Jharkhand During Akbar Period
अकबरकालीन झारखंड
मुगल शासक अकबर का शासन 1556 ई से 1605 ई तक रहा। इसके शासन के पूर्वार्द्ध (1556-76) तक झारखंड मुगलों के प्रभाव से स्वतंत्र रहा। इस दौरान मुगल- विरोधी अफगान झारखंड में पूर्ण सक्रिय रहा। अकबर के शासन के 30वें वर्ष 1585 में मुगलों का संबंध झारखंड से वास्तविक रूप से हो पाया।
अफगानों का दमन
मुगलों के खिलाफ दक्षिण बिहार में अफगानों की शक्ति बढ़ रही थी। गाजी-हाजी बंधु, जुनैद कर्रानी और वाजियाद कर्रानी ये अफगान कभी भी मुगलों के लिए खतरा बन सकता था। इनलोगो के दमन के लिए अकबर ने कई अभियान चलाया। इस अभियान में अकबर ने झारखंड क्षेत्र का उपयोग किया। सभी अफगानों में बंगाल सल्तनत (कर्रानी राजवंश) सबसे महत्वपूर्ण था। अकबर की सेना और बंगाल सल्तनत (दाऊद ख़ाँ कर्रानी)की सेना के बीच 3 मार्च 1575 को टकरोई की लड़ाई (उड़िसा) हुई। जिसमें बंगाल सल्तनत के हाथ से उड़ीसा और बिहार निकल गया।
पुनः राजमहल की लड़ाई (झारखंड) 12 जुलाई 1576 को दाऊद ख़ाँ कर्रानी (बंगाल सल्तनत) और मुगलों के बीच हुई। जिसमे बंगाल सल्तनत की अंतिम रूप से हार हुई। इस युध्द में दाऊद ख़ाँ कर्रानी का सहयोगी जुनैद कर्रानी झारखंड के रास्ते बिहार भागने का प्रयास किया। भागने के क्रम में जुनैद ने रामपुर की पहाड़ी (रामगढ़) की पहाड़ी में शरण लिया। मुगल सेना पीछा करते हुए रामपुर पहुंच गया। रामपुर की लड़ाई में जुनैद ख़ाँ कर्रानी मारा गया। बंगाल सल्तनत की और से इस्माइल खान लोदी और खान जहान की सेना भी मुगलों के खिलाफ थी। वही मुगलों का नेतृत्व टोडरमल और मुजफ्फर खान तुर्बती कर रहा था।
नागवंशियों के खिलाफ अभियान
अकबर के नाग राजवंश के खिलाफ अभियान के कई महत्वपूर्ण कारण थे:-
1) टकरोई और राजमहल की लड़ाई के दौरान मुगलों को खुखरा (नागवंशियों की राजधानी) के समृद्धि के बारे में जानकारी लगी। शंख नदी में मिलने वाले हीरो ने अकबर का ध्यान आकर्षित किया।
2) अकबर के पिता हुमायूँ के खिलाफ अफगान शेरशाह ने इस क्षेत्र का बखूबी प्रयोग किया था। अन्य अफगान शासक भी इस क्षेत्र का उपयोग मुगलों के खिलाफ कर रहे थे।
3) अकबर एक विस्तारवादी शासक था वो खुखरा को अपने नियंत्रण में करना चाहता था।
4) दक्षिण भारत तक पहुँचने का रास्ता इस क्षेत्र से होकर गुजरता था, इसलिये नागवंशियों को नियंत्रण में रखना अकबर के लिए जरूरी हो गया।
उधर हमेशा से स्वतंत्र रहे नागवंशी राजा मुगलों की बढ़ी हुई शक्ति से पूरी तरह अनभिज्ञ रहे। सैन्य निर्माण में ध्यान ही नही दिया। अबुल फजल के अकबरनामा पुस्तक से पता चलता है कि नागवंशी राज्य तक पहुंचने वाले रास्ते दुर्गम होने के कारण नागवंशी अपने आप को सुरक्षित महसूस करते रहे।
