Jharkhand During Vedic Period
Ancient history Of Jharkhand
वैदिक काल
भारत के इतिहास में 1500 BC से 600 BC के कालखंड को वैदिक काल कहा जाता है। वैदिक काल मे झरखंड क्षेत्र में असुर, खड़िया और बिरहोर जाती के उपस्थिति का पता चलता है। जनजातियों के लिए “असुर” शब्द का प्रयोग किया जाता है।
ऋग्वेद में झारखंड का उल्लेख किकटा नाम ढशो अनार्य प्रदेश” के रूप में मिलती है। ऋग्वेद में अनुसार झारखंड के निवासियों को अनार्य कहा गया है। ऋग्वेद के अनुसार किक्कट प्रदेश के लोग पशुचारक थे और खेती नही करते थे। ऋग्वेद के अनुसार यहाँ के जनजातियों (असुर जनजातियों) शिशनोदेवा कहा गया है। वैदिक काल मे असुर,
अथर्ववेद में झारखंड का जिक्र “व्रात्य प्रदेश” के रूप में मिलता है। ऐतरेय ब्राह्मण में झारखंड का उल्लेख “पुण्ड्र देश” के नाम से मिलता है। तथा संताल परगना का उल्लेख “सूर्य देश” के नाम से मिलता है।
महाजनपद काल
भारत के इतिहास में 600 BC से 400 BC के काल को महाजनपद काल कहा जाता है। इस काल मे 16 महाजनपद का निर्माण हुआ। महाजनपद काल के प्रारम्भिक समय मे झारखंड के संताल परगना “अंग महाजनपद” के अंतर्गत आता था जबकि छोटानागपुर मगध महाजनपद के अंतर्गत आता था। अजातशत्रु द्वारा अंग को मगध में मिलाने के बाद सम्पूर्ण झारखंड मगध के अंतर्गत आया। झारखंड मगध साम्राज्य का दक्षिणी भाग था। इस क्षेत्र में बृहद्रथ वंश के जरासंध का अधिकार था। महाजनपद काल मे झारखंड को “कीकट” के नाम से जाना जाता था।
मगध काल
16 महाजनपदों में मगध सबसे समृद्ध और शक्तिशाली बना। इस काल मे हर्यक वंश, शिशु नाग वंश, नंद वंश और मौर्य वंश जैसे शक्तिशाली राजवंशों का उदय हुआ। हर्यक वंश में झारखंड के बारे में सिर्फ इतना पता चलता है कि अजातशत्रु के शासनकाल में जनजातियों के बीच बौद्ध धर्म का प्रचार किया गया।
नंद वंश के दौरान झारखंड की हाथियों का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था। नंदो ने झारखंड प्रदेश से प्राप्त लोहे का उपयोग किया। नंदो के सेना में बड़ी मात्रा में झारखंड के जनजातियों का प्रयोग किया जाता था।
Ancient history Of Jharkhand Video (मौर्यकालीन झारखंड)