Kharwar Tribes
खरवार जनजाति Kharwar Tribe
परिचय
खरवार का मूल निवास स्थान खेरिझार (कैमूर पहाड़ी) को माना जाता है। खरवार संताल, उराँव, मुंडा और हो के बाद झारखंड की पाँचवी सबसे बड़ी जनजाति है। ये अपने को उच्च हिन्दू मानते है। खरवार को 18 हजारी भी कहा जाता है। ये झारखंड में पाए जाने वाले 5 राजपूत जनजाति में से है। इसका मुख्य जमाव पलामू प्रमंडल (पलामू, गढ़वा, लातेहार) में है। इसके अलावे राँची और हजारीबाग में भी पाए जाते है।
यह जनजाति द्रविड़ प्रजातीय समूह के अंतर्गत आते है। खरवार की भाषा खेरवारी है जो आस्ट्रिक भाषा परिवार में आता है। खरवार अपने को हरिश्चंद्र रोहिताश्व का वंशज मानते है तथा खुद को सूर्यवंशी राजपूत कहते है। इसे खड़गवंशी भी कहा जाता है। 2011 के जनगणना के अनुसार झारखंड के जनजातियों के कुल आबादी का 2.88% है। इसकी जनसंख्या 2,48,974 है।
खरवार जनजाति की उपजातियाँ
इस जाती में राउत, मंझिया, खैरी, भोगता, देशवारी, गंझु, दौतलबंदी, दौवलबंदी, पटबंदी, द्वालबंदी है।
सामाजिक व्यवस्था
खरवार समाज पितृसत्तात्मक होता है। एकल परिवार की प्रधानता पाई जाती है। आयोजित विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है जो वधुमूल्य देकर किया जाता है। सेवा विवाह, गोलट विवाह और अपहरण विवाह भी प्रचलित है। समगोत्रीय विवाह वर्जित है। बाल विवाह को प्रचलन है। विधवा पुनर्विवाह का प्रचलन है जिसे सगाई कहा जाता है। तलाक प्रथा का प्रचलन है।
गोत्र
खरवार जनजाति में कई गोत्र और टोटम पाए जाते है जो- काँसी, नीलकण्ठ, हँसगढ़िया, बेसरा, साहिल, तिर्की, चण्डियार, लौहवार आदि है।
आर्थिक व्यवस्था
खरवारों की मुख्य पेशा कृषि है। इसकी बड़ी आबादी खैर वृक्ष के छाल से कत्था बनाने के व्यवसाय में लगी हुई है जो इनके परंपरागत पेशा है। । ये सुबह के नाश्ता को लुकमा, दिन के भोजन को कलवा तथा रात के भोजन को बियारी कहते है।
धार्मिक व्यवस्था
खरवारों का सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा है। इनके अलावे मचुकरानी, दुआरपार, दक्षिणी, दरहा, चंडी की भी पूजा करते है। सभी हिन्दू देवी-देवताओं पे इनकी गहरी आस्था है। हवन-यज्ञ के लिए ब्राह्मण/पुरोहित की सेवा लेते है, वही बलि चढ़ाने के लिए पाहन की सेवा ली जाती है। खरवारों के धार्मिक प्रधान को पाहन कहा जाता है।
राजनीतिक व्यवस्था
खरवारों के ग्राम पंचायत को बैठकी कहा जाता है। बैठकी का प्रमुख बैगा या मुखिया कहलाता है। अपने सभी विवाद को ये बैठकी में ही सुलझाते है। चार गाँव से मिलकर जो पंचायत बनता है उसे चट्टी कहा जाता है। चट्टी के प्रमुख को “चट्टी प्रधान” कहा जाता है। 5 गाँव से मिलकर बने पंचायत को पचौरा तथा इसके प्रमुख को “पचौरा प्रधान” कहा जाता है। 7 गाँव से मिलकर बने पंचायत को सतौरा तथा इसके प्रमुख को “सतौरा प्रधान” कहा जाता है।
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