Karmali Tribes
करमाली झारखंड की लघु और प्राचीन जनजाति है। ये पाषाण काल से ही झारखंड में निवास करने वाली जनजातियों में एक है।2001 की जनगणना के आधार पर इसकी जनसंख्या मात्र 64154 है जो कुल जनजातीय संख्या का 0.74% है। ये हजारीबाग, कोडरमा, चतरा, गिरीडीह, राँची, सिंहभूम और संताल परगना में पाए जाते है।
वर्ग – करमाली को झारखंड के सदान के श्रेणी में रखा गया है। ये ऑस्ट्रलोयड प्रजातीय समूह की एक जनजाति है। इसकी भाषा कुरमाली है जो आस्ट्रिक भाषा परिवार में आता है।
गोत्र – कुरमाली समाज मे 7 गोत्र पाया जाता है:- कछुवार, सांढवार, कैथवार, खलखोहार, करहार, तिर्की और सोना
पेशा – इस समाज की परंपरागत पेशा है लुहारगिरी, ये अस्त्र-शस्त्र बनाने में निपुण माने जाते है। भेंडरा (बोकारो) जिसे झारखंड का शेफील्ड कहा जाता है, वहाँ इसी समुदाय द्वारा लोहे के समान बनाये जाते है। मध्यकाल में शेरशाह के लिए अस्त्र-शस्त्र इसी समुदाय द्वारा बनाया जाता था। कुछ करमाली लोग खेती भी करते है।
धार्मिक जीवन
ये दामोदर नदी को पवित्र मानती है अतः इस नदी के किनारे इसकी काफी जनसंख्या बसी है। इनके हर घरों में सिरा-पीररा (देवस्थल) के लिए अलग जगह होती है। सिंगबोंगा इनके प्रधान देवता होते है। इस जनजाति के धार्मिक प्रधान को “नाया” या “पाहन” कहा जाता है। देउकरी इसका पूजा स्थल होता है जहाँ पूरे गाँव इकट्ठा होकर पूजा करते है। टुसु पर्व इनका मुख्य पर्व है जिसे ये मीठा-पर्व या बड़का-पर्व कहते है। सरहुल,करमा, दुर्गापूजा, दीवाली भी ये धूमधाम से मनाते है।
सामाजिक जीवन – इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह वर्जित है। वधूमूल्य की प्रथा है, वधूमूल्य को “हंठुआ” कहा जाता है। अंतिम संस्कार में महिलाएँ भी भाग लेती है।
शासन व्यवस्था
करमाली के ग्रामीण जातीय पंचायत का प्रमुख मालिक कहलाता है। मालिक एक वंशानुगत पद है। गौडाइत का काम सूचना पहुंचाना होता है। गाँव में झगड़ो का निपटारा, विवाह के मामले, उत्तराधिकार के मामले ये ही निबटाते है। दो या दो से अधिक गॉंव के विवाद को “सतगवइया पंचायत” में सुलझाया जाता है। 20 से ज्यादा गॉंव को मिलाकर “बाइसी पंचायत” का गठन किया जाता है। बाइसी पंचायत बहुत ही गंभीर मुद्दों पर फैसला सुनाती है।
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