to King Bimbisara of Magadha.
गणतंत्र की परिषद या संघ (Assembely) – परिषद के सदस्यों की नियुक्ति चुनाव के द्वारा नही होती थी। परिषद निर्माण प्रत्येक कुल के मुखिया मिलकर करते थे। प्रत्येक कुल का ज्येष्ठ पुरुष परिषद के सदस्य होते थे जिसे महर्षि पाणिनि के अष्टअध्यायी में गोत्रापत्य कहा गया है। महिला और कम्मागर, (मजदूर), दास परिषद में भाग नही लेते थे। सामान्य स्थिति में परिषद की बैठक साल में एक बार वसंत उत्सव के समय होती थी किन्तु सामजिक -आर्धिक या सैन्य जैसे गंभीर मुद्दों पर कई बैठके होती थी।
Council or Parishad of the Republic (Sangh)- The members of the Council were not appointed through elections. The heads of each clan used to form the council together. The eldest male member of each clan was the member of the council which has been called Gotrapatya in the Ashtadhyayi of Maharishi Panini. Women and Kammagar (Labour) & Servents did not participate in the Parishad. Normally, the council meeting was held once a year during the spring festival, but many meetings were held on serious issues like socio-economic or military.
संथागार (व्यवस्थापिका) – यह सबसे बड़ी सभास्थल (व्यवस्थापिका) होती थी। इसके देखभाल करने वाले को “आसनप्रज्ञापक” कहा जाता था। संथागार में जिस विषय पर चर्चा होती थी उसे “विचारणीय विषय” कहा जाता था। तथा कोई निर्णय मतदान द्वारा लिया जाता था जिसे मतविभाजन कहा जाता था। मतविभाजन कराने को जिम्मेवारी “शलाकाग्राहक” निभाता था। मत का पता लगाने के लिए दो रंग की “शलाका” (पत्थर/लकड़ी के गुटके) सभी सदस्यों को दी जाती थी। अपने मत को गुप्त रूप से प्रदर्शित कर बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता था। मतविभाजन के दोनो रूप प्रचलित थे, प्रत्यक्ष मतदान को “वितरक” तथा अप्रत्यक्ष मतदान को ‘गुहायक” कहा जाता था। कभी कभी मतविभाजन मत संग्रह करने वाले के कान में कह के मत प्रकट किया जाता था जिसे “संकर्णपक” कहा जाता था।
मतदान इस तरह के वोट को बौद्ध साहित्य में “छंद” कहा गया है। जब कोई नागरिक क़ानून बनता था तो ढोल नगाड़े बजाकर लोगो को सूचित किया जाता था। किसी राजनीतिक, कृषि, सैन्य जैसे महत्वपूर्ण मामले में निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञ को सभा में जगह दी जाती थी जिसे “महल्लक” कहा जाता था।
संघ में जिस विषय में चर्चा होनी होती थी उस पर प्रस्ताव लाया जाता था। बौद्ध साहित्य में इस प्रस्ताव को “प्रतिज्ञा” कहा गया है। प्रस्ताव रखने से पूर्व विज्ञाप्ति प्रसारित की जाती थी। सभा में प्रस्ताव के समर्थन करने वाले सदस्य चुप रहते थे और विपक्ष वाले सदस्य अपने तर्क प्रस्तुत करते थे। बहुमत के आधार पर प्रस्ताव पारित किया जाता था। संघ में गणपूर्ति का नियम भी लागू था। गणपूर्ति को “गणतिय या संघतिय” कहा जाता था। एक निश्चित संख्या में सदस्य उपस्थित होने पर ही सभा में कोई निर्णय लिया जाता था।
Santhagaara (Vyathapika) – This was the largest meeting place (Visyatapika). Its caretaker was called “Asanaprajnapaka”. The topic that was discussed in the Santhagaar was called “topic for consideration”. And any decision was taken by voting which was called division of votes. The responsibility of organizing the division of votes was performed by the “Shalakagrahak”. To find out the votes, two colored “shalakas” (stone/wooden blocks) were given to all the members. Decisions were taken on the basis of majority by expressing one’s vote secretly. Both forms of division of votes were prevalent, direct voting was called “Vitarak” and indirect voting was called “Guhayak”. Sometimes division of votes was expressed by whispering the vote into the ear of the person collecting the votes, which was called “Sankarnapaka”.
Voting This type of voting is called “chhanda” in Buddhist literature. Whenever any civil law was made, people were informed by playing drums. To take decisions in any important matter like political, agricultural or military, an expert was given a place in the Parishad which was called “Mahallak”.
A proposal was brought on the subject which was to be discussed in the Sangh. In Buddhist literature this proposal is called a “vow”. Advertisements were circulated before the proposal was made. In the meeting, the members supporting the proposal remained silent and the opposing members presented their arguments. The proposal was passed on the basis of majority. The rule of quorum was also applicable in the Sangh. Quorum was called “Ganatiya or Sanghatiya”. Any decision was taken in the meeting only when a certain number of members were present.
