Tribes Of Jharkhand
कोल जनजाति Kol Tribes
परिचय
कोल झारखंड की 32 वी जनजाति है। 8 जनवरी 2003 को कोल को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। यह प्रोटो ऑस्ट्रलोयड जनजाति परिवार के अंतर्गत आता है। कोल जनजाति का मूल निवास स्थान मध्य प्रदेश के रीवा जिला के बरदीजादा क्षेत्र के कुराली को माना जाता है। झारखंड में इसका जमाव संताल परगना क्षेत्र में पाया जाता है। दुमका जिला में इसकी आबादी सबसे ज्यादा है। इसके अलावे कोल देवघर और गिरीडीह जिला में पाए जाते है।
कोल जनजाति की मुल भाषा कोली है। झारखंड में कोल जनजाति मुख्यतः संताली भाषा बोलते है।
गोत्र
इस जनजाति में 12 गोत्र पाए जाते है किंतु इसमें टोटम प्रथा नही पाई जाती है। हांसदा, सोरेन, किस्कू, मरांडी, टुडू, चौडे, हेम्ब्रम, बास्की, बेसरा, चुनियार, मुर्मू, किसनोव।
आर्थिक जीवन
इस जनजाति का मुख्य पेशा लोहा गलाना तथा लोहे का सामान बनाना है। अधिकांश कोल भूमिहीन खेतिहर मजदूर होते हैं।
धार्मिक जीवन
इनके प्रमुख देवता सिंगबोंगा है। कोल दहका इसका प्राचीन नृत्य है। कोल, काली माता की पूजा मुख्य रूप से करते है। सभी हिंदू देवी -देवताओं के प्रति इनकी श्रद्धा होती है। इसके धार्मिक प्रधान को पाहन कहा जाता है।
राजनीतिक जीवन
कोल जनजाति के पंचायत व्यवस्था को मैयारी पंचायत या गोहिया पंचायत कहा जाता है। कही कही मांझी को गांव का प्रशासनिक प्रधान माना जाता है।
सामाजिक जीवन
इसके समाज पितृसत्तात्मक होते है। समगोत्रीय विवाह वर्जित है। विवाह संपन्न हो जाने के बाद “गौड़धोबा” कार्यक्रम होता है जिसमें वधुपक्ष द्वारा वरपक्ष का पैर धोया जाता है। वधुमूल्य को पोटे कहा जाता है। कोल समाज में दो उपवर्ग पाए जाते है:- रौतिआ और रोतेले। मृत्यु के बाद दफनाने और जलाने दोनो की परंपरा पाई जाती है। इस जनजाति में मृत्युभोज अनिवार्य माना जाता है।
कोल जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
🌹 महाभारत, रामायण और मार्कण्डेय पुराण में कोल का जिक्र मिलता है।
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