मौर्यकालीन झारखंड

मौर्यकालीन झारखंड | Jharkhand During Mourya Period

Ancient History Of Jharkhand

Jharkhand During Mouryan Empire

मौर्यकालीन झारखंड

नंद वंश के बाद झारखंड मौर्य वंश के अधीन हुआ था। नंद वंश के अंतिम राजा को चंद्रगुप्त मौर्य ने पराजित किया और मगध पे मौर्य वंश की स्थापना की। चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौटिल्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” पुस्तक में झारखंड का उल्लेख “कुकुटदेश” के नाम से मिलता है। इस पुस्तक से हमे पता चलता है कि मौर्यकाल में झारखंड में गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी। मौर्यकाल में आटविक नामक अधिकारी की नियुक्ति झारखंड क्षेत्र को नियंत्रण में रखने के लिए की गई थी। आटविक का अर्थ वन विभाग का अधिकारी होता था। उस समय झारखंड पूरी तरह से वनाच्छादित था।

आटविक के मदद के लिए नागाध्यक्ष, वनाध्यक्ष, नागपाल और वनपाल जैसे वन्य अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी। इन अधिकारियों का मुख्य काम झारखंड के जनजातियों को नियंत्रण में रखना, मगध के हित के लिए झारखंड का उपयोग करना तथा झारखंड के जनजातियों को मगध के शत्रुओ के साथ गठबंधन को रोकना।

मगध के उत्कर्ष में झारखंड का योगदान

a) झारखंड से मगध को अस्त्र, कृषि-उपकरण, परिवहन के लिए उच्च कोटि का लोहा मिलता था।

b) सेना के लिए हाथी की प्राप्ति झारखंड के जंगलों से होती थी।

c) झारखंड के जनजातियों को मगध सेना में शामिल किया गया था।

f) मगध का व्यापार दक्षिण भारत के साथ होता था और यह व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर गुजरता था।

g) झारखंड के नदियों से हीरे की प्राप्ति होती थी। कौटिल्य ने “अर्थशास्त्र” पुस्तक में इस बात की चर्चा की थी की कुकुटदेश के इंद्रवानक नदी से हीरे की प्राप्ति होती थी। इंद्रवानक अभी का ईब और शंख नदी था।

Note – ईब नदी महानदी की एक सहायक नदी है जो छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला से निकलती है। यह उड़ीसा में महानदी में मिल जाती है।

अशोककालीन झारखंड

मौर्यकाल में बिम्बिसार और अशोक के समय भी झारखंड मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बना रहा।

अशोक के 13वें शिलालेख के अनुसार झारखंड आटविक प्रदेश का एक हिस्सा था। आटविक प्रदेश की सीमा बघेलखंड से उड़ीसा के समुद्रतट था।

Note:- बघेलखंड मध्य भारत का एक प्रान्त है जो मध्यप्रदेश के उत्तरी-पूर्व और उत्तरप्रदेश के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।

अशोक ने एक धर्मप्रचारक दल को झारखंड में भेजा था जिसका प्रमुख रक्षित था। इस धर्मप्रचारक दल ने झारखंड के आटवी जनजातियों को बौद्ध धर्म का उपदेश दिया था।

अशोक के कलिंग शिलालेख-2 में अशोक ने उड़ीसा क्षेत्र के सीमावर्ती अविजित जनजातियों के विषय में कहा – ” उन्हें धम्म का आचरण करना चाहिए ताकि वो लोक और परलोक की प्राप्ति कर सके”। उड़ीसा के सीमावर्ती अविजित जनजातियों में झारखंड क्षेत्र की जनजातियाँ भी शामिल थी।

मौर्योत्तर कालीन झारखंड

मौर्यकाल के पतन के बाद मौर्योत्तरकल काल की भारत मे शुरुआत हुई। 187 ई० पु० से 240 ई०पु० के काल को भारतीय इतिहास में मौर्योत्तरकाल कहा जाता है। इस काल की महत्वपूर्ण घटना ब्राह्मण राजवंशों ( शुंग, कण्व, आंध्र-सातवाहन, वाकाटक आदि)। इसी काल मे पश्चिमोत्तर से भारत पर विदेशियों (इंडो-ग्रीक, शक, पह्लव, कुषाणों का आक्रमण)। इन बाहरी शक्तियों ने व्यापार-वाणिज्य और सिक्को के निर्माण में काफी रुचि ली थी। इनके सिक्के झारखंड में अवशेष के रूप में पाए गए है जो इस बात की पुष्टि करता है कि इनका झारखंड से व्यापारिक संबंध था। इस काल के सिक्के निम्न स्थानों में पाए गए है:-

रोमन सम्राट के सिक्के – यह सिंहभूम में पाया गया।

इंडो-सीथियन सिक्के- यह चाईबासा से प्राप्त हुआ है।

कुषाण काल के सिक्के – यह राँची और सिंहभूम से प्राप्त हुआ है।

कुषाण काल के प्रतापी राजा कनिष्क के समय झारखंड उसके नियंत्राधीन था। कनिष्क के क्षत्रप (उप-राजा) वंशफर इस क्षेत्र के शासन को देखता था। वंशफर ने यहाँ के पुलिंदों जनजाति को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलवाई थी।

मौर्यकालीन झारखंड Video

https://youtu.be/AnHYinlrV-k

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