1585 ई में अकबर शाहबाज खान कम्बु को खुखरा जितने के लिये भेजता है। उस समय खुखरा का नागवंशी राजा मधुकरण शाह रहता है। शाहबाज खान कम्बु ने खुखरा के सीमा में बहुत मार-काट मचाया जिससे मधुकरण शाह ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली और मुगलों के प्रथम करदाता नागवंशी राजा बन गए। मधुकरण शाह को कैदी बनाकर जब मुगल दरबार मे पेश किया गया तो उसके विनीत स्वभाव और शारीरिक क्षमता को देखकर अकबर ने उसे खुखरा वापस भेज दिया।
मानसिंह ने 1590-92 में जब कुतुल खान और उसके बेटे निसार खान के खिलाफ जब उड़ीसा अभियान किया था तब मधुकरण शाह ने मानसिंह की मदद की थी। इस तरह नागवंशी राजा मुगलों के अधीनस्थ सहयोगी बन गया।
पलामू में हस्तक्षेप
1589 में मानसिंह बिहार का मुगल सूबेदार बनाया गया था। इस दौरान पलामू में चेरो शासक भागवत राय अपनी शक्ति को बड़ा रहा था जो मुगल साम्राज्य के लिए खतरा था। मानसिंह पटना को अपने बेटे जगतराम के देख-रेख में छोड़के 1590 में पलामू की और कूच किया। उसे रास्ते मे चेरो ने रोकने की बहुत कोशिश किया। मानसिंह ने कई चेरो को मार डाला तथा बहुतों को बंदी बना लिया। चेरो राज्य से बहुत धन लुटा जिसमे 54 हाथी भी था। लूट के माल को अकबर के दरबार में भेज दिया गया। भागवत राय को पलामू का राजा बने रहने दिया। भागवत रॉय पे अंकुश रखने के लिए मानसिंह ने एक मुगल सेना पलामू में ही रहने दिया। अकबर की मृत्यु के तुरंत बाद 1605 ई में भागवत रॉय ने इस मुगल सेना को मार भगाया और पुनः अपनी स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
पोरहाट विजय
पोरहाट के सिंह वंशी शासक पहली बार अकबर के समय ही मुगलों के अधीन हुआ। मानसिंह के उड़ीसा अभियान के दौरान रास्ते मे सिंहभूम पड़ा। नागवंशी राजा मधुकरण शाह के मदद से मानसिंह इस क्षेत्र में और शक्तिशाली बन गया। मानसिंह के शक्ति के आगे तत्कालीन पोरहाट के सिंहवंशी राजा रंजीत सिंह ने बिना युद्ध लड़े समर्पण कर दिया। मानसिंह ने रंजीत सिंह को अपने अंगरक्षक दल का सदस्य बना लिया।
मानभूम विजय
मानभूम क्षेत्र भी सर्वप्रथम अकबर के समय मुगल साम्राज्य के अधीन हुआ। मानभूम में कई छोटे- छोटे राज्य थे जिसमें पंचेत राज्य सबसे बड़ा था। उड़ीसा अभियान के दौरान मानसिंह इस रास्ते से भी गुजरा था। मानभूम के किसी राजा ने मानसिंह से युद्ध करना उचित नही समझा। इस क्षेत्र में मानसिंह ने 1591 में परा और तेलकुप्पी (धनबाद) के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। मानसिंह ने पंचेत के किला का निर्माण भी यहाँ करवाया। (अकबरकालीन झारखंड )
छै-चंपा राज्य पे मालगुजारी
हज़ारीबाग का यह राज्य भी सर्वप्रथम अकबर के समय मुगल साम्राज्य के अधीन हुआ। मानसिंह ने इस राज्य पे सालाना 15,000 रुपये मालगुजारी तय किया था।
राजमहल को राजधानी बनाना
अकबरकालीन झारखंड
उड़ीसा विजय के दौरान मानसिंह ने जिन जिन बंगाल के क्षेत्रों में अपना आधिपत्य जमाया था उस क्षेत्रो का राजधानीके राजमहल को 1592 ई में बनाया। यह राजधानी गौड़ से ज्यादा सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद थी (अकबरनामा के अनुसार)।
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