Kawar Tribes
कंवर जनजाति
झारखंड के निर्माण के समय कुल 30 जनजातियाँ थी। 8 जनवरी 2003 में दो जनजाति कवर और कोल को जनजाति सूची में शामिल किया गया है। इस तरह अभी झारखंड में कुल 32 जनजाति है।
कंवर/कवर/कवार जनजाति
यह झारखंड की 31वीं घोषित जनजाति है। कवर जनजाति की जनसंख्या भारत के मध्य भाग में पाई जाती है। कंवर जनजाति झारखंड में छत्तीसगढ़ से आकर बसी है। कवर जनजाति की सबसे ज्यादा जनसंख्या छत्तीसगढ़ में पाई जाती है। छतीसगढ़ में ये गोंड के बाद दूसरी सबसे ज्यादा जनसंख्या वाली जनजाति है। क्रमशः छतीसगढ़, महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश के बाद इसकी आबादी में झारखंड का चौथा स्थान है।
2011 के जनगणना के आधार पर इसकी जनसंख्या मात्र 8145 है। जो राज्य में कुल जनजातीय आबादी का 0.09% है। इनकी भाषा कंवारति या कवरासी है जो भारोपीय भाषा परिवार (आर्य भाषा परिवार) में आता है। इसकी आबादी झारखंड के सीमावर्ती जिला गढ़वा,पलामू, गुमला एवं सिमडेगा में है।
इस जनजाति के मुख्य व्यवसाय कृषि है और ये कृषि-कर्म में भी पिछड़ा समाज माना जाता है।
कवर को प्रोटो-ऑस्ट्रोलॉयड प्रजातीय समूह में रखा गया है। ये अपने को महाभारतकालीन कौरव के वंशज मानते है। कवर शब्द कौरव का ही अपभ्रंश है। ये अपने को कुरुवंशी या चंद्रवंशी कहलाना पसंद करते है।
उपजातियां- कंवर में 8 उपजातियां पाई जाती है:-
a) तंवर या छतरी – इसमे विधवा विवाह वर्जित है। b) राथीया c) चेरवा d) पैकरा ( ये हैहयवंशी शासकों के सैनिक थे) e) दूध कंवर। f) कमलवंशी g) चानति h) रौतिया
कंवर समाज गोत्र को गोटी कहा जाता है। कवर जनजाति में 7 गोत्र पाए जाते है:- सुकदेव, अभिआर्य, वशिष्ट, प्रह्लाद, तुंडक, पराशर, विश्वामित्र।
Note:- कवर समाजसारे गोत्र ऋषियों के नाम पर है।
शासन व्यवस्था
इस जनजाति का ग्राम पंचायत का प्रमुख सयाना कहा जाता है। सयाना के मदद के लिए पटेल, गोटिया का पद होता है। 7-8 गॉंव को मिलाकर “चक पंचायत” होता है। जब ग्राम पंचायत में मामला नही सुलझता है तो उसे चक पंचायत में लाया जाता है। चक पंचायत से ऊपर सतगड़िया पंचायत होता है जो कंवर शासन व्यवस्था का सर्वोच्च संस्था होती है।
धार्मिक जीवन
कवर के प्रधान देवता “सगरा खंड भगवान” है जिसे सूर्य का प्रतिरूप माना जाता है। इस जनजाति के धार्मिक प्रधान को “पाहन” या “बैगा” कहा जाता है। बार या बायर नृत्य कवर जनजाति की प्रमुख नृत्य है। कंवर जनजाति के गाँव मे एक राम चबूतरा होता है जिसमे रामायण पाठ किया जाता है।
विवाह – समगोत्रीय विवाह पूर्णतः वर्जित होता है। वधूमूल्य देने की परंपरा पाई जाती है। कंवर वधूमूल्य को “सुक दाम” या “सुकमोल” कहा जाता है। इसमें रुपये, वस्त्र और 10 खंडी चावल देने का रिवाज है। विवाह परंपरा कुल 5 चरणों में पूरा होता है- मंगरी, द्वारमंगा, रोटी-तोड़ना, विवाह और गौना। कवर जनजाति की स्त्रियां “कृष्ण-गोदना” अपने शरीर पर गुदवाती है, जिसमे कृष्ण जी के चित्र होते है।
कंवर जनजाति Video
सर जी 🙏🙏
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