Shivnath Pramanik
शिवनाथ प्रमाणिक की जीवनी
जन्म– 13 जनवरी 1950, बईदमारा गांव (बाघमारा) बोकारो
पिता का नाम :- मुरलीधर प्रमाणिक
माता का नाम :- तिनकी देवी
शिक्षा :- 📕 इंटर [ डी ए वी चंद्रपुरा, बोकारो(1968 – 70)
📕 सनातक [ नीजी कॉलेज (1970-73)
📕 पत्रकारिता एवं लेबर ऑफिसर में डिप्लोमा( 1974)
📕गृह मंत्री द्वारा अनुवाद प्रशिक्षण प्रमाण पत्र
वर्तमान पता :- खोरठा कुटीर, रानीपोखर, बोकारो इस्पात नगर, बोकारो
जीवनी
शिवनाथ प्रमाणिक की जीवनी
खोरठा के इस महान कवि का प्रारंभिक जीवन बहुत ही दुख में बीता जिस वजह से इन्होंने मेट्रिक पास करते ही बोकारो स्टील प्लांट में नौकरी करना शुरू कर दिया हालांकि अपनी पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी र साथ ही साथ अपनी आगे की पढ़ाई भी जारी रखी, नौकरी करते करते ही इन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री ली और साथ ही साथ पत्रकारिता और लेबर वेलफेयर में डिप्लोमा भी करा।
यह एक प्रसिद्ध खोरठा साहित्यकार है जिन्होंने खोरठा भाषा, साहित्य और संस्कृति आंदोलन में काफी योगदान दिया है। यह एक प्रसिद्ध कवि गायक, प्रभावशाली वक्ता और एक समाज सेवक भी हैं। शुरुआती दिनों में इनकी रूचि हिंदी लेखन में थी, इनकी बहुत सी कविताएं ,लेख ,लघु कथा काफी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती थी। 1984 में धनबाद की एक पत्रिका आवाज में इनकी एक हिंदी लेख ‘ खोरठा – मागधी की मुंह बोली’ प्रकाशित हुई, जैसे ही यह प्रकाशित हुई ,इस लेख को पढ़ने के बाद अमित कुमार झा बहुत ज्यादा प्रभावित होकर शिवनाथ प्रमाणिक जी से मिलने खोरठा लेखन पहुंच गए, जो कि खुद एक महान साहित्यकार हैं। इस इस बात से शिवनाथ प्रमाणिक जी काफी प्रसन्न हुए, उन्हें यह भी पता चला कि रांची विश्वविद्यालय में खोरठा के स्नातक तक की पढ़ाई होती है और किसी बात से प्रभावित होकर सन् 8 जुलाई 1984 को बोकारो खोरठा कमेटी का गठन किया और खुद वहाँ के निदेशक बने।
सन् 1985 के दिसंबर माह में श्री शिवनाथ प्रमाणिक, शांति भारत जी एवं बंसी लाल के साथ श्री निवास पानुरी जी से मिलने उनके निवास स्थान पर गए। जिसका वर्णन शांति भारत द्वारा लिखे गए संस्मरण ‘बोरवा अड्डाक अखय बोर’ में किया गया है। उस मुलाकात के अंतराल में श्रीनिवास पानुरी जी ने इन तीन महान कवियों को खोरठा साहित्य की जिम्मेदारी देते हुए कहा की अब खोरठा साहित्य की पहचान आप लोगों को ही आगे लेकर जाना है। खोरठा के महान दो साहित्यकार से मिलने के बाद , श्री शिवनाथ प्रमाणिक जी काफी प्रभावित हुए और खोरठा लिखना शुरू किया।
कृतियाँ
1) ” दामुदरेक कोराञ“
=> यह खोरठा का प्रथम मौलिक प्रबंध खंड काव्य है। इसका प्रकाशन सन 1986 में हुआ। इसके प्रकाशक खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद भतुआ बोकारो है। इस काव्य खंड में कुल 6 अध्याय हैं, जिसमें आदिवासी और सदान के प्रेम को दर्शाया गया हैl
2)” तेताल – हेमल”
=> इसका प्रकाशन सन 1998 में हुआl क्या एक खोरठा काव्य संग्रह हैl
3) “खोरठा लोक साहित्य”
=> यह प्रकाशित है परंतु इसमें खोरठा लोकगीत लोक कथा का भी वर्णन दिया गया हैl इस किताब में लोकगीत , मुहावरा , कहावत , पहेली हैं जो की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैl इसका प्रकाशन सन् 2004 में हुआl
4) “मइछगंधा”
=> यह खोरठा की पहली महाकाव्य है किस का प्रकाशन सन् 2013 में हुआl
5) “माटीक रंग”
=> यह झारखंड की संस्कृति और खोरठा भाषा से संबंधित हिंदी निबंध का संकलन हैl
खोरठा में योगदान
यह बोकारो खोरठा कमेटी के निदेशक थे जिन्होंने कई साहित्य सम्मेलन आयोजित करवाया ल इनके ही प्रयास से खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद का पंजीकरण हुआl इनके गीत, कविता आकाशवाणी रांची, हजारीबाग और दूरदर्शन रांची से प्रसारित होते हैंl
‘खोरठा गईद पईद संग्रह ‘ और ‘ बेलनदरी ‘ किताब प्रकाशित करवाने में इनका मुख्य योगदान है l इनके प्रयासों के बाद ही ‘श्रीनिवासपुरी स्मृति सम्मान’ और ‘खोरठा रतन पुरस्कार’ शुरू किया गयाl
सम्मान:–
🏆 नगर कवि :– यह पुरस्कार उन्हें बोकारो स्टील प्लांट के द्वारा हिंदी विभागों में उनके योगदान के लिए दिया गया ल
🏆 काव्य भूषण:- यह उपाधि उन्हें जमशेदपुर साहित्यिक संस्थान द्वारा दिया गया l
🏆 परिवर्तन बिशेष:- यह सम्मान उन्हें ‘ दामोदर कोराय’ के लिए चतरा के संस्थान ‘परिवर्तन ‘ द्वारा दिया गया l
🏆 सपूत सम्मान:- यह पुरस्कार उन्हें अखिल झारखंड खोरठा परिषद, भेनड्रा के द्वारा दिया गया l
🏆 सांस्कृतिक सम्मान पत्र:- यह सम्मान उन्हें लगातार दो बार झारखंड सरकार द्वारा दिया गया हैl पहली बार सन 15 अगस्त 2007 को मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा दिया गया एवं दूसरा पुरस्कार 21 सितंबर 2008 को शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की द्वारा दिया गया यह पुरस्कार उन्हें सरकार के खेल को संस्कृति विभाग द्वारा दिया गया l जिसमें ₹10000 पर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया l
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खोरठा भाषा का उद्भव Video