विदेशी मामले – विदेशी मामलो की देखभाल करने के लिए 9 सदस्सीय समिति करती थी। आसपास के राज्यों में संदेश पहुंचाने के लिए दूतों की नियुक्ति की जाती थी।
Foreign Affairs – There was a 9 member committee to look after foreign affairs. Messengers were appointed to deliver messages to the surrounding states.
लिच्छवि गणतंत्र की राजधानी – लिच्छवि गणतंत्र की राजधानी बिहार के वैशाली जिला में स्थित बसाढ़ में अवस्थित थी। वर्तमान में वैशाली एक जिला है जिसका मुख्यालय हाजीपुर है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली विश्व का सबसे पहला गणतंत्र है। यह नगरी केवल लिच्छवि गणराज्य की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण वृज्जि संघ की राजधानी भी रही थी। यह स्थान चार दीवारों से घिरा हुआ था, प्रत्येक दीवार दूसरों से दो मील की दूरी पर थी। इसमें कई प्राचीरें और प्रवेश द्वार थे। वैशाली को तीन भाग में बांटा गया था। पहले क्षेत्र में सुनहरे गुंबदों वाले सात हजार आवासीय घर शामिल थे। शहर के मध्य भाग में चांदी के गुंबदों वाले चौदह हजार घर थे। तीसरे क्षेत्र में तांबे के गुंबदों वाले इक्कीस हजार घर शामिल थे। इन क्षेत्रों में क्रमशः उच्च, मध्यम और निम्न वर्ग निवास करते थे।
Capital of Lichchavi Republic – The capital of Lichchavi Republic was located in Basadh located in Vaishali district of Bihar. Presently Vaishali is a district whose headquarters is Hajipur. According to historical evidence, Vaishali is the world’s first republic. This city was not only the capital of the Licchavi Republic but also the capital of the entire Vrijji Sangha. This place was surrounded by four walls, each wall being at a distance of two miles from the others. It had many ramparts and gateways. Vaishali was divided into three parts. The first area included seven thousand residential houses with golden domes. In the central part of the city there were fourteen thousand houses with silver domes. The third area included twenty-one thousand houses with copper domes. The upper, middle and lower classes lived in these areas respectively.
न्याय व्यवस्था – लिच्छवी गणराज्य में 7 न्यायालय होते थे। जिसका क्रम क्रमशः था:- विनिच्चयमहामात्र, वोहारिक, सूत्रधर, अट्ठकुलक, सेनापति, उपराजा, राजा। तत्कालीन न्याय व्यवस्था में अभियुक्त पर क्रमशः सात न्यायालयों में विचार किया जाता था। न्याय प्रशासन के लिए विशेषज्ञों को रखने की परम्परा थी। “अष्टकुलक” सर्वोच्च न्यायालय को कहा जाता था जिसमे 8 विशेषज्ञ सदस्य होते थे। इसके फैसले के बाद प्रमुख पदाधिकारियों सेनापति, उपराजा और राजा के पास फैसले के सत्यापन के लिए भेजा जाता था। प्रत्येक न्यायालय को यह अधिकार था कि अगर अपराधी निर्दोष पाया जाता है तो उसे मुक्त कर सकता है। अगर अभियुक्त दोषी पाया जाता हो तो अपने से उच्च न्यायालय में भेज दे। इस प्रकार दंड देने का अधिकार सिर्फ राजा के पास था वह न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था। इस न्याय व्यवस्था कि प्रशंसा करते हुए इतिहासकार मजुमदार का कहना है कि इस तरह की नागरिक सुरक्षा की व्यवस्था संसार में बहुत कम देखने को मिलती है। इतिहासकार जायसवाल का कहना है कि लिच्छवी गणराज्य में नागरिक सुरक्षा की जाती थी। इतिहासकार घोषाल लिच्छवी गणराज्य के न्याय व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहते है कि यह एक बहुत लंबी प्रक्रिया थी जो इसके व्यवहार में संदेह पैदा करती है। इस प्रक्रिया में वास्त्विक अपराधी को छूट जाने की ज्यादा संभावना होगी। इस प्रक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि राजा को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों और अधिकारियों पर विश्वास नहीं था। सातो न्यायालयों में अलग अलग विचार करने पर न्याय की प्रक्रिया में अनावश्यक विलम्ब होता होगा।
न्यायालयों में निर्णीत मामलों का नियमित रिकॉर्ड रखा जाता था जिस कॉपी में यह रिकॉर्ड रखा जाता था से पवेणीपुस्तक कहा जाता था। लिच्छिवियों के न्याय व्यवस्था से प्रभावित होकर स्वयं महात्मा बुद्ध ने इसकी प्रशंसा की थी।
Judicial System – There were 7 courts in the Lichchhavi Republic. Whose order was respectively:- Vinicchayamahamatra, Voharik, Sutradhar, Atthkulak, Senapati, Uparaja, Raja. In the then judicial system, the accused was tried in seven courts respectively. There was a tradition of hiring experts for the administration of justice. “Ashtakulak” was the name given to the Supreme Court which consisted of 8 experts. After its decision, it was sent to the key officials like commander, sub-king and king for verification of the decision. Every court had the right to acquit the criminal if he was found innocent. If the accused is found guilty then send him to the High Court. In this way, only the king had the right to punish and he was the supreme authority of justice. Praising this judicial system, historian Majumdar says that this kind of civil security system is rarely seen in the world. Historian Jaiswal says that civil defense was maintained in the Licchavi Republic. Historian Ghoshal criticizes the judicial system of the Licchavi Republic, saying that it was a very long process Which raises doubts about its behaviour. In this process, the real culprit would be more likely to go free. From this process it becomes clear that the king has control over his subordinate employees and officers. Taking separate views in seven courts would have caused unnecessary delay in the justice process.
A regular record of the decided cases was kept in the courts and the copy in which this record was kept was called Pavenipustak. Mahatma Buddha himself was impressed by the judicial system of Licchivis and praised it.
निष्कर्ष:- यद्यपि लोकतंत्र के आधुनिक अर्थ में लिच्छिवी के गणतंत्र को लोकतांत्रिक या गणतांत्रिक कहना सरल नही है। फिर भी एक समन्वित परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि शासनतंत्र राजतंत्र से भिन्न था। उससे ज्यादा सुयोजित थे क्योंकि शासन कि बागडोर किसी वंशानुगत शासक के हाथ में न होकर एक गण/समुह/परिषद के हाथ में थी। हालांकि इसमें आधुनिक लोकतंत्र और गणतंत्र के कई लक्षण दिखाई पड़ते है जैसे:- मतविभाजन, गुप्त मतदान, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मतदान, चुनाव, सभा, कोरम, विधेयक इत्यादि।
Conclusion:- Although it is not easy to call Lichchhavi’s republic democratic or republican in the modern sense of democracy. Nevertheless, in a unified perspective it can be said that governance was different from monarchy. They were more organized because the reins of governance were not in the hands of any hereditary ruler but in the hands of a group/council. However, many characteristics of modern democracy and republic are visible in it such as:- Division of votes, secret ballot, direct and indirect voting, elections, assembly, quorum, bill etc.
लिच्छवियों का पतन (मगध-लिच्छवि संघर्ष)
मगध के शासक बिम्बिसार के शासनकाल में लिच्छवियों ने मगध साम्राज्य पर आक्रमण किया। अजातशत्रु के शासनकाल में मगध और लिच्छवियों के बीच एक लंबा युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध से पहले वज्जियों के साथ एक संघ में एकजुट थे। इसके बाद हुए संघर्ष में लिच्छवियों और वज्जियों का विनाश हो गया।
मगध-लिच्छवी युद्ध के कई कारण थे। अजातशत्रु लिच्छवियों से बदला लेना चाहता था, क्योंकि उनके प्रमुख चेटक ने अजातशत्रु के सौतेले भाइयों के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया था। वे शाही हाथी और पारिवारिक आभूषणों के साथ वैशाली (लिच्छवी राजधानी) भाग गए थे और उन्हें राजनीतिक शरण दी गई थी। मगध-लिच्छवी युद्ध का वास्तविक कारण पड़ोसी गणराज्य के विरुद्ध मगध का आक्रामक साम्राज्यवाद था। युद्ध सोलह वर्षों तक चलता रहा। लिच्छवियों ने वज्जियों और अन्य छत्तीस गणराजाओं के साथ और मगध के खिलाफ काशी-कोशल राज्य के साथ एक शक्तिशाली गठबंधन बनाया। लेकिन अजातशत्रु के मंत्रियों ने मगध विरोधी संघ के सदस्यों के बीच कलह के बीज बोये और उनकी एकता को नष्ट कर दिया। अंततः अजातशत्रु द्वारा वज्जियन संघ को नष्ट कर दिया गया। वज्जि क्षेत्र को मगध में मिला लिया गया।
वृज्जि संघ को अजातशत्रु ने अपने प्रधान अमात्य वस्सकार को वैशाली में भेजकर तथा लिच्छवियों में फूट डलवाकर तोड़ने में सफलता प्राप्त की थी। अजातशत्रु ने युद्ध में वर्जित अस्त्र रथमुसल और महाशिलाकंटक का प्रयोग करके इस संघ को पराजित कर इसे नष्ट कर दिया।