खोरठा हाय ! खोरठा

खोरठा ! हाय ! खोरठा (आँखिक गीत कविता संख्या-33)

JPSC/JSSC खोरठा

खोरठा ! हाय ! खोरठा

(पुस्तक:- आँखिक गीत कविता संख्या-33)

खोरठा ! हाय ! खोरठा

रटते रहली गान

ई बटे कहाँ किंतु

खोरठा भाषीक धेयान

मायक उपर ममता नॉय

श्रद्धा भक्ति प्यार

उ तो ई धरती एगो

रंगे डूबल सियार

देही ओढ़ल बाघेक चाम

दीन, दुर्बल प्राण

धोबीक कुकुर घरेक न घाटेक

अमृत छोइड़ लालसा जूठा चाटेक

कहाँ ओकर मान सम्मान

विश्व सभाय स्थान

पृष्ठभूमि

यह कविता श्रीनिवास पानुरी के काव्य-संग्रह “आँखिक गीत” के कविता संख्या-33 है। इस कविता में पानुरी जी ने अपने मातृभाषा (खोरठा) के प्रति लोगो की उदासीनता को व्यक्त किया है।

श्रीनिवास पानुरी जी धनबाद के पुराना बाजार में पान की गुमटी चलाते थे। उस गुमटी में बैठकर ही वे साहित्य की रचना किये। आते जाते सभी लोगो को वो खोरठा गीत सुनाते थे। मगर खोरठा गीत/कहानी पर किसी का ध्यान नही जाता था। सब उनका ही मजाक उड़ाते थे। खोरठा के प्रतिइसी उदासीनता को देखते हुए पानुरी जी ने इस कविता की रचना की

सारांश

कवि कहते है कि जीवन भर मैं खोरठा साहित्य लिखता रहा और लोगो को सुनाता रहा लेकिन खोरठा भाषी को अपने मातृभाषा खोरठा पर ध्यान नही है। माता (खोरठा) के प्रति किसी की ममता नही है और न ही श्रद्धा भक्ति और प्यार।

ऐसे लोग (जो खोरठा के प्रति उदासीन है) इस धरती पर एक रंगा हुआ सियार की तरह है जिसने बाघ का खाल पहन रखा है, लेकिन वास्तव में एक गरीब और दुर्बल प्राणी है। ऐसे लोगो की हाल धोबी के कुत्ते की तरह है जो लालसा (लालच) के कारण अमृत छोड़कर जूठा चाटता है। इस तरह के लोगो का कोई मान-सम्मान नही हो सकता और न ही जगत (विश्व सभाय) मे कोई स्थान।

खोरठा में अनुवाद

कवि पानुरीजी खोरठा ! हाय! खोरठा कतेक दिन से रटते रहला मगुर खोरठा भासी धेयान नॉय देला। ई खातिर कवि अफसोस करो हथ कि मायेक ऊपर (माय कोखा भाषा) ममता, सरधा, भकति पियार नखे। कविक नइजरे हियाँक लोक रंगा सियार लागथ, आर आपन उपर बाघेक चाम ओढ़ल हथ। ई सब लोक एगो दीन, निर्बल प्राणी हेके। मगुर जानेक चाही धोबीक कुकुर घारेक ना घाटेक। अमरीत छोइड़ के लालसाक जूठा चाट हथ। हियाँ ओकर ना आन हे न सममान हे ना जगते कोनो जगह हे।

हिंदी में इस कविता का अनुवाद

खोरठा ! हाय ! खोरठा

रटते रहा हूँ गान

मगर इस तरफ कहाँ किसी

खोरठा भाषी का ध्यान है।

माँ के ऊपर ममता नही है

न ही श्रद्धा भक्ति प्यार।

वो तो इस धरती का एक

रंग में डूबा सियार है

देह में बाघ का ओढ़ के खाल

गरीब दुर्बल प्राण

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का

अमृत छोड़ लालसा (लालच) में जूठा चाटता है

कहाँ है उसका मान सम्मान

विश्व सभा मे स्थान

खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part- 1
https://youtu.be/WyzAUp6Mq9E

खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part-2

https://youtu.be/o0E-cjrkjyc

खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part-3

https://youtu.be/4svHMcIsrXk

खोरठा हाय ! खोरठा

https://youtu.be/R4i-I0nYGZY

